मानसी बोली -" उनके बाप का नहीं मगर उनके बाबा का तो घर है ,वो बाबा ,जिनका स्वास्थ्य इतना खराब हो गया था कि वे मरणासन्न हो गए थे तब तो तुम और देवर जी अपने -अपने मुंह छुपाए वहां पड़े हुए थे तब इनके बाप ने ही उपचार कराया था ,दवा-पानी सब कराया था तब जाकर पिताजी सही हुए थे जबकि पिताजी तो तुम्हारे व देवर जी के हिस्से में हैं मगर रुपए न लगाने पड़ें तो दर्शन तक न हुए थे और जैसे ही पिताजी सही हुए नार बेवार लेकर आ गईं ।
वो उनके बाबा का घर है तो उनका अधिकार है वहां रहने का समझीं !!"
मानसी के मुंह से ये सब सुनकर कनक से कुछ कहते न बना और वो जैसे आई थी वैसे ही वापस हो ली ।
राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु दोनों ने आपस में मंत्रणा कर ली थी कि तुम खेतों को जाओगे तो मैं हवेली में रहूंगा और मैं खेतों को जाऊंगा तब तुम हवेली में रहना ।
दोनों ने हवेली में ही डेरा जमा लिया और जैसे ही भोजन बनता वे दोनों आकर पलथी मारकर भोजन करने बैठ जाते थे ।
दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु छोटे होने के बाद भी राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु को खरी खोटी सुनाते ,जलील करते मगर दोनों उनकी बातों पर ध्यान ही न देते थे ।
दिव्यांश प्रताप भानु चुपचाप भोजन कर अपने कक्ष में चला जाता था , राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु से कुछ न कहता तो दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु एक दिवस उसके कक्ष में गए और दिवाकर प्रताप भानु ने उससे कहा -" दिव्यांश दादा ,आप मिट्टी के माधो हो और वही रहोगे ,देख रहे हो कि हवेली में हिस्सा लेने के लिए राज दादा व राग दादा डेरा डाले बैठे हैं मगर आपको कुछ कहना ही नहीं !!"
दिव्यांश प्रताप भानु ने भी कह दिया -" पहली बात तो वो दोनों तुम दोनों से बड़े हैं तो उनके साथ तमीज से पेश आओ दूसरी बात ये हवेली अभी भी बाबा की है और बाबा उनके भी हैं उस नाते ये उनकी भी है ,वो जब तक चाहें यहां रह सकते हैं ,तुम दोनों उन्हें मना करने वाले कौन होते हो जब बाबा ने उन्हें मना न किया !!"
"आप भी किसके आगे सिर फोड़ रहे हो दिवाकर दादा , दिव्यांश दादा तो उस शिवाली के ही असल भाई होने के लायक हैं ,वो भी बुद्धिहीन और ..... चलिए हम दोनों मिलकर ही कुछ करते हैं ।"दिनकर प्रताप भानु ने दिवाकर प्रताप भानु से कहा और दोनों दिव्यांश प्रताप भानु के कक्ष से चले गए।
दिव्यांश प्रताप भानु ,दिनकर प्रताप भानु की कही अधूरी बात का अर्थ समझ गया और उसकी आंखों से अश्रु धार बह चली ।
सूर्य प्रताप भानु के मन को छू गया था कि जब मैं बहुत ज्यादा बीमार हो गया था तब शिव प्रताप भानु ने ही मेरा उपचार कराया था इसीलिए शायद सूर्य प्रताप भानु ने राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु को कुछ भी न कहा था ।
राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु भी बाबा सूर्य प्रताप भानु की मौन स्वीकृति महसूस कर आराम से हवेली में रहकर कनक ,दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु की शांति भंग कर रहे थे ।
भोजन बनते ही तुरंत आकर बैठ जाना ,भोजन कर अपनी थाली वहीं रख कर जूठन फैलाकर हाथ धोने के नाम पर आंगन में इधर उधर पानी फैलाना , तौलिए में गंदे हाथ पोछ देना दिवाकर प्रताप भानु ,दिनकर प्रताप भानु के साथ ही साथ कनक को भी बहुत कष्ट दे रहा था और कनक के द्वारा बात दिव्य प्रताप भानु तक भी पहुंच रही थी ।
एक दिवस दिव्य प्रताप भानु ने फोन कर कनक से कडे़ शब्दों में कहा -" कब तक चलेगा ये सब !! मैं यहां विद्यालय से आकर अपने लिए भोजन ही बनाता रहूं और वहां शिव दादा के दोनों नाग हवेली पर फन फैलाए बैठे रहें !! दिव्यांश प्रताप से तो कोई उम्मीद ही नहीं है पर दिवाकर प्रताप और दिनकर प्रताप से कहो कि उठाकर उन दोनों को हवेली के बाहर फेंक दें वरना अगर मैं वहां आ गया तो उन दोनों को घसीटते हुए अपनी हवेली से बाहर फेंक दूंगा ।"
कनक ने दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु को सूचित किया और उन दोनों ने जाकर राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु के जो एक दो जोड़ी कपडे़ थे वो उठाकर कक्ष से बाहर डाल दिए ,उस समय राग प्रताप भानु सो रहा था और राज प्रताप भानु खेतों पर गया था ।
जब राग प्रताप भानु सोकर उठा तो कक्ष अव्यवस्थित देखा और अपने कपड़े ,चप्पल न देखीं तो कक्ष के बाहर गया तो वहां उसने अपने व दादा राज प्रताप भानु के कपड़े व चप्पल पड़ी देखीं ,उसके क्रोध का पारावार न रहा और उसने तुरंत राज प्रताप भानु को फोन लगाकर हवेली बुलाया ।
राज प्रताप भानु हवेली आया और हवेली का प्रांगण युद्ध का जैसे मैदान हो गया ।
एक तरफ दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु और दूसरी तरफ राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु आपस में अपशब्दों की बौछार करने लगे और बात हाथापाई तक पहुंच गई ।
" और सूर्य प्रताप भानु बैठे बैठे सब देखते रहे !!" मादा गौरैया ने नर गौरैया से विस्मय से पूछा ।
" नहीं , सूर्य प्रताप भानु को उठकर आना पडा़ , सुनों आगे क्या हुआ ......" नर गौरैया अपने नीड़ में मादा गौरैया के साथ बैठे हुए मादा गौरैया से कहते हुए आगे सुनाने लगा -- सूर्य प्रताप भानु अपने कक्ष से उठकर हवेली के प्रागंण में आए और तेज स्वर में बोले -"बस करो !! बहुत हो गया ,, और तुम दोनों दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु , अपने से बडों से ऐसे पेश आया जाता है !!
और तुम दोनों राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु , तुम दोनों को फिर से हवेली में बंटवारा चाहिए ना !! ठीक है , इस रविवार दिव्य प्रताप भानु हवेली आ जाए फिर अपने पिता शिव प्रताप को भी बुला लाना और नए सिरे से हवेली और जो भाग तुम्हारे पिता शिव प्रताप भानु को मिला है , उसका बंटवारा होगा।" ...........शेष अगले भाग में।