हवेली के पीछे श्रीधन के लिए जो घर सूर्य प्रताप भानु ने दिया था वो बस दो कक्षों का एक छोटा सा घर था जिसमें एक कक्ष इतना छोटा था कि उसमें पाकशाला ही हो सकती थी , दूसरा कक्ष ही था जिसमें दो पलंग पड़ने के बाद थोडा़ परिसर बचता था ।
जब श्रीधन का परिवार इसमें रहता था तब श्रीधन व गोपी अपने अपने पलंग पर लेटते और सुरतिया व मनिका भूमि पर अपना बिछौना लगाती थीं ,अब जब शिव प्रताप भानु इसमें रहने आया तो एक पलंग पर शिव प्रताप भानु,दूसरे पर दिव्या लेटती थी और मानसी को राज प्रताप भानु को लेकर भूमि पर लेटना पड़ता था।
शिव प्रताप भानु के घर बनाने वाले कारीगरों ने आकर सारी जमीन देखी और फिर बताया कि हवेली के सामने पड़े परिसर पर एक घर बनेगा और फिर मंदिर के पीछे से होते हुए मंदिर के बगल में पड़ी जमीन तक एक घर बनेगा और दोनों को जोड़ने के लिए एक दीवार लगानी पड़ेगी , मुख्य दरवाजा हवेली के सामने पड़े परिसर के सामने ही हो जाएगा ।
शिव प्रताप भानु ने कहा जैसे बन पाए बनाना प्रारंभ करो और कारीगरों ने कार्य प्रारंभ कर दिया था ।
अब चूंकि हवेली के सामने का बरामदा शिव प्रताप भानु के हिस्से में आया था इसलिए सूर्य प्रताप भानु को हवेली में ही रहना पड़ता था ,वो हवेली में ही दिव्यांश प्रताप भानु को गोद में लिए खिला कर अपना समय व्यतीत कर रहे थे और दूसरी तरफ दिव्या हवेली के बरामदे में राज प्रताप भानु को लेकर कारीगरों के कार्य का निरीक्षण करती रहती थी ।
दिव्या रहती तो हवेली के बरामदे में राज प्रताप भानु को लिए हुए मगर उसका मन दिव्यांश प्रताप भानु के पास लगा रहता था।
अब हवेली के बरामदे से दीवार खड़ी थी तो अगर उसे दिव्यांश प्रताप भानु को देखना होता तो जब बाहर से जाकर दिव्य प्रताप भानु का फाटक खटखटाए तभी दिव्यांश प्रताप भानु से मिलना हो पाता था ।
मानसी घर के कार्य संपन्न करती थी और शिव प्रताप भानु घर बनवा रहा था जिसमें श्रीधन बराबर उसके साथ लगा रहता था और श्रीधन का साथ पाकर शिव प्रताप भानु को बहुत सुकून मिलता था ।
समय बीत रहा था ।
समय बीतते बीतते शिव प्रताप भानु का घर बनकर तैयार हो गया था , लम्बे समय तक बीमार रहने के कारण सुरतिया चल बसी थी और शिव प्रताप भानु और मानसी के आंगन में तीन बेटियां व एक बेटा और आ गए थे ,अब शिव प्रताप भानु और मानसी के दो बेटे व तीन बेटियां हो गए थे जिसमें सबसे बडा़ राज प्रताप भानु फिर बडी़ बेटी शिवन्या ,उससे छोटी बेटी शिवल्या फिर छोटा बेटा राग प्रताप भानु और सबसे छोटी बेटी शिवाली थी ।
दिव्य प्रताप भानु और कनक के आंगन में दो बेटे और आ गए थे और दिव्य प्रताप भानु और कनक के तीन बेटे हो गए थे जिसमें सबसे बड़ा बेटा दिव्यांश प्रताप भानु,उससे छोटा बेटा दिवाकर प्रताप भानु और सबसे छोटा बेटा दिनकर प्रताप भानु था । सारे बच्चों में साल साल भर का अंतर था ।
दिव्य प्रताप भानु की हवेली का फाटक तभी खुलता जब किसी को हवेली के बाहर जाना होता वहीं शिव प्रताप भानु के घर का फाटक दिन भर खुला रहता क्योंकि मंदिर शिव प्रताप भानु के घर के भीतर पड़ गया था ,अत: फाटक खुला रहता तो लोग निसंकोच भीतर आकर फिर मंदिर में पूजा अर्चना कर चले जाते थे , और फिर सीधे रात को ही फाटक बंद होता था।
जब तक दिव्य प्रताप भानु और शिव प्रताप भानु के बच्चे छोटे छोटे थे तब तक दिव्या इधर से उधर दौड़ते दोनों के बच्चों को संभालती थी ,कभी दिव्यांश प्रताप भानु,दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु को लिए शिव प्रताप भानु के यहां आ जाती और सबको लिए बैठी रहती थी तो कभी शिवप्रताप भानु के बच्चों को हवेली में लिए चली जाती वहां सूर्य प्रताप भानु के पास सभी बच्चों को लेकर बैठी रहती थी ।
दोनों के बच्चों को दिव्या ने ऐसे ही एक पांव पर खड़े रहकर पाल पोस दिया था और अब बच्चे अपने पैरों चलने वाले हो गए थे तो स्वयं ही इधर से उधर ठुमकते हुए पहुंच जाते थे ।
शिव प्रताप भानु के बच्चे ,राज प्रताप भानु,राग प्रताप भानु , शिवन्या, शिवल्या और शिवाली जब खेलते हुए हवेली के दरवाजे पर जाते तो उन्हें दरवाजा खटखटाना पड़ता तब भीतर से आकर सूर्य प्रताप भानु दरवाजा खोलकर बच्चों को अंदर ले लेते थे मगर दिव्यांश प्रताप भानु,दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु तो जैसे ही हवेली के बाहर कोई जाने के लिए फाटक खोलता वो बाहर निकल कर शिव प्रताप भानु के यहां पहुंच जाते थे ।
सूर्य प्रताप भानु, राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु को तो पुचकार भी लेते मगर शिवन्या , शिवल्या और शिवाली को देखकर उनका मुंह बन जाता और वो गाहे-बगाहे जैसे शिवप्रताप भानु को सुनाते हुए जोर से कह देते --" राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु ही रहते तो सही था ,,ये शिवन्या, शिवल्या और शिवाली तीन तीन बेटियां न जन्मतीं तो अच्छा रहता ,,, शिव प्रताप भानु के कानों में जब ये बात पड़ती तो उसे क्रोध तो बहुत आता मगर वो चुप रह जाता था ,उसके लिए जैसे उसके राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु थे बिलकुल वैसी ही अपनी तीनों बेटियां थीं ।
जैसे जैसे बच्चे बडे़ हो रहे थे उनके स्वभाव भी सामने आ रहे थे--
दिव्यांश प्रताप भानु जहां दब्बू और बहुत डरपोक स्वभाव का और सीधा-साधा ,सरल स्वभाव का था वहीं राज प्रताप भानु बहुत निर्भीक, साहसी और बडे़ ह्रदय वाला था ।
दिव्यांश प्रताप भानु के डरपोक स्वभाव को छोड़कर बाकी अपने ताऊ शिव प्रताप भानु को पड़ा था वहीं राग प्रताप भानु अपने चाचा दिव्य प्रताप भानु के समान स्वभाव वाला था - बहुत ही चालांक ।
दिवाकर प्रताप भानु बहुत स्वार्थी,अपना उल्लू सीधा करने वाला था और दिनकर प्रताप भानु अपने में ही केंद्रित रहने वाला था ,वो ज्यादा किसी से मतलब न रखने वाला था ।
अपने पिता की भांति राज प्रताप भानु भी अपनी तीनों बहनों पर जान छिड़कता था और राग प्रताप भानु अपनी दीदियों शिवन्या और शिवल्या से तो बहुत प्यार जताता क्योंकि वो बड़ी थीं तो उनसे कुछ मिलना ही था मगर शिवाली छोटी होने के कारण उसे देना पड़ता तो उससे वो कम ही बात करता था ।...... शेष अगले भाग में।