जैसे जैसे बच्चे बडे़ हो रहे थे उन्हें चीजें समझ आ रही थीं । शिवन्या, शिवल्या और शिवाली को समझ आने लगा था कि बाबा उन्हें पसंद न करते हैं तो वो अब हवेली न जाकर अपने यहां शिव मंदिर के सामने ही अपने गुड्डे-गुड़ियों के साथ आपस मे ही खेलती रहती थीं , राज प्रताप भानु बड़ा होने के कारण बाबा का अपनी बहनों के प्रति व्यवहार देखकर हवेली न जाकर अपने यहां ही अपने खिलौनों से खेल लेता था और राग प्रताप भानु अपने स्वभाव के कारण हवेली में दिव्यांश प्रताप भानु, दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु के साथ खेलता और दिव्यांश प्रताप भानु के खिलौने तोड़ देता था , दिव्यांश प्रताप भानु सीधा होने के कारण कुछ न कहता मगर मजाल क्या थी कि दिवाकर प्रताप भानु के खिलौने राग प्रताप भानु छू भी ले , दोनों की प्रकृति एक थी , दोनों एक दूसरे के लिए नमक थे , 'नमक से नमक न खाया जाता है 'वाली उक्ति उन पर फिट बैठती थी वहीं दिनकर प्रताप भानु सबसे अलग अपने में ही मगन रहता था ।
मानसी अपने गृह कार्यों में लगी रहती थी ,उसे दिव्या से कोई सरोकार न था क्योंकि वो भी समझ चुकी थी कि मां के लिए दिव्य प्रताप भानु और उनका परिवार ही पहले है बाद में उसका परिवार .....
दिव्या मानसी को बच्चों के साथ लगे देखती तो स्वयं पाकशाला में जाकर जल्दी से जो बना पाती बना देती और हवेली जाती और कनक दूसरे कार्यों में उलझी होती तो वहां पाकशाला में जाकर खाना बना देती थी ।
शिव प्रताप भानु को ये सब बुरा न लगता ,उसे और मानसी को खराब तब लगता जब दिव्या उसके बच्चों से ज्यादा दिव्य प्रताप भानु के बच्चों का बखान करते न थकती , ज्यादा समय हवेली में दिव्य के बच्चों के साथ ही बिताती और जब उसके यहां होती तब भी माला जपती रहती -पता नहीं दिवाकर ने खाना खा लिया होगा कि नहीं !! दिनकर ने सही से नाश्ता किया होगा कि नहीं !! उनके लिए कुछ बनाकर लिए जाऊं........ दिव्या के साथ 'तन यहां मगर मन कहां ' वाली बात रहती और उसकी ये बात राज प्रताप भानु,राग प्रताप भानु, शिवन्या शिवल्या और शिवाली भी महसूस करते कि दादी हवेली के बच्चों को ज्यादा मानती हैं ।
समय तीव्र गति से बीतते बीतते कब सारे बच्चे बडे़ हो गए थे जैसे पता ही न चला था ।
दिव्य प्रताप भानु ने अपने कार्य क्षेत्र वाले स्थान जो कि उसकी हवेली से तीस किलोमीटर दूर था वहां पक्का घर बनवा लिया था और उसके आधे भाग में किराएदार रखकर आधा स्वयं के पास रख लिया था जिसमें वो अपने परिवार सहित रहने लगा था क्योंकि उसके बच्चे वहीं अपनी पढ़ाई कर रहे थे ।
दिव्य प्रताप भानु और कनक के चले जाने से सूर्य प्रताप भानु हवेली में अकेले रह गए थे ।
शिवप्रताप भानु के दोनों बेटे राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु ने पढा़ई में रुचि न लेकर खेती बाड़ी करना ही चुना था ।
शिवन्या और शिवल्या ने दसवीं तक पढ़ कर आगे पढ़ना बंद कर दिया था और शिवाली थोड़ी मंद बुद्धि की थी तो उसको पढा़या ही न गया था ।
चूंकि सूर्य प्रताप भानु हवेली में अकेले रह गए थे , जब छुट्टियां होतीं तभी दिव्य प्रताप भानु का परिवार आता और फिर चला जाता था तो दिव्या ही हवेली जाकर सूर्य प्रताप भानु के लिए दोनों समय का भोजन बनाती थी जो कि राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु दोनों को बहुत बुरा लगता था क्योंकि अब तक सारी बातें उन दोनों को भी पता चल चुकी थीं कि बाबा कैसे हैं और दादी का रवैया कैसा रहा !!
दोनों ही पिता शिव प्रताप भानु से कहते कि जब दादी अपने हिस्से में हैं तो हवेली दौड़ दौड़ कर क्यों जाती हैं !!
बाबा की जिम्मेदारी तो दिव्य चाचा की है तो वो जानें ,, बाबा को भी अपने साथ ले जाएं या कनक चाची को यहां भेजें बाबा के भोजन के लिए ,, ये वो सोचें !!
राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु को पक्षपाती बंटवारे के बारे मे भी पता चल चुका था और उनके मन में बहुत रोष था कि बाबा ने ये कैसा बंटवारा किया कि पूरी हवेली दिव्य चाचा की और हम लोगों को इतनी कम जगह जिसमें हमारा घर बना है !!
इस बात को लेकर उनकी मानसी के साथ बहस भी हो जाती कि पापा दब गए इसलिए उन्हें दबा लिया गया ,उन्हें अपने अधिकार के लिए कुछ करना तो चाहिए था मगर वो तो जो मिला उसी को लेकर चुप रह गए !!
इधर सूर्य प्रताप भानु बहुत ज्यादा बीमार हो गए ।शिव प्रताप भानु ने दिव्य प्रताप भानु के पास संदेश भिजवाया मगर दिव्य प्रताप भानु ने दवाइयों पर रुपए खर्च न हों ये सोचकर सांस ही न ली और हारकर सूर्य प्रताप भानु की दवा शिवप्रताप भानु ने करवानी प्रारंभ कर दी।
सालों सूर्य प्रताप भानु की दवा,मंहगी मंहगी जांचें, इंजेक्शन इत्यादि पर शिव प्रताप भानु का जाने कितना रुपया खर्च होता जा रहा था और दिव्य प्रताप भानु किसी रात को आता ,पिता का हाल-चाल लेकर रात में ही भाग खडा़ होता कि कहीं शिवदादा उसे खर्च किए जा रहे रुपयों की पर्ची न पकड़ा दें और वो रुपए उसे न देने पड़ जाएं !!
शिव प्रताप भानु और मानसी भी इस बात को समझ रहे थे और राज प्रताप भानु व राग प्रताप भानु भी पर ये अवसर दिव्य प्रताप भानु से इस विषय पर बात करने का न था ।
एक सामान्य आदमी बिक जाए इतने रुपए लग गए तब जाकर सूर्य प्रताप भानु सही हुए थे और उनके सही होते ही दिव्य प्रताप भानु और कनक अपना परिवार लेकर हवेली आ गए थे और संदेवना प्रकट करने लगे थे -"पिताजी आप कितना ज्यादा बीमार हो गए थे , नौकरी की वजह से छुट्टी तक न मिलती थी जो आकर आपकी सेवा ही कर सकते !!
दिव्यांश प्रताप भानु बाबा के सीने से लगकर ह्रदय से रोया था मगर दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु को जैसे कोई फर्क ही न पड़ा था ।..........शेष अगले भाग में।