मानसी शिव प्रताप भानु के पास बैठती हुई बोली ,-" राज और राग दोनों हवेली के बंटवारे की बात करने पिताजी के पास जाएंगे , मुझे तो यही लग रहा है कि पहले तो पिताजी ही उसके बाद दिव्य प्रताप और उनके दिवाकर व दिनकर प्रताप आसानी से हवेली बंटने न देंगे !!"
" हां ,वो लोग झगड़ा तो करेंगे ही मगर इसके कारण क्या मेरे बाद मेरे बेटों संग भी अन्याय हो !! जो होगा वो देखा जाएगा मगर मैं जानता हूं मेरे राज प्रताप और राग प्रताप अपनी जगह सही हैं तो मैं तो उनके साथ हूं ।"शिवप्रताप ने कहा ।
अगले दिवस राज प्रताप भानु अपने खेतों की तरफ जाने के लिए घर से निकला ही था कि हवेली से निकलकर दिव्यांश प्रताप भानु उसके सामने आकर उसके पैर छूते हुए बोला -" प्रणाम राज दादा ।"
राज प्रताप ने भी आशीष देते हुए कहा -"खुश हो दिव्यांश प्रताप" और आगे की तरफ जाने लगा ।
"दादा , ये बड़ो की बातों में तो मैं न पड़ना चाहता मगर मैं इतना जानता हूं कि आप और राग प्रताप भानु मेरे ही भाई हो और शिवन्या, शिवल्या और शिवाली मेरी ही बहनें हैं , अपनी मां का मैं कुछ कर न सकता पर मेरा मन आप सबके मन से पूरी तरह जुड़ा है ।"दिव्यांश प्रताप भानु ने राज प्रताप भानु से अपना मन हल्का किया ।
"जानता हूं दिव्यांश, हम लोगों को तुमसे कोई शिकवा नहीं मगर कल शाम को मैं और राग प्रताप हवेली आएंगे ,बाबा से बात करने ,अभी खेतों पर जा रहा हूं ।" कहकर राज प्रताप भानु चला गया ।
अगले दिवस रविवार था इस वजह से दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु भी हवेली में ही थे ।
राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु हवेली गए और फाटक पर खटखटाया ।
दरवाजा दिवाकर प्रताप भानु ने खोला और राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु को देखकर बोला -" आप लोग यहां , आइए ।"
सामने ही बेंत की कुर्सियां पड़ी थीं और वहीं सूर्य प्रताप भानु अपना नाश्ता कर रहे थे ।
राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु ने सूर्य प्रताप भानु के चरण स्पर्श कर वहीं उनके पास बैठकर कहा -"बाबा ,आपसे कुछ बात करने आए हैं ।"
दिवाकर प्रताप भानु वहीं बैठ गया और कुछ देर बाद भीतर से दिनकर प्रताप भानु भी आया और वो भी इन दोनों को देखकर वहीं बैठ गया ।
"चाय और नाश्ता लोगे !!" सूर्य प्रताप भानु ने पूछा ।
" नहीं बाबा ।" राग प्रताप भानु ने कहा ।
"अच्छा, फिर क्या बात करनी है बताओ ।" सूर्य प्रताप भानु ने पूछा।
" बाबा , हम लोग यहां हवेली में बंटवारे की बात करने आए हैं , हम दोनों बडे़ हो गए हैं तो हमें भी रहने की जगह चाहिए।" राज प्रताप भानु ने विनम्रतापूर्वक कहा।
" हां तो तुम्हारे पिता को बंटवारे में जो हिस्सा मिला उसमें रह तो रहे हो और क्या चाहिए !!" सूर्य प्रताप भानु ने कहा ।
" बाबा वो बंटवारा सही न था , ये आप भी जानते हो ,हम उस संबंध में बात न करें वही ठीक है ,पर अब हमारे विवाह होंगे तो हमें भी रहने के लिए पर्याप्त जगह तो चाहिए !! पूरी हवेली दिव्य काका के पास है और पिता जी के पास जो हिस्सा है वो इतना नहीं कि हम भी अपने विवाह के बाद अपने परिवार सहित रह सकें !!हवेली का बंटवारा फिर से होगा बाबा ।"राग प्रताप भानु ने कहा ।
" देखिए बाबा जो बंटवारा कर चुके वो कर चुके अब दोबारा बंटवारा न होगा ।" दिवाकर प्रताप भानु ने बेरुखी से कहा ।
दिवाकर और दिनकर दोनों ही राज प्रताप और राग प्रताप भानु से छोटे थे मगर उन्हें अपने से बडों से बात करने का सलीका जैसे आता ही न था !!
" बात बाबा से हो रही है तो तुम बीच में न बोलो वही सही होगा , हम तो अभी सिर्फ हवेली के बंटवारे की बात कर रहे हैं , !!" राज प्रताप भानु ने कड़े शब्दों में दिवाकर प्रताप भानु से कहा ।
सूर्य प्रताप भानु कुछ सोच में पड़ गए , कुछ देर बाद वे बोले -" बात तुम्हारी सही है , मगर मैं तो बंटवारा कर चुका ,अब तुम दोनों जानों और ये तीनों जानें ,आपस में समझ लो ।" और वे उठकर भीतर चले गए।
" और हम तीनों हवेली में तुम दोनों को हिस्सा कदापि न देंगे ,अब आप दोनों जा सकते हो ।" दिवाकर प्रताप भानु ने मुस्कुराकर कहा ।
राज प्रताप भानु हंसा और बोला -" तुम दोनों होते कौन हो हमें हमारा हिस्सा लेने से रोकने वाले !! हम भी देखते हैं कि कैसे हवेली में हिस्सा न मिलता है ,हम तो अब यहीं रहेंगे " और वे दोनों अपने चप्पलों सहित हवेली के भीतर जाने लगे ।
अंदर कनक भोजन की तैयारी कर रही थी ।राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु को हवेली में और चप्पलों सहित आते देख कर तेज स्वर में बोली -" अरेएएए तुम दोनों यहां !!और चप्पलों सहित क्यों आ रहे हो ?? निकलो बाहर ।"
राज प्रताप भानु ने कनक की बात का कोई उत्तर न देते हुए राग प्रताप भानु से कहा -"देखो छोटे कौन सा कक्ष खाली है ,वहीं विश्राम करें ....."
"दादा इधर दाहिने हाथ वाले कक्ष खाली हैं इधर आइए ।" राग प्रताप भानु ने राज प्रताप भानु से कहा और दोनों दाहिने तरफ वाले एक एक कक्ष में जाकर वहां पडे़ बिस्तर पर पसर गए।
कनक हाथ में कलछी लिए उन दोनों के पीछे ही पीछे उन कक्षों में जाकर चीखी -" तुम दोनों यहां क्यों आकर पसरे हो ?? अपने घर जाओ , इन बिस्तरों पर धुले चादर बिछाए हैं ,सीधे उठ लो वरना बहुत बुरा होगा ।"
न राज प्रताप भानु ने कनक की बात का कोई उत्तर दिया न राग प्रताप भानु ने ,दोनों बिस्तर पर आराम से लेटे रहे ,अब कनक उन्हें जबरन खींच कर उठा न सकती थी तो वो दनदनाते हुए मानसी के यहां गई और उसके घर के बाहर से ही चीख कर बोली -" जेठानी जी ,ये अपने सपूतों को मेरी हवेली क्यों भेजा है !! वो दोनों मेरे कक्षों में ऐसे पसरे हैं जैसे वो कक्ष उनके बाप के ही हों ,उनसे कहिए मेरी हवेली से सीधे निकल लें ।"
आवाज सुनकर मानसी बाहर आई और बोली .........शेष अगले भाग में।