नर गौरैया ने आगे की कथा मादा गौरैया को पुनः सुनानी आरंभ कर दी --
जहाँ एक तरफ शिव प्रताप के मन में अपने पिता सूर्य प्रताप के प्रति पर्याप्त खटास आ गई थी वहीं दिव्य प्रताप ने मन ही मन निश्चय किया था कि पिता का मन जीतना है मुझे ,,मुँह से शहद ही तो टपकाना है उसमें मेरे पास से जाता ही क्या है !!
दिव्य प्रताप को हवेली के बाहर गोपी ने बुलाकर कहा -" दिव्य दादा लोहा गर्म है वार कर दो ।"
" तू मुझे न पढा़या कर गोपी ,मुझे जो करना है वो मैं सब तय कर चुका हूँ और मुझे कैसे ,क्या व कब करना है वो मैं जानता हूँ ,तू बस देखता रह !!"दिव्य ने कहा ।
समय बीत रहा था ।शिव प्रताप अपना कार्य पूरी इमानदारी से कर रहा था ।श्रीधन ने अपने पुत्र को भी हवेली की जमीन,बाग इत्यादि के कार्यों का निरीक्षण करने , व लिखा पढी़ करने के लिए अपने साथ ही लगा लिया था और गोपी भी पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य वहन कर रहा था ।
श्रीधन को क्या मालूम था कि गोपी जो इन कार्यों को रुचि के साथ कर रहा है ,ये उसे दिव्य भानु ने कहा है करने के लिए !!
सूर्य प्रताप भी प्रसन्न थे कि श्रीधन के बुजुर्ग होने के पश्चात गोपी है जो मुनीम का कार्य करेगा पर उनके सामने नंदिनी की जिम्मेदारी थी जिसे वो शीघ्रतिशीघ्र निभाकर उससे विलग हो जाना चाहते थे ताकि उसके विवाह के पश्चात सारी चल व अचल संपत्ति दोनों पुत्रों में बाँटकर स्वयं आराम का जीवन व्यतीत करें ।
एक रात्रि सूर्य प्रताप भानु पत्नी दिव्या के पास बैठकर बोले -" मैंने श्रीधन से कहकर नंदिनी के लिए सुयोग्य वर की तलाश प्रारंभ करवा दी है , जैसे ही वर मिले मैं उसके हाथ पीले कर उसे विदा कर दूँ ।"
"ये आप क्या कह रहे हो ! अभी नंदिनी की उमर ही क्या है !! शिव प्रताप बीस का हुआ है ,दिव्य अठारह का और नंदिनी तो अभी बारह साल की ही है !! आप उसका बाल विवाह करेंगे !! इतना भारू है हमारी बच्ची !!" दिव्या ने हैरानी में भरकर कहा ।
"अरे !वर कोई गाजर मूली तो है नहीं कि जब चाहा तब खेत से उखाड़ लाए और चरचराकर खा लिए ! बहुत खोजबीन करनी पड़ती है तब जाकर मिलता है !अभी से खोजना प्रारंभ करेंगे तब कहीं जाकर जब वो सोलह की होगी तब विवाह हो पाएगा " सूर्य प्रताप भानु ने दिव्या की तरफ से करवट बदल कर सीधे लेटते हुए कहा ।
दिव्या मन ही मन सोचने लगी कि 'ये' जो ठान लेते हैं तो कर के ही दम लेते हैं और इनको नंदिनी जरा भी नहीं सुहाती तो क्या भरोसा ,अगले बरस ही लड़का मिल जाए तो उसके हाथ अपनी नंदिनी का हाथ थमा दें !
बेचारी नंदिनी को चौके चूल्हे मेझ तो लगा ही दिया है ! सुरतिया और उसकी बेटी गृह कार्य करती थी मगर नंदिनी को लगाना बहुत जरूरी था !मेरी फूल सी बच्ची कितनी कुम्हलाई हुई दिखती है मगर इनकी बला से !!
इनके ऊपर लगाम कसने वाला भी तो कोई नहीं है !!
सोचते सोचते दिव्या सोने लगी थी ।
सूर्य प्रताप को जहाँ कोई लड़का बताता ,वे श्रीधन को पूरी जाँच-पड़ताल करने उसके पते-ठिकाने पर भेज देते थे और जब श्रीधन लौट कर आता था तब उससे पूछते बात बनी कि नहीं !! श्रीधन दबे स्वर में कहता -"मालिक नंदिनी बिटिया बच्ची है तो लोग प्रश्न उठा देते हैं कि इतनी शीघ्रता क्या है विवाह करने की !! और सूर्य प्रताप बौखला जाते थे ।
सूर्य प्रताप को ये लगता था कि लोग उनकी संपत्ति देखकर अपने बेटे का विवाह उनकी नंदिनी से करने के लिए सहर्ष तैयार हो जाएंगे ,उनकी नंदिनी की उम्र उनके लिए मायने न रखेगी ।
सूर्य प्रताप के लिए एक एक दिन भारी हो रहा था और ये देखकर नंदिनी को बहुत आत्मिक कष्ट हो रहा था ।वो पाकशाला में सुरतिया की बेटी से एक दिवस रोते हुए बोली -" तेरे पिता तो तेरे पर जान छिड़कते हैं , पिताजी की सेवा से निवृत्त होकर वो तुझे ही पुकारते हैं ,तेरे लिए वो सब करते हैं जो तू चाहती है मगर मेरे पिता के लिए तो मैं जैसे लावारिस वस्तु हूँ जिसे वो अपनी आँखों के सामने से किसी तरह बस हटाना चाहते हैं ,, मन करता है कि मैं स्वयं कहीं चली जाऊँ !!"
सुरतिया की बेटी ने मायूस होकर कहा -" मेरे पिता मुझे मुँह से ही दुलार कर सकते हैं ,, मैं उनकी स्थिति परिस्थिति समझती हूँ तो ऐसी कोई इच्छा ही न रखती जो वो पूरी न कर पाएं और उनका मन दुखे कि मैं अपनी बेटी की इच्छा पूर्ण न कर पाया !!
हम गरीबों के स्वप्न होते ही कहाँ हैं !!
बस ईश्वर की कृपा से मालिक के दिए घर में रहकर अच्छा पहन-खा रहे हैं ।
शिव प्रताप भानु पाक शाला में जल पीने आया था और उसने इन दोनों का वार्तालाप सुना तो वो नंदिनी के पास आकर उसे आलिंगन कर बोला -"मेरी बहन फिर कभी ऐसी नकारात्मक बात सोची तो तुझसे कभी बात न करूँगा !! माना पिताजी के समक्ष मेरी न चलती है मगर पिताजी तेरा जहाँ भी विवाह करेंगे वहाँ मैं तुझसे मिलने आया करूँगा और मेरे हिस्से में जो पिताजी के द्वारा आएगा उसमें से मैं तेरी खुशी के लिए भी खर्च करूँगा,तू यहाँ रहे या पतिघर ,तेरे सुख के लिए तेरा भाई सदा प्रयासरत रहेगा ।"
साल बीतते जा रहे थे और सूर्य प्रताप की निराशा चिड़चिडा़हट में बदलती जा रही थी ।वो बिना बात के ही बहुधा गोपी को,श्रीधन को और अपने खेतों में कार्य करने वाले कृषकों पर झल्ला जाते थे ,दिव्य मन ही मन सोचता रहता कि नंदिनी का विवाह तय हो तो वो अपनी सोची हुई अगली चाल चले ।
उसे भली -भाँति ज्ञात था कि जब नंदिनी का विवाह होगा तब क्या होगा ,, और मुझे उसका ही लाभ उठाना है ।
आखिरकार जब नंदिनी ने सोलहवीं वर्ष में प्रवेश किया तब तक श्रीधन ने उसके योग्य एक वर के घर जाकर सब जाँच-पड़ताल करके अगली बार पुनः आकर बात तय करने सूर्य प्रताप को सूचित किया ..............शेष अगले भाग में।