"जानती हूँ मैडम जी ,, उसी संबंध में बात करने आई हूँ।"सुरतिया ने दिव्या के पैरों के पास भूमि पर पडी़ दरी पर बैठते हुए कहा ।
"हाँ बोल क्या बात करनी है तुझे ?"दिव्या ने पूछा ।
"वो मैडम जी ,कल रात से मनिका के बाबू बहुत गुमसुम उदास हैं , कि नंदिनी बिटिया चली जाएगी ,, मैंने तो उसे गोद में खिलाया है तो मेरा मन भी बहुत भारी है तो कल रात हम दोनों ने मिलकर एक निर्णय लिया है ,आपको उचित लगे तो आप उसे मालिक तक पहुँचाकर उनकी अनुमति दिला दीजिए ।" सुरतिया ने कहा ।
"कैसा निर्णय सुरतिया !!स्पष्ट कहो ना !!"दिव्या अधीर होकर बोली ।
"मैडम जी हम दोनों चाहते हैं कि नंदिनी बिटिया के साथ मनिका भी चली जाए और नंदिनी बिटिया के साथ ही रहे ,,इससे नंदिनी बिटिया की मदद भी हो जाएगी और उसका मन भी पूरा रहेगा क्योंकि दोनों में बचपन से सख्य भाव है और नंदिनी बिटिया मनिका से ही अपने मन की गाँठ खोल पाती है ,, उससे सब कुछ कह लेती है ना !!" सुरतिया ने कहा ।
दिव्या की आँखें भर आईं और उसने सुरतिया के हाथों पर अपना हाथ रखते हुए कहा -"सुरतिया ,तू अपनी मनिका को नंदिनी के साथ भेज देगी !! तू बिलकुल अकेली रह जाएगी ये सोचा कि नहीं ,, भावनाओं में भरकर कोई निर्णय न लिया जाता है ,, पर तेरे भाव देखकर बहुत अच्छा लगा मुझे ।"
"क्या मैडम जी ,आप भी !!मनिका को जीवन भर अपने पास तो न रख सकती हूँ ,,, एक न एक दिन तो उसे विदा करना ही पडे़गा ,, तो फिर उसे नंदिनी बिटिया को उपहार में दे दूँ तो उसे कितना अच्छा लगेगा !!और हम गरीब दे ही क्या सकते हैं !!
नंदिनी बिटिया की खुशी के लिए इतना तो कर ही सकती हूँ ना !!" सुरतिया ने कहा ।
"तुम दोनों अगर यही चाहते हो तो मैं तुम्हारे मालिक से बात करके देखूँगी ,,वो मानें या न मानें ये उनकी इच्छा पर होगा ।" दिव्या ने निश्वास छोड़़कर उठकर खडे़ होते हुए कहा ।
" मालिक मान जाएं तो सही है मैडम ,, नंदिनी बिटिया तो अब पंद्रह दिन ही यहाँ है ,, तो ...." सुरतिया आगे कुछ कहती कि दिव्या ने उसकी बात को काटकर हैरानी में भरकर पूछा -"क्या पंद्रह दिन !!बस पंद्रह दिन !!"
"आपको मालिक ने न बताया !! 'ये'कल सूरतपुर जाकर सब तय करके आए हैं जैसे मालिक ने आदेश दिया था और उसके अनुसार आज से पंद्रहवें दिन पूरनमासी को नंदिनी बिटिया का विवाह है !" सुरतिया भी खडे़ होकर बोली।
"मुझे तो तुम्हारे मालिक ने ये न बताया !! वो तो उतना ही बताते हैं जितना उनसे पूछो !! पंद्रह दिन में विवाह की सारी तैयारियाँ कैसे होंगी !! कपडे़,जेवर, गृहस्थी के सामान के साथ और भी कितना कुछ करना होता है !!"दिव्या अपना सिर पकड़ते हुए बोली ।
" अब जो भी करना है इसी अवधि में करना होगा मैडम जी ।"कहकर सुरतिया गृहकार्य करने चली गई और दिव्या का मन खिन्न हो उठा ।
सुरतिया और श्रीधन जब रात को हवेली के पीछे बने अपने घर जाते तो सुरतिया पूरे दिन हवेली के भीतर क्या क्या घटित हुआ वो श्रीधन को बताती और श्रीधन हवेली के बाहर क्या कार्य हुए ,मालिक से क्या वार्ता हुई , हर घडी़ की बात बताता था ,इसी से सुरतिया को पता चला था कि नंदिनी का विवाह पूरनमासी को है ।
एक ओर जहाँ दिव्य प्रताप भानु को कोई फर्क ही न पड़ रहा था कि नंदिनी चली जाएगी वहीं दूसरी तरफ शिव प्रताप भानु का किसी कार्य में मन ही न लग रहा था ,, एक ही तो बहन थी उसकी जिसपर वो जान छिड़कता था मगर पिता के आगे कुछ कर न पाता इसका उसे बहुत क्षोभ था।
पिताजी के इस निर्णय से उसके मन से उसके पिता दूर ही हुए थे ।
रात की बेला में जब सूर्य प्रताप भानु अपने कक्ष में आए तो दिव्या को लेटे हुए पाया ।वो बिस्तर पर बैठते हुए बोले -"आज बहुत शीघ्र सोने के लिए लेट गई हो !!"
दिव्या उठकर अपने दोनों घुटनों पर अपने दोनों हाथ रखते हुए बोली -"आपको क्या !!आप जो चाहते हैं करते हैं तो मैं क्या अपने हिसाब से लेट भी न सकती !!"
सूर्य प्रताप उन आदमियों में से न थे जिनको पत्नी के रूठने की परवाह होती है ।
वे बोले -"देखो मैं पूरे दिन भर खेत ,खलिहान के कार्यों में व्यस्त रहकर रात्रि में ही अपने कक्ष में आता हूँ तो मुझे कक्ष में किसी प्रकार की गर्मी न चाहिए ,, जो कहना हो स्पष्ट कहो वरना चुपचाप सो जाओ ,मुझे भी नींद का आनंद लेना है ।"
दिव्या भीतर ही भीतर कुढ़कर मन में बोली -फिर क्यों कहा कि आज बहुत शीघ्र सोने के लिए लेट गई हो ! इनसे तो रूठने का भी कोई फायदा नहीं है ,, कैसे इंसान के गले बाँध दिया मेरे घरवालों ने मुझे !! फिर सोचा कह ही दूँ और बोली -"आपने मुझे बताया नहीं कि आपने नंदिनी का विवाह इस पूरनमासी को तय किया !!पंद्रह दिन बाद !!इतने कम दिनों में विवाह की तैयारियाँ कैसे होंगीं !!"
सूर्य प्रताप जो कि सोने के लिए आँखें मूँदकर लेट चुके थे ,आँखें मूँदे हुए ही बोले -"तैयारियाँ क्या करनी हैं !!नंदिनी को विदा ही तो करना है और वो कर दिया जाएगा !!"
दिव्या ,सूर्य प्रताप का उत्तर सुन कर अवाक रह गई कि ये क्या कह रहे हैं !! बेटी का विवाह और तैयारियाँ ही न करनी हैं !!
फिर सोचा कि शायद नींद में खलल न हो इसलिए कह दिया था , भोर में बात करूँगी और वो भी लेट कर सोने का प्रयास करने लगी ।
दिन पर दिन बीत रहे थे मगर दिव्या की अपने पति सूर्य प्रताप भानु से बात ही न हो पा रही थी ।सूर्य प्रताप भानु रात्रि में कक्ष में आते तो सीधे पड़कर सो जाते थे और दिन में दिव्या सुरतिया के द्वारा श्रीधन से कहकर उन्हें भीतर भेजने को कहती तो वो कहलवा देते कि समय नहीं है ,, दोनों समय का भोजन भी सूर्य प्रताप भानु हवेली के बाहर के परिसर में बने बरामदे में ही करते थे तब भी उनके पास तमाम लोग बैठे कुछ न कुछ बात ही किया करते थे ............... शेष अगले भाग में।