दिव्य प्रताप भानु प्रसन्न होता हुआ ,मन ही मन अपनी पीठ थपथपाता हुआ हवेली के बाहर जा रहा था कि मैं जैसा सोच रहा था सबकुछ वैसे ही हो रहा है अब मुझे अपना दाँव खेलना है ।गोपी हवेली के सामने वाले शिव मंदिर के चबूतरे पर बैठा हुआ था ,उसने हवेली से बाहर आते दिव्य के चेहरे पर मुस्कान देखी तो उसे आवाज लगाई -"दिव्य दादा ।"
दिव्य प्रताप भानु जाकर गोपी के पास बैठ गया और अपनी मुस्कान बनाए रहा ।
"क्या बात है दिव्य दादा ! तुरुप का इक्का हाथ लगा है क्या जो इतना मुस्कुरा रहे हो !!मुझे न बताओगे !!" गोपी ने दिव्य की तरफ देखकर कहा ।
दिव्य ने गोपी के सिर पर एक चपत मारी और फिर अपने बालों में हाथ घुमाकर बोला -"तुझे न बताऊँगा तो किसे बताऊँगा भला !! तूने एक बार कहा था न कि दिव्य दादा लोहा गर्म है वार कर दो तो सुनो वो अवसर आ गया है, मैं अब कुछ ऐसा करने वाला हूँ जिससे पूरी तरह शिव दादा पिताजी की नजरों में गिर जाएंगे और मैं सदा के लिए पिताजी का चहेता बन जाऊँगा ।"
"ऐसा क्या करने वाले हो दिव्य दादा ?" गोपी ने उत्सुकता से पूछा ।
श्रीधन हवेली के बाहर बरामदे में मालिक सूर्य प्रताप भानु की सेवा में खडा़ मन ही मन सोच रहा था -शिव बाबू अपनी बहन के विवाह पर खर्च करने को व उन्हें उपहार देने को मालिक से रुपए चाहते हैं जिसमें मैं चाह कर भी कुछ न कर सकता !! शिव बाबू कितना विकल हैं ,देख कर खराब लगता है ।
"ऐ गन्ने के चीभुर कहाँ खोया है ? इन कृषकों के द्वारा लाई हुई फसल को उचित दामों में बाजार में क्रय करवाना है ,,, और इन्हें अगली फसल के लिए उन्नत स्तर के बीज ,खाद ,कीटनाशक इत्यादि उपलब्ध कराना है ,, नंदिनी के विवाह के पश्चात समझे !!"
"ज् जी मालिक , कहीं तो न खोया हूँ ,यहीं हूँ ,, सब प्रबंध हो जाएगा मालिक ।"श्रीधन ने दोनों हाथ जोड़कर कहा ।
अगले दिवस की सुबह से ही श्रीधन कुछ कृषकों के साथ हवेली के बाहर शिव मंदिर के पीछे बारातियों के ठहरने के लिए पाण्डाल लगवा रहा था , और कुछ कृषक हवेली के बाहर पडे़ विशाल परिसर के एक तरफ बारातियों के लिए भोजन ,मिष्ठान्न इत्यादि के लिए हलवाइयों को सामान उपलब्ध करा रहे थे , मंदिर के सामने जो थोडा़ परिसर था वहाँ पर शिव प्रताप भानु ,दिव्य प्रताप भानु व गोपी के साथ जयमाल के लिए स्टेज बनवा रहा था और हवेली के बाहर पडे़ विशाल परिसर के बाकी हिस्से में पाण्डाल लगवाकर उसमें विवाह के आयोजन संपन्न कराने के लिए व्यवस्था हो रही थी ।
हवेली के बाहरी सजावट के लिए लोग आ गए थे जो अपना कार्य करना प्रारंभ कर दिए थे ।श्रीधन का कार्य बहुत बढ़ गया था ,वो कभी हवेली के बाहर जो कार्य कर रहे थे उनका निरीक्षण कर उन्हें बताता -ये ऐसे नहीं ऐसे करो ,तो कभी मंदिर के पीछे की व्यवस्था देखता था ।
इस सबमें शिव प्रताप भानु भी बराबर लगा हुआ था ।
ये सब होते होते रात्रि की बेला हो गई थी और जैसा कि श्रीधन सूर्य प्रताप भानु के आदेशानुसार सूरतपुर जाकर वरपक्ष वालों को कह आया था , वर पक्ष वाले अपने परिवार, गिने चुने नातेदार व इष्टमित्रों के साथ बारात लेकर सूर्य प्रताप भानु की हवेली के सामने शिव मंदिर के पीछे प्रांगण में पधार गए थे ।
श्रीधन ने हवेली के बाहर बरामदे में पडे़ दीवान पर नित्य की भाँति विराजे सूर्य प्रताप भानु से कहा -"मालिक वर पक्ष के लोग शिव मंदिर के प्रांगण में पधार चुके हैं ।"
सूर्य प्रताप भानु ने अपनी मूँछों को ताव देते हुए कहा -" भीतर सूचना पहुँचवाओ कि वर पक्ष वाले पधार गए हैं ताकि तुम्हारी मालकिन , उनके स्वागत के लिए आरती का थाल तैयार करें ,आरती का थाल तैयार होते ही वर पक्ष को हमारी हवेली के इस बरामदे के बाहर ये जो परिसर है यहाँ पधारने को कहो ।"
"जी मालिक "कहता हुआ श्रीधन शिव प्रताप भानु के पास गया जो कि बारातियों के स्वागत के लिए मंदिर के पीछे के प्रांगण में पहुँच चुका था ।
"शिव बाबू ,मालिक ने कहा है कि हवेली के भीतर सूचना पहुँचा दी जाए कि बारात आ गई है तो मालकिन आरती का थाल तैयार करें ।" श्रीधन ने शिव प्रताप भानु को संकेत से एक कोने में बुलाकर कहा ।
"काका आप चलो ,मैं अभी हवेली में सूचना पहुँचाता हूँ।" शिव प्रताप भानु ने श्रीधन से कहा और हवेली जाने लगा ।
श्रीधन तब तक दिव्य प्रताप भानु व गोपी की मदद लेकर बारातियों के समक्ष नाश्ता -पानी पहुँचाने लगा ।
" माँ , बारात आ गई है ,उनके स्वागत के लिए आरती का थाल तैयार करो ,तब तक उनको श्रीधन काका नाश्ता -पानी करा रहे हैं ।" शिव प्रताप भानु ने माँ दिव्या के पास आकर कहा और फिर बहन नंदिनी को देखने उसके कक्ष में चला गया ।
दिव्या ने आरती का थाल तैयार कर लिया था और तब तक दूल्हा ,उसके पिता हवेली के बाहर पडे़ विशाल परिसर में पधार गए थे ।दिव्या ने आकर उनकी आरती कर ली थी और फिर जयमाल के लिए वर और वधू जयमाल स्टेज पर पहुँचा दिए गए थे ।जयमाल होने के पश्चात भोजन होकर फिर विवाह की रस्में प्रारंभ हो गई थीं और गोपी मन ही मन सोच में पडा़ था कि दिव्य दादा बातें तो बहुत बडी़ बडी़ कर रहे थे मगर अभी तक उन्होने शिव दादा को मालिक की नजरों में गिराने को कुछ किया तक नहीं !!
अरे करेंगे तो तब जब कोई योजना बनाई होगी ,, मुझसे ही कह देते तो मैं ही कुछ युक्ति बता देता मगर न स्वयं कुछ किया और न मुझसे कुछ करने के लिए कहा ,,,, गोपी अपनी उधेड़बुन में लगा हुआ था और दिव्य प्रताप भानु नंदिनी के विवाह में बैठा गोपी का चेहरा पढ़कर मुस्कुरा रहा था ।जब उससे रहा न गया तो उसने गोपी के पास जाकर कहा -" इतना दिमाग मत लगाओ , जो मुझे करना है वो सुबह तड़के करूँगा तुम बस देखना ।
धमाका तो सुबह होगा ...........शेष अगले भाग में।