राज प्रताप भानु खेतों पर काम करते हुए पिता से बोला -" पिताजी ,आप चिंता न करें, शिवाली ने कह दिया है मगर वो एक दिन भी भूख सह न पाएगी और भोजन कर लेगी , वो एक दिन भोजन न करे वो मैं सह सकता हूं मगर उसको अपनी आंखों के सामने ही रखना चाहता हूं,उसका विवाह करना उचित नहीं है ।
मगर राज प्रताप भानु का ऐसा सोचना गलत साबित हुआ , पूरा एक दिन व रात हो गई मगर शिवाली ने भोजन नहीं किया , अगला दिवस हुआ ।
दोपहर का भोजन जब रुचिरा बनाती तब दामिनी ,सब्जी काटना,आटा गूंथना, सबको भोजन परोसने का कार्य करती और जब रात को दामिनी भोजन बनाती तब ये कार्य रुचिरा कर लेती थी।
अगले दिवस की दोपहर हुई , दामिनी सबको भोजन परोस रही थी , और शिवाली अपना पेट पकड़े हुए अलग दूर बैठी थी ।
शिवाली के भोजन न करने से शिव प्रताप भानु, राज प्रताप भानु,मानसी किसी के कण्ठ से निवाला उतर न रहा था और दामिनी भोजन परोसते हुए एक तरफ कहती -" शिवाली दीदी हठ छोड़कर भोजन कर लीजिए आकर !" और दूसरी तरफ शिवाली के पास जाकर उसके कंधे पर सिर टिकाकर लाड़ करने के बहाने कान में कह देती -" शिवाली दीदी थोड़ी भूख और सह लो , आपका विवाह तय हो जाएगा ।"
दो दिन बीत गए मगर शिवाली ने भोजन करना तो दूर भोजन थाल की तरफ देखा भी नहीं,बस भूख से अपना पेट पकड़े अपने कक्ष में बैठी रही ।
ये सब देखकर शिव प्रताप भानु और राज प्रताप भानु को दामिनी पर बहुत क्रोध आ रहा था मगर क्या करते !!
विवश होकर शिव प्रताप भानु और राज प्रताप भानु दोनों को निर्णय लेना पडा़ कि शिवाली का ब्याह करने के लिए वर की खोज अगले दिवस से ही प्रारंभ कर दी जाए !
पिता और भाई के इस निर्णय को सुनने के बाद ही शिवाली ने भोजन किया ।
राज प्रताप भानु अगले दिवस से शिवाली के लिए वर खोजने निकल जाता था ,जो जहां बताता ,वहां जाता था इस मध्य दिवाकर प्रताप भानु का एक महिला चिकित्सक लड़की से विवाह हो गया , जो कि वहीं रहती थी जहां दिव्य प्रताप भानु नौकरी करते थे ,उसकी शर्त थी कि मैं वहां से यहां रोज नौकरी पर न आऊंगी ,आपको यहां रहना होगा ।
अब चूंकि दिवाकर प्रताप का वहां घर था ही तो वो वहीं रहने चला गया ।
इधर 'बगल में छोरा ,नगर में ढिंढोरा'वाली उक्ति राज प्रताप भानु पर चरितार्थ हुई , शिवाली के लिए वर तीन कोस की दूरी पर ही मिल गया ।
राज प्रताप भानु ने घर आकर सबको एक पास बैठाकर जाकर सारी बात बताई -" शिवाली का विवाह यहां से तीन कोस की दूरी पर तय कर आया हूं, उन्हें शिवाली के बारे में सब बता दिया है ताकि उन्हें भविष्य में शिकायत न हो कि आपने हमें अंधेरे में रखा !!
लड़के वाले गरीब हैं , अत: उन्होने शिवाली का अपने पुत्र के लिए रिश्ता स्वीकार कर अपनी मांग रखी कि हमें पचास एकड़ भूमि दे दें ताकि मेरा पुत्र उस पर खेती कर अपना और अपने परिवार का निर्वहन कर सके, मैंने ये सोच कर उनकी मांग स्वीकार कर ली है कि वे हमसे पचास एकड़ जमीन पाकर संतुष्ट रहेंगे और हमारी शिवाली को खुश रखेंगे ।"
शिव प्रताप भानु मन ही मन सोचने लगे कि पचास एकड़ भूमि शिवाली के ससुराल वालों को दे देने पर डेढ़ सौ एकड़ ही भूमि बचेगी पर शिवाली को वो लोग खुश रखें तो ये भी स्वीकार है ।
" क्या सोच रहे हैं पिताजी , और कोई विकल्प भी न था !!" राज प्रताप भानु बोला ।
ये सुनकर दामिनी के मुंह पर बारह बज गए और शिव प्रताप भानु कुछ कहते इसके पहले ही राग प्रताप भानु उठकर बोला -" ऐसा है एक तो वैसे भी हमारे बाबा की महान कृपा से हमें ढा़ई सौ एकड़ भूमि ही मिली , उसमें पच्चीस पच्चीस एकड़ भूमि शिवन्या दीदी और शिवल्या दीदी ले गईं अब दो सौ एकड़ भूमि बची है उसमें से पचास एकड़ भूमि शिवाली के विवाह पर देने का आप स्वीकार कर आए !
ये तो वही बात हो गई --
' जिनके अपने खाने के लाले वो बांट रहे निवाले '
तो मैं तो स्पष्ट कहे देता हूं कि दादा ये जो दानवीर कर्ण बनकर पचास एकड़ भूमि देने का आप स्वीकार कर आए हैं ,ये अपने सौ एकड़ भूमि में से दीजिएगा , मैं अपने सौ एकड़ भूमि पूरी लूंगा।
" ये मेरी और तुम्हारी भूमि क्या है !! अभी जो भी जितनी भी भूमि है वो पिताजी की है ,घर की है और उसमें से किसको कितना देना है ,पहले ये देखा जाएगा ।" राज प्रताप भानु ने कहा ।
" जब दो सौ एकड़ भूमि है जो स्पष्ट है कि हम दो भाई हैं तो सौ एकड़ आपकी और सौ एकड़ मेरी हुई , ये आपको विवाह तय करने के पूर्व सोचना था , मैं अपनी पूरी सौ एकड़ भूमि ले लूंगा ,बाकी आप जानें और आपका काम ।" राग प्रताप भानु ने तैश में कहा ।
मानसी और शिव प्रताप भानु इन दोनों की बात सुन रहे थे और हत्प्रभ थे कि राग प्रताप भानु कैसे भूमि के लिए अपने भाई से तैश में बात कर रहा है !!
रुचिरा चुपचाप बैठी थी , दामिनी अपना मुंह लटकाए थी और दिव्या अपने कक्ष में थी और वहीं से सब सुन रही थी।
" राग प्रताप ये मत भूलो कि ये जो आग लगी है ये तुम्हारी ही पत्नी की लगाई हुई है ,, ये न जानो कि किसी को यहां पता नहीं कि शिवाली को विवाह की हठ करने को उसके कान किसने भरे !!"शिव प्रताप को क्रोध आ गया और वो बिगड़ कर बोले ।
" हाय ससुर जी !आपका संकेत मेरी तरफ है ,मैं तो....एक मिनट तुम चुप रहो दामिनी "
दामिनी बोली ही थी कि उसे चुप कराते हुए राग प्रताप भानु ने कहा -" हां तो ! इस पागल को जीवन भर क्या अपनी छाती पर बैठाए रहने का विचार था !!"
" बस राग प्रताप ............शेष अगले भाग में।