दिव्या का बुझा और उदास मन याद करने लगा कि कब 'इन्होनें' मुझसे प्यार से बात की !! विवाह के बाद से अभी तक इन्होने उसपर अपनी व्यस्तता ही तो थोपी , अपना रौब ही तो झाडा़ और कुछ नहीं ,,, प्यार के दो बोल तो उसने उनके कभी ही सुनें हों !! हाँ जब उसके शिव हुआ तब उनकी प्रसन्ना देखते ही बनती थी पर वो भी बाहर वाले लोगों के साथ , उसके साथ तो इन्होने वो भी न बाँटी !! आज भी वैसे ही याद है जब शिव हुआ था और ये बाहर लोगों के साथ बैठे हुए थे और खेतों में कार्य करने वाले एक कृषक ने उनसे कहा था -"मालिक इस बार फसल बहुत अच्छी हुई है" तो इन्होने मुस्कुरा कर छाती चौढी़ कर कहा था -"मेरी गृह फसल भी अच्छी हुई है इस बार।"
दूसरी बार दिव्य के होने पर इनकी खुशी का पारावार न था ,,लेकिन तब भी उसके साथ बैठकर तो वो दो घडी़ बैठकर खिलखिलाए नहीं ।
अतीत के पन्ने फड़फडा़ ही रहे थे उसके सामने कि बाहर से उठकर शिव प्रताप भानु भीतर माँ के पास आया और बोला -"माँ तुम तो कुछ कहो पिताजी से !! वो जो कर रहे हैं वो उचित नहीं है !!कैसी माँ हो आप जो अपनी बेटी के साथ होते अन्याय को भी मौन धरकर चुपचाप होने दे रही हो !!"
दिव्या उदासी से बोली -"तुम्हें क्या लगता है शिव ,मैंने प्रयास न किया ,, पर तुम्हारे पिताजी के आगे मेरी कभी चली है जो अब चलेगी ,, बेटा अपने पिताजी को कुछ देर के लिए भीतर भेज दो , आवश्यक कार्य है ,, उन्हें बुलाती हूँ मगर वो आते ही नहीं और देखते देखते नंदिनी के विवाह का दिन भी नज़दीक आया जा रहा है !!"
"माँ वही बात तो मैं आपसे करने आया था !! नंदिनी का विवाह सिर पर है ,, पिताजी तय कर चुके हैं तो होकर रहेगा मगर कोई खरीददारी नहीं !! कोई तैयारियाँ नहीं !! पिताजी आखिर क्या सोचे हैं !!"
"वही तो तुम्हारे पिताजी बता न रहे हैं ,मैंने पूछा था तो कहा कि तैयारियाँ कैसी !विदाई करनी है हो जाएगी !!उनके इस उत्तर से मेरा दिल बैठा जा रहा है ,,
मेरी तो वो सुनते ही नहीं ,तुम ही अपने पिता के मन की थाह लो ना !!" दिव्या ने कहा ।
"माँ मैं पिताजी को यहाँ आपके पास भेजने का प्रयास करता हूँ ,वो आ जाएं तो आप बात कर लो वरना फिर मैं प्रयास करूंगा " कहकर शिव प्रताप भानु बाहर गया और सूर्य प्रताप भानु से बोला -"पिताजी ,दो घडी़ के लिए भीतर चले जाइए ,माँ को आवश्यक कार्य है आपसे !!"
सूर्य प्रताप ने प्रथमतः झुंझुलाहट वाला मुँह बनाया फिर कुछ सोचकर उठकर भीतर चले गए ।दिव्य प्रताप भानु भी पिता के पीछे ही पीछे हवेली के भीतर चला गया जानने के लिए कि माँ पिताजी को किस कारण से भीतर बुला रही हैं !!
सूर्य प्रताप भानु ने हवेली के भीतर अपने कक्ष में जाकर खडे़ ही खडे़ कहा -" क्यों न्योते पर न्योता भिजवा रही है !! तेरे तो कोई काम है नहीं क्योंकि भीतर के सब काम तो सुरतिया व मनिका करती हैं पर मुझे कितना सिर खपाना पड़ता है बाहर वो तू न समझेगी ,,, अब जल्दी बोल क्यों बुलाया है !!"
दिव्य अपने पिता के कक्ष के बाहर ओट से सब सुनने में लगा था ।
दिव्या ने अपनी तिजोरी से गहनों के कुछ डिब्बे निकाल कर रखे थे वो सूर्य प्रताप भानु के सामने बिस्तर पर खोलते हुए बोली -"नंदिनी को विवाह पर इनमें से कोई गहने दिए जाएं या फिर आप नए गहने उसके लिए बनवाएंगे !"
" तुम्हारा दिमाग खराब गया है जो ये गहनों के डिब्बे निकाल कर नंदिनी को देने को पूछ रही हो !!जबकि तुम अच्छी तरह जानती हो कि ये गहने हमारे खानदानी हैं और इन पर मेरी होने वाली दोनों बहुओं का अधिकार है !! ये जो लाल रंग के डिब्बे हैं ये शिव प्रताप की बहू के लिए और वो जो भूरे रंग के डिब्बे रखे हैं वो दिव्य प्रताप की बहू के लिए हैं " सूर्य प्रताप ने कड़क आवाज में कहा ।
" हाँ जानती हूँ मगर नंदिनी !!उसके लिए तो आपने एक भी खानदानी जेवर न रखा और न नया बनवाया !! उसे क्या देकर विदा करेंगे !! "दिव्या बहुत हिम्मत बटोर कर बोली ।
"तुम्हारा दिमाग सच में फिर गया है और तुम मुझे भी पागल कर दोगी ,, अरे नंदिनी के ससुराल वाले अपने खानदानी जेवर अपनी बहू के लिए रखे होंगे ,, हम क्यों उसे दें !!वो जाने और उसका भाग्य ,, मैं स्पष्ट बता दूँ तुम्हें ,,,नंदिनी यहाँ से दो जोडी़ कपडो़ं में विदा होगी बस ,,, और कुछ नहीं " कहते हुए सूर्य प्रताप भानु पैर पटकते हुए चले गए और दिव्या की आँखों से अश्रु धारा बह चली ।
दिव्य प्रताप भानु पिता के निर्णय पर मन ही मन प्रसन्न होता हुआ बाहर आया और उसकी प्रसन्नता देख शिव को पक्का यकीन हो गया कि पिताजी नंदिनी को कुछ न देने वाले हैं पर उसने सोचा कि थोडी़ देर बाद माँ से बात कर पूछूँगा कि पिताजी ने क्या कहा !
श्रीधन ,सूर्य प्रताप की सेवा में खडे़ खडे़ दिव्य प्रताप को देख रहा था जो गोपी को इशारों इशारों में अपनी खुशी प्रकट कर रहा था ।श्रीधन सोचने लगा कि दोनों सगे भाई और कितना अंतर है !! एक बहन पर जान छिड़कता है तो दूसरे को बहन के होने न होने से कोई फर्क ही न पड़ता है !!
कुछ देर बाद शिव प्रताप भानु पिता की नजरें बचाकर भीतर गया और माँ दिव्या के कक्ष में जाकर उसके पास बैठकर बोला -"माँ क्या कहा पिताजी ने !आपका मुँह क्यों लटका है और ये जेवरों के डिब्बे पूरे बिस्तर पर आप क्यों लिए बैठी हो !!"
आज पहली बार शिव प्रताप ने माँ के पास इतने सारे जेवरों के डिब्बे रखे देखे थे ।
दिव्या ने अश्रु बहाते हुए सारी बात उसे बताई ।शिव प्रताप भानु ने कुछ क्षण सोचा फिर बोला -"माँ आप बिलकुल चिंता न करें , जो पिताजी कर रहे हैं उन्हें करने दीजिए और अब जो मुझे करना है वो मैं करूँगा ।"............शेष अगले भाग में।