शिवल्या भी अपने भाइयों , पिता व मां को परेशान देखकर दुखित थी और दोपहर का भोजन कर अपने कक्ष में लेटी हुई करवटें बदलती जा रही थी , जब चैन न पडा़ तो सोचा कि चलकर कुछ क्षण शिव मंदिर में ही बैठूं ! और वो अपने कक्ष से उठकर शिव मंदिर की तरफ गई तो उसे धीमे धीमे स्वर में सुनाई दिया -- कनक चाची ,,, कनक चाची ........
शिवल्या ने देखा घर का मुख्य द्वार खुला पड़ा था , उसने मुख्य द्वार के पास जाकर बाहर देखा तो शिवाली ,बाबा सूर्य प्रताप भानु के फाटक से चिपकी चाची कनक को आवाज लगा रही थी ।
शिवाली के ये देखकर क्रोध की थाह न रही !!
आज इस शिवाली की खैर नहीं....... स्वयं से कहती हुई शिवल्या ने सूर्य प्रताप भानु के दरवाजे पर जाकर पीछे से शिवाली की कमर पर पड़ी चोटी पकड़ कर क्रोध में जोर से कहा -" शिवाली !!"
शिवाली ने पलट कर देखा तो उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गईं, क्रोध में मुंह लाल किए शिवल्या दीदी खड़ी थी ।
"ववव् " " आज तुझे मैं बताती हूं ,चल " शिवल्या ने शिवाली की चोटी पकड़े ही पकड़े उसे घर की तरफ खींचते हुए कहा ।
"ईईईई छोड़ दीजिए शिवल्या दीदी ,दर्द हो रहा है !!" शिवाली चोटी खिंचने के कारण उपजे दर्द से विकल हो कर बोली ।
शिवल्या उसे खींचते हुए घर तक लाई और फिर दूसरे हाथ से घर का फाटक बंद कर उसके गाल पर कस कर एक तमाचा जड़ दिया और बोली -" तेरे इस दिमाग में क्या लेशमात्र भी बुद्धि नहीं दी विधाता ने !! सारा का सारा गोबर ही भर कर भेजा है !! यहां उस घर से हमारी बातचीत नहीं है ,बाबा के व्यवहार से हमारे पिताजी और राज दादा,राग प्रताप सब इतना परेशान हैं और तू उनके ही घर पर जाकर कनक चाची कनक चाची आवाज लगा रही है !!
कनक चाची के काम में हाथ बंटाने का बड़ा शौक है तुझे पर कभी घर पर मां का ,रुचिरा भाभी ,दामिनी भाभी का या मेरा हाथ बंटाया है कभी !!
हमसे कभी कहा है कि लाओ इस काम में मैं भी हाथ लगवा दूं !!
खाती है और इधर उधर बैठी रहती है ,,,हम भी सोचते हैं कि सबसे छोटी है तू , जैसे मन करे वैसे रह ले मगर !!!
उफ ! मैं भी किसके आगे बीन बजा रही हूं !! " शिवल्या ने अपना सिर थाम कर कहा और फिर बोली -" एक बात को तू आज अच्छे से अपने दिमाग में बैठा ले कि ये जो दरवाजा है न इसके बाहर तूने एक कदम भी बढा़या तो तेरी दोनों टांगे निश्चित ही मैं तोड़ दूंगी ।"
शिवाली तमाचा पाकर अपने गाल पर हाथ रखे रखे रोते हुए कहती हुई भीतर जाने लगी -" इतनी जोर से मारा है !! तुम्हारा ब्याह होने वाला है ना ,चली जाओ ,तुम आज ही अपने घर चली जाओ हूंऊऊऊं "
शिवाली की दहाड़े मार कर रोने की आवाज सुनकर ऊपर माले से अपने हाॅल से उठकर नीचे आकर रुचिरा ने अपनी साड़ी के पल्लू से शिवाली के आंसू पोछते हुए पूछा -" क्या हुआ शिवाली दीदी ,आप रो क्यों रही हो ?किसी ने कुछ कहा आपसे !!"
आवाज सुनकर मानसी ,दामिनी अपने अपने कक्ष से उठकर बाहर आईं और मानसी ने शिवाली को रोते और शिवल्या को क्रोध में भरे हुए देखकर पूछा -" क्या बात है !!क्या हुआ !!"
शिवाली ने बुक्का फाड़ कर रुचिरा की तरफ देखते हुए सारी बात बताई ।
मानसी सुनकर अपना सिर थाम कर वहीं पडी़ कुर्सी पर बैठ गई और रुचिरा ने शिवाली को पुचकारते हुए कहा -" शिवाली दीदी आप रोइए मत और समझने का प्रयास करिए शिवल्या दीदी ने सही तो कहा ,आपको वहां नहीं जाना चाहिए ।"
" वारे वाह , दादी वहां रोज रात को बाबा से बात करने जाती हैं , राज दादा और राग दादा जब देखो तब जाते हैं मैं ही न जा सकती !!" शिवाली सुबकते हुए बोली।
"भाभी आप भी किसके आगे अपना सिर फोड़ रही हैं , इस बैल बुद्धि के भेजे में कुछ न घुसने वाला है !! और मां आज से मैं घर के मुख्य दरवाजे पर हर समय ताला डालकर रखूंगी ,जब कोई आएगा जाएगा तभी वो दरवाजा खुलेगा बस !" शिवल्या ने कहा ।
" ये क्या चिल्ल पों मचा रखा है !! दिव्या अपने कक्ष से उठकर आती हुई बोली ।
" पर शिवल्या दीदी ,आपने ये न सोचा कि दिनभर और संध्या समय जो शिव मंदिर में लोग दर्शन करने आते हैं , आप कितनी बार ताला खोलती बंद करती रहोगी ??" दामिनी ने कहा ।
मानसी ये सब देखकर बहुत व्यथित हो गई और शिवाली से बोली -" शिवाली तू तो मेरी लाड़ली बेटी है ना ,मां की व अपनी शिवल्या दीदी की बात मान कर वहां कभी मत जाया कर।"
संध्या समय जब शिव प्रताप भानु खेतों से आए तो उनके कानों में भी बात पहुंची और वे भी शिवाली को अपने पास बैठाकर स्नेह से समझाते रहे ।
धीरे धीरे कर शिवल्या का विवाह आ पहुंचा और शिव प्रताप भानु ने उसका भी धूमधाम से विवाह संपन्न कर दिया ,इस बार सूर्य प्रताप भानु से शिव प्रताप भानु ने कहा न था तो वो विवाह पर आए भी नहीं , दिव्यांश प्रताप भानु ने उपस्थित होकर उसे भी अपनी और अपनी होने वाली पत्नी की कमाई से मिलाकर एक जेवर उपहार स्वरूप दिया और रो धोकर शिवल्या भी विदा हो गई।
एक बार पुन: घर की बेटी की विदाई घर में सूनापन ले आई ।
एक दो महीने बाद दिव्यांश प्रताप भानु ने अपने विवाह का मुहूर्त विचरवाकर तय करवाया और जब विवाह के दो दिन बचे तब वो श्रावस्ती जाकर शिवन्या और शिवल्या दोनों की ससुराल जाकर बोला कि मैं तुमको अपने विवाह में उपस्थित होने के लिए लेने आया हूं ,दोनों ने ही कहा कि दादा हम आपके विवाह पर सीधे बैंक्वेट हॉल पहुंचेगे मगर बाबा के घर की देहरी पर कदम न रखेंगे ।
दिव्यांश प्रताप दोनों की शर्त मानकर दोनों को ले आया और उनके घर छोड़ दिया ।
विवाह के दिन राग प्रताप भानु और दामिनी को छोड़कर सब दिव्यांश प्रताप भानु के विवाह में सीधे बैंक्वेट हॉल पहुंचे और दिव्यांश प्रताप भानु का विवाह बहुत अच्छी तरह संपन्न हो गया ।
अगले दिवस ........ शेष अगले भाग में।