सूर्य प्रताप भानु के तीनों बच्चे बडे़ हो रहे थे ।अपनी उम्र पूरी करके दिव्या का प्रिय विहग स्वर्ग सिधार गया था ,जिसकी वजह से दिव्या बहुत शोकाकुल रहने लगी थी। शिव प्रताप भानु पिता के कार्यों में हाथ बँटाने के साथ ही साथ माँ दिव्या का भी बहुत ध्यान रखने लगा था , वो थोडी़ -थोडी़ देर पर आकर अपनी माँ का हाल लेता रहता था ,उनकी खुशी के लिए सबकुछ करने के लिए तत्पर रहता था मगर दिव्या , दिव्य के छोटा बेटा होने के कारण हर चीज में उसको प्राथमिकता देती थी , कोई भी चीज देनी हो , वो पहले दिव्य को देती उसके बाद ही शिव प्रताप भानु को देती थी और ये बात शिव प्रताप को चुभने लगी थी ,वो जब माँ को उलाहना देता तो दिव्या ये कहकर उसको झिड़क देती थी कि तुम्हारा छोटा भाई है तो उसे प्राथमिकता तो मिलनी ही चाहिए !!
दिव्य का ये पक्षपाती व्यवहार शिव प्रताप व दिव्या के रिश्ते में खटास घोलने लगा था ,दिव्य अपने मुँह के मीठे बोलों के कारण दिव्या का चहेता बन रहा था और अपने हर उत्तरदायित्व का वहन करता शिव प्रताप भानु कहीं न कहीं उपेक्षा का शिकार हो रहा था ।
गोपी शिव प्रताप भानु से वैसे भी चिढा़ रहता था क्योंकि वो भूला न था कि शिव दादा ने उसकी बहन के साथ नंदिनी को खेलने से रोक दिया था क्योंकि उसकी बहन को छूत की बीमारी हो गई थी , अतः शिव प्रताप को उसकी माँ की नज़रों में उपेक्षित देखकर उसके कलेजे को बहुत ठंड़क पहुँचती थी ।
सुरतिया की बेटी को जब छूत की बीमारी हुई थी तब सूर्य प्रताप भानु ने सुरतिया को भी हवेली के भीतर प्रविष्ट होने के साथ ही साथ उसे उसकी बेटी से ही मिलने से पूर्णतः रोक लगा दी थी ताकि वो अपनी बेटी के छूत के रोग के कारण प्रभावित न हो जाए !
सुरतिया की बेटी को हवेली के पीछे के बगीचे में ही भोजन भिजवा देते थे सूर्य प्रताप और वहाँ से वो कहीं भी इधर उधर न हो ,इसकी कडी़ निगरानी उसपर रखवाते थे ।बेचारी सुरतिया अपनी ही बेटी के पास न जा पाने के कारण हवेली के पीछे ही ,श्रीधन व उसके लिए बने घर में कुहती रहती थी ।
दिव्या ,अपने विहग के गमन से दुखी थी और सुरतिया भी हवेली में न आती उस कारण ,अपनी कचोटती तनहाइयों संग अश्रु बहाती रहती थी ।
ऐसे में दिव्य अपनी माँ दिव्या को अपने मीठे बोलों से भरमाकर उसका चहेता बना हुआ था और सबकुछ करके भी शिव प्रताप भानु बडा़ होकर भी माँ के ह्रदय में वो स्थान न पाने के कारण माँ से खिन्न रहने लगा था पर कभी उन पर प्रकट न होने देता था ।
नंदिनी अपने पिता द्वारा वैसे भी तिरस्कृत थी और अपने गंभीर स्वभाव के कारण वो माँ से भी बहुत आवश्यक होता तभी कुछ कहने,बोलने जाती थी ।उसे पूरी हवेली में सबसे प्रिय अगर कोई था तो वो उसके शिव दादा जो उसको समझते थे ,उसकी खुशी के लिए हर सँभव कार्य करते थे ।
नंदिनी की खुशी के लिए ही शिव प्रताप भानु ने अपने एक घनिष्ट मित्र से बात कर ली थी और उसकी बहन सुभाषी ,नंदिनी की सखी के रूप में हवेली आती और नंदिनी को उसके कक्ष में भीतर से द्वार बंद कर पढ़ना ,लिखना सिखाती और फिर चली जाती थी ।
बहुत समय तक ऐसे चला था और नंदिनी को पढ़ना लिखना आने के कारण आनंद आने ही लगा था मगर कुटिल गोपी की नजरों से रहस्य छुपा न रह सका कि नंदिनी को पढा़ने के लिए कोई सुभाषी नामक लड़की आती है और उसने जाकर दिव्य के सामने इस रहस्य को खोल दिया --"दिव्य दादा , नंदिनी को पढा़ने के लिए कोई सुभाषी नामक लड़की उसकी सखी के रूप में हवेली में आती है ।"
" हाँ देखा मैंने भी है एक लड़की को नित्य नंदिनी के कक्ष में जाते मगर वो नंदिनी को पढा़ने ही आती ये तू विश्वास से कैसे कह सकता है !! सुभाषी तो उसकी सहेली है ऐसा मैंने सुना है !"
दिव्य प्रताप ने गोपी से हैरानी से कहा ।
"अरे दादा , तुम ही सोचो ,कि अगर सुभाषी ,नंदिनी की सहेली है तो अभी तक वो कहाँ थी ?अकस्मात कहाँ से टपक पडी़ !! और फिर वो आकर नंदिनी के कक्ष का द्वार भीतर से क्यों बंद कर लेती है !!
मैंने तो अपने शक की पुष्टि के लिए किवाड़ की दराज से भीतर झांका था ,तो देखा कि सुभाषी नंदिनी को पढा़ रही है ,, तुम्हें मेरी बात पर विश्वास न हो तो तुम भी भीतर झांक कर देख लो ।"
गोपी को इतने विश्वास से कहते देख अगले दिवस दिव्य ने भी नंदिनी के कक्ष के किवाड़ से भीतर झांका और समझ गया कि गोपी सत्य कह रहा था ।
दिव्य को ,शिव प्रताप भानु को पिता सूर्य प्रताप भानु की नजरों में गिराने का एक अवसर मिल गया और वो विद्युत गति से पिता सूर्य प्रताप भानु के समक्ष जा खडा़ हुआ, पीछे ही पीछे अपने दाँत निकालता हुआ गोपी भी जा पहुँचा ।
सूर्य प्रताप भानु ,अपने खेतों में कार्य करने वाले कुछ कृषकों के साथ मंत्रणा कर रहे थे , शिव प्रताप भानु भी वहीं बैठा हुआ था और श्रीधन ,मालिक सूर्य प्रताप भानु की सेवा में उपस्थित था ।
दिव्य प्रताप भानु को अपने समक्ष खडे़ देखकर सूर्य प्रताप भानु ने कटाक्ष कर पूछा -"क्या बात है दिव्य !! तुम आज यहाँ !! कोई विशेष प्रयोजन !!
दिव्य प्रताप भानु कभी भी पिता के समक्ष आकर खडा़ न होता था ,वो तो गोपी के साथ अपनी ही दुनिया में रहता था ।
"क्या पिताजी ! आप कटाक्ष कर रहे हैं !! " दिव्य ने मासूम सी सूरत बनाकर कहा ।
" तो ! वैसे तुम कब मेरे समीप आते हो !! कोई आवश्यक कार्य हो तो बोलो ,मैं इन कृषकों के साथ मंत्रणा कर रहा हूँ।" सूर्य प्रताप भानु ने भौंहें सिकोड़ कर कहा ।
दिव्य प्रताप भानु ने कुटिल नज़रों से शिव प्रताप भानु को देखा और फिर पिता से बोला -"आप तो यहीं बैठे रहते हैं और अपने खेल-खलिहान,बाग, इत्यादि के कार्यों में व्यस्त रहते हैं ,आपको पता भी है कि आपकी पीठ पीछे क्या क्या होता है !!"............शेष अगले भाग में।