"पिताजी , आपकी पोती का श्रावस्ती जिले में विवाह देख आया हूं , आपको विवाह की बातचीत तय करने चलना है ।" शिव प्रताप भानु ने कहा ।
दिव्यांश प्रताप भानु को पता चला कि शिव प्रताप ताऊ जी आए हैं तो उसने मां कनक से जाकर कहा -"मां ताऊ जी आए हैं ,उनके जलपान का प्रबंध कर दो ।"
" बैठे रहने दो ,जैसे आए हैं वैसे चले जाएंगे ,ज्यादा शिष्टाचार किया तो रोज ही आकर सिर पर सवार होंगे ।" कनक बेरुखी से बोली ।
दिव्यांश प्रताप चुपचाप मां के कक्ष से निकलकर पाकशाला में जाकर मिष्ठान व जल लेकर बाहर पहुंचा और शिव प्रताप भानु के समक्ष रखकर उसके चरण स्पर्श किए।
" जीते रहो दिव्यांश।" शिव प्रताप भानु मुस्कुरा कर बोला ।
शिव प्रताप भानु पिता सूर्य प्रताप भानु के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा था , जब वे चुप्पी ही साधे रहे तो शिव प्रताप भानु ने पुनः कहा -"पिताजी , आप चल रहे हैं ना श्रावस्ती!!"
" मेरा वहां कौन काम है ? लड़की को ब्याहना ही तो है तो थोड़ा कुछ उसके ससुर के हाथ पर रखकर उसे ब्याह दो और करना ही क्या है !!" सूर्य प्रताप भानु ने कहा ।
शिव प्रताप भानु पिता सूर्य प्रताप भानु का उत्तर सुनकर मन ही मन बोला -वैसे ही जैसे आपने मेरी बहन नंदिनी को ब्याह दिया था !! मेरी बेटियां मेरे लिए बहुत अनमोल हैं और उनका ब्याह तो मैं धूमधाम से करूंगा ,,, और वो वहां से उठकर अपने घर जाने लगा तो दरवाजा बंद करने का बहाना कर दिव्यांश प्रताप पीछे ही पीछे जाकर शिव प्रताप भानु से बोला -" ताऊ जी ,मेरी बहन के विवाह की बात करने मैं भी आपके साथ चलूंगा ।"
शिव प्रताप भानु सजल नेत्रों से दिव्यांश प्रताप भानु की तरफ देखकर उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर बोला -" तुम जाओगे तो दिव्य और कनक बहू को शायद अच्छा न लगे और यहां तनाव का माहौल उत्पन्न हो जाए , तुमने अपनी भावनाएं रखीं यही बहुत है ।"
" मां और पिताजी को अच्छा न लगेगा उस खातिर मैं अपनी बहन को छोड़ दूं !! नहीं ताऊ जी , मुझे परवाह नहीं,मैं आपके साथ अवश्य चलूंगा ।"दिव्यांश प्रताप ने कहा
शिव प्रताप भानु को दिव्यांश प्रताप भानु की भावनाओं के आगे झुकना ही पड़ा और वो "ठीक है, चलना" कहकर अपने घर आ गए।
अगले दिवस शिव प्रताप भानु ,राज प्रताप भानु और दिव्यांश प्रताप भानु को लेकर श्रावस्ती जाकर शिवन्या के विवाह की पूरी बातचीत तय कर वापस लौट रहा था ।
रास्ते में दिव्यांश प्रताप भानु ने शिव प्रताप भानु से कहा -" ताऊ जी , मैंने अपने लिए एक लड़की पसंद की है ,जहां मैं पढा़ता हूं वहीं वो भी पढाती है , अपनी बहन शिवन्या का विवाह कर दूं फिर आप सब उस लड़की के घर वालों से बातचीत कर उससे मेरा विवाह करवा दीजिएगा ।"
शिव प्रताप भानु ने मुस्कुराकर दिव्यांश प्रताप भानु की तरफ देखा फिर बोले -" तुम्हारे विवाह की बातचीत करने के लिए मेरा चलना दिव्य प्रताप को स्वीकार न हुआ तो !!"
" उसकी चिंता आप न करें ताऊ जी , मैं पिताजी से कह दूंगा कि मेरे हर कार्य में मेरे ताऊ जी की और मेरे राज दादा की ,राग प्रताप की उपस्थिति मुझे चाहिए ही चाहिए ।"
बातें करते हुए तीनों श्रावस्ती से अपने जिले आ गए और घर आकर मां दिव्या को शिव प्रताप भानु ने विस्तार पूर्वक बताया -" मां लड़के वालों से सारी बात हो गई है , उन्होंने अपनी तरफ से पच्चीस एकड़ भूमि मांगी है , पच्चीस एकड़ भूमि पर जो भी फसल होगी उसको बाजार में विक्रय कर जो भी आमदनी होगी वो लड़के वाले लेंगे , घर परिवार और लड़का सभ्य सुसंस्कृत हैं तो मैं उनकी मांग को स्वीकार कर आया हूं ,अब तय तिथि पर विवाह होना है ।"
दिव्या ने भी अपनी तरफ से रुचि दिखाई और रात्रि को सूर्य प्रताप भानु से मिलकर उन्हें सब सूचित किया ।
अब शिव प्रताप भानु और मानसी को शिवन्या को देने वाले जेवरों की चिंता हुई ।
मानसी ने रात्रि में शिव प्रताप भानु से कहा -" सुनिए शिवन्या के लिए जेवर भी तो बनवाने होंगे ।"
" मां को भी तो ये पता है कि शिवन्या के विवाह के लिए जेवर चाहिए होंगे , पिताजी के कक्ष में उनकी पूरी एक तिजोरी जेवरों से भरी पड़ी है जिसका बंटवारा पिताजी ने अभी तक न किया और पिताजी के दिव्य प्रताप भानु के हिस्से में होने से वो सारे जेवर भी दिव्य प्रताप अपने समझ रहा है ,वो बहुत बड़ा खिलाड़ी है ,इसीलिए उसने झट से कहा था कि पिताजी मेरे हिस्से में रहेंगे ,और पिताजी भी उन जेवरों के बंटवारे के संबंध में मुंह बंद किए बैठे हैं ,अगर उन जेवरों का बंटवारा हो जाए तो उन्हीं जेवरों में से शिवन्या को दे दिया जाए तो अलग से जेवर बनवाने पर रुपए क्यों खर्च हों ।"शिव प्रताप भानु ने कहा।
" हुंह आप भी क्या बात कर रहे हैं !! आप ही ने तो मुझे बताया था कि ननद जी की विदाई पर आपने मुझे दिए जाने वाले जेवरों में से चार डिब्बे ननद जी को दे दिए थे उसी कारण मुझे घर की बहू होने के नाते जो जेवर मिलने थे वो न मिले तो हमारी बेटी के नाम पर जेवर क्या मिलेंगे !! आप तो शिवन्या के लिए जेवर बनवा लो , उन जेवरों के मिलने की आशा न करो ।" मानसी ने कहा ।
राज प्रताप भानु पिता के कमरे में शिवन्या के विवाह संबंधित कुछ बात करने जा रहा था कि उसके कानों में ये वार्तालाप पडा़ और वो वापस अपने कक्ष में चला गया ।
" दादी , शिवन्या के विवाह के लिए जेवरों के संबंध में कुछ सोचा है आपने ?" भोर में नाश्ते के समय राज प्रताप भानु ने दादी दिव्या का मन टटोला ।
रुचिरा व दामिनी सबको नाश्ता परोस रही थीं और मानसी , राग प्रताप भानु, शिवन्या शिवल्या,शिवाली सब एक साथ बैठे नाश्ता कर रहे थे।
" सोचना क्या है ! जेवर बनवाने होंगे और क्या !!" दिव्या ने कहा ।
" पर बाबा की तो पूरी तिजोरी जेवरों से भरी है ..........शेष अगले भाग में।