शिव प्रताप भानु का कोई समाचार न मिलने के कारण श्रीधन का मन छटपटाता रहा ...........
राज प्रताप भानु बहन शिवाली के विवाह की तिथि समीप आने के कारण विवाह की बची हुई तैयारियों में लगा था और उसी मध्य दिनकर प्रताप भानु का विवाह एक घरेलू सामान्य लड़की से हो गया ।
देखते ही देखते शिवाली का विवाह भी आ गया और शिव प्रताप भानु के बिस्तर पकड़ लेने के कारण जैसे तैसे शिवाली का विवाह भी निपट गया था ।
शिवाली के विवाह के दो मास भी व्यतीत न हुए थे कि किसी के द्वारा शिव प्रताप भानु को सूचना मिली कि शिवाली ने अपने घर के थोड़ा पहले पड़ने वाली नहर में कूद कर आत्महत्या कर ली है ।
या तो उसके ससुराल वाले उसे उसकी कमी के साथ स्वीकार नहीं कर पाए थे और उसकी हत्या कर नहर में फेंक दिया था या उस भोली की समझ में इतना तो आ गया होगा कि अब मायके लौटना उचित नहीं और उसने स्वयं ही नहर में कूदकर आत्महत्या कर ली होगी ......
ये सूचना शिव प्रताप भानु को भीतर तक तोड़ कर उन्हें मरणासन्न अवस्था में ले आई ।
शिवन्या और शिवल्या को भी दोनों ही सूचनाएं मिलीं और वे भी घर आकर पिता के समीप बैठकर बिलखने लगीं ।
" पिताजी ये सब क्या हो गया !! शिवाली हम सबको छोड़कर चली गई और अब आप इस अवस्था में !!" शिवन्या ने सिसकते हुए कहा।
" पिताजी,, हूंऊऊंं ,,, पिताजी आप हमें छोड़कर मत जाइए , हम आपके बिना नहीं रह सकते !!" शिवल्या ने शिव प्रताप भानु का हाथ थामकर रोते हुए कहा ।
शिव प्रताप भानु के अंतिम सांसें गिनने की सूचना सुनकर श्रीधन के कदम स्वयं को रोक न सके और वो शिव प्रताप भानु के घर जाकर उनके समीप बैठकर विलाप करते हुए बोला--
" शिव बाबू ये सब कैसे और क्या हो गया ?"
मानसी शिव प्रताप भानु के एक तरफ सिरहाने बैठी विलाप कर रही थी और राज प्रताप भानु,शिव प्रताप के पैरों में बैठा आंसू बहा रहा था ,राग प्रताप एक कोने में दुखित खड़ा था और रुचिरा, दामिनी व दिव्या आंखों में आंसू भरे समीप बैठी हुई थीं।
दिव्यांश प्रताप भानु भी आ गया था और वो भी आंसू बहा रहा था ।
शिव प्रताप भानु ने लड़खड़ाते हुए स्वर में श्रीधन से सब कुछ
बताया और फिर अपनी अंतिम सांसें गिनते हुए कहा -" मेरे पास इतना कुछ था ही नहीं कि मैं अपनी वसीयत बनवाता और जो है वो किसी से छुपा नहीं है ।
मेरे पास जो डेढ़ सौ एकड़ भूमि है उसके बराबर ही दो हिस्से होंगे ,मैं सूर्य प्रताप भानु नहीं हूं जो अपने पुत्रों के साथ पक्षपात करूं और दूसरे , मेरी पुत्री शिवाली के न रहने की दोषी मेरी छोटी बहू ही है ,वो शिवाली को विवाह के लिए न उकसाती तो आज मेरी बच्ची मेरे पास होती ....कहते कहते शिव प्रताप भानु की आंखों से अश्रु धार बह चली।
श्रीधन उनके दूसरी तरफ बैठा हुआ विलाप करते हुए उनके आंसू पोछने लगा ।
" पिताजी ये आप क्या कह रहे हैं !! ननद भाभी का परिहास का रिश्ता होता है और उसी को ध्यान में रखकर मैंने शिवाली दीदी की बस थोड़ी सी खिंचाई की थी ,अब मुझे क्या पता था कि वो विवाह करने की हठ पकड़ लेंगी !!" दामिनी ने अपनी सफाई दी ।
" पिताजी मुझे मेरे हिस्से की सौ एकड़ भूमि भी न चाहिए ,मैं वो भी स्वेच्छा से राग प्रताप को देता हूं , मुझे कुछ नहीं चाहिए बस आप मुझे छोड़कर मत जाइए ।" राज प्रताप कहते हुए फफक फफक कर रोने लगा।
शिव प्रताप भानु उसके सिर पर हाथ फेरते हुए दिव्या की तरफ देखकर बोले -" आप दिव्या प्रताप भानु ,आपसे करबद्ध निवेदन है ,इसे आप मेरी अंतिम इच्छा भी समझ सकती हैं .....मेरी सांसों की डोर टूटे उसके पहले ही आप अपने पति और प्रिय पुत्र पौत्रों के घर निवास करने चली जाएं ।"
दिव्या ने कुछ कहने को अधर खोले ही थे कि शिव प्रताप भानु ने उन्हें हाथ दिखाकर उनसे मुंह फेरते हुए कहा -" नहीं ,न मैं अब आपको सुनना चाहता हूं और न ही आपको इस घर में एक क्षण भी देखना चाहता हूं, आप अभी इसी समय अपने सामान सहित चली जाएं ।"
दिव्या उठकर अपने कक्ष में जाकर अपना सामान बांधने चली गई।
" मानसी , उस दिवस जो हुआ था उसके बाद से राज प्रताप और राग प्रताप ने एक दूसरे से बात तक न की अत: तुम्हें मेरे मर्णोपरांत इस घर में मध्य से एक दीवार उठवानी है ,एक तरफ राज प्रताप अपनी पत्नी रुचिरा के साथ रहे और दूसरी तरफ राग प्रताप दामिनी के साथ रहे ।"
" आप जैसा कहोगे वैसा हो जाएगा ,पर आप मुझे छोड़कर मत जाइए ,आपके बिना मैं रह न पाऊंगी ।" मानसी बिलखते हुए बोली ।
दिव्या अपना सामान लेकर घर से चली गई और शिव प्रताप भानु अपने अंतिम सफर पर चल दिए ।
शिव प्रताप भानु के निधन की सूचना पाकर दिव्य प्रताप भानु और कनक ,दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु अपनी पत्नी के साथ शिव प्रताप के घर आए ।
सूर्य प्रताप भानु भी ऐसे अवसर पर कैसे न आते !! वो भी सम्मिलित हुए ।
यहां आकर दिव्य प्रताप भानु और कनक ने देखा कि मां भी हमारे घर रहने आ गई हैं ।
शिव प्रताप भानु के दसवें और तेरहवीं के सभी कार्यक्रमों में दिव्य प्रताप भानु और कनक सम्मिलित होकर जब वापस जाने लगे तब कनक और दिव्य प्रताप भानु दिव्या के पास गए और दिव्य प्रताप भानु ने बड़ी कुटिलता से मुस्कुराते हुए सूर्य प्रताप भानु और दिव्या से कहा -" मां ,पिताजी हम अब वापस जा रहे हैं , दिव्यांश प्रताप भी अपनी पत्नी को लेकर अलग रहने लगा है ,दिनकर प्रताप भानु भी कुछ समय के लिए हमारे साथ जा रहा है ,तो पूरे घर में कोई रहेगा नहीं तो आप लोग घर के मुख्य दरवाजे के पहले, बने बरामदे के ऊपर वाले कक्ष में अपना सामान व्यवस्थित कर वहां चले जाएं ,यहां के कमरे सब बंद कर दूं वरना धूल ,मिट्टी में गंदे होंगे और साफ करने वाला कोई न होगा ना !!" ...........शेष अगले भाग में।