दिव्य प्रताप भानु ,नंदिनी के साथ इसलिए न खेलता कि कहीं वो उससे उसके खिलौने न माँग ले और दूसरी बात अपनी बहन नंदिनी के जन्म पर जो उसके पिता ने कहा व व्यवहार किया था ,उसके कोमल मन पर उसकी छाप बन गई थी ,उसका मन भी सोचने लगा था कि ये नंदिनी तो हमारा सबकुछ लेने आई है ।
शिव प्रताप भानु उठकर नंदिनी को सुरतिया की बेटी गहना के साथ खेलने के लिए कह देता था और इस तरह नंदिनी धीरे -धीरे सुरतिया की बेटी गहना के साथ हवेली के पीछे बने बगीचे में खेलती रहती और दिव्य प्रताप भानु ,गोपी को अपने साथ लगाए रहता था ।
दिव्या से बात करने के लिए उसके पास कोई न रहता ,सुरतिया गृह कार्य में लगी रहती ,शिव प्रताप भानु पिता के साथ बैठे हुए उनसे मिलने आने वाले लोगों की बातें सुनकर समझने में समय व्यतीत करता था और दिव्य प्रताप भानु को गोपी से ही फुर्सत न मिलती थी ।ऐसे में दिव्या के पास अगर कोई होता था तो वो विहग जो दिव्या के आसपास ही बना रहता था ।
"उस विहग को दिव्या से इतना लगाव क्यों था ,पहले तो आप मेरी ये जिज्ञासा शांत करिए !" मादा गौरैया ने नर गौरैया से कहा ।
" तुम्हें पहले वही जानना है तो चलो पहले वही सुना दूँ वरना तुम्हारा मन पूर्णतः कथा में न लगेगा ,,," कहते हुए नर गौरैया ने बताना प्रारंभ किया -- ये तब की बात है जब दिव्य प्रताप भानु ,दिव्या के गर्भ में था ।
दिव्या का मन हवेली से बाहर मंदिर जाकर प्रभु जी की पूजा करने जाने का था सो उसने सूर्य प्रताप को ,श्रीधन से कहकर भीतर बुलवाया और अपनी इच्छा प्रकट की ।सूर्य प्रताप भानु ने उसे मंदिर जाने की सहमति दे दी पर इस शर्त पर कि साथ में सुरतिया को लेकर जाओगी,अकेले नहीं जाना है और दिव्या शर्त स्वीकार कर सुरतिया के साथ हवेली से बाहर मंदिर प्रभु दर्शन करने को निकल गई।
ग्रीष्म के दिन थे और भगवान भास्कर अपने प्रचण्ड रूप में आकाश में विराजमान होकर धरतीवासियों पर कहर बरपा रहे थे ।दिव्या मंदिर में प्रभु दर्शन करके अपनी साडी़ के पल्लू से अपना पसीना पोछते हुए बाहर निकली तो उसने देखा कि सड़क के एक किनारे एक विहग तृषा से व्याकुल छटपटा रहा है ।
"सुरतिया , देख न वो विहग भूमि पर पडा़ है ,ऐसा प्रतीत होता है कि वो प्यास से तड़प रहा है ।" दिव्या ने सुरतिया से कहा ।
सुरतिया ने भी मालकिन की हाँ से हाँ मिलाई और दिव्या ने विहग के समीप जाकर उसे अपनी हथेली पर बैठाकर अपने पूजा के लोटे से जल पिलाया ।
जल पीकर विहग चेतन्य हुआ तो दिव्या उसे एक वृक्ष के समीप बैठाकर सुरतिया के साथ वापस हवेली जाने को मुडी़ तो वो विहग भी उसके साथ ही हो लिया ।
दिव्या को आभास हुआ कि ये विहग तो मेरे पीछे ही आ रहा है तो वो उसे अपने साथ ही ले आई और हवेली के प्रांगण में उसके लिए एक कोठर बनवाकर उसे वहाँ बैठा दिया तब से वो विहग वहीं रहता और चूंकि दिव्या ने उसे जल पिलाकर उसे जीवन दान दिया था तो उसे दिव्या से विशेष स्नेह हो गया था ।
बुड्डा अपने बिस्तर पर पडा़ था ।उसका बेटा सत्य शरण व बहू सुगना दिन भर मजदूरी कर रात में घर लौटे थे ,उन्हें देखते ही बुड्डा दीन भाव से बोला -" बेटा ,दो घडी़ अपने बाप के पास बैठ लिया करो ,दिन भर अकेले पडे़ जी ऊब जाता है ।"
" अच्छा ! एक बात बताओ , तुम्हारे पास बैठकर बातें करूँ तो ये जो पडे़ पडे़ रोटियाँ तोड़ते हो ,इसका प्रबंध कहाँ से होगा !!
ऐशोआराम का जीवन जी रहे थे , अच्छा पहनते ,अच्छा खाते थे पर कुत्ते को घी हजम कहाँ होता है !!
जज्ञ कर डाली और अपने साथ साथ हमें भी ये दिन दिखा दिए ,,हुँह् ।"कहते हुए सत्य शरण अपने कमरे में सुगना के साथ चला गया और बुड्डा अपने हाल पर रो दिया ।
"ओह !तो ये बात थी " मादा गौरैया बोली ।
"हाँ ,अब आगे सुनो ,,
समय बीत रहा था और बच्चे बडे़ हो रहे थे ।नंदिनी भी बडी़ हो रही थी और उसका मन सोचता कि मेरे पिता मुझे पसंद क्यों न करते हैं !!मैं इतनी बुरी हूँ क्या !!
वो ये सोचकर स्वयं को दोषी मानने लगी कि मैं ही अभागी होउँगी तभी पिता द्वारा तिरस्कृत हूँ ।
दिव्य प्रताप भानु ने दसवीं की परीक्षा दी थी और अनुत्तीर्ण हो कर हवेली में सूर्य प्रताप भानु के समक्ष सिर झुकाए खडे़ थे ।सूर्य प्रताप भानु ने क्रोध में कहा -" वाह ,, क्या परीक्षाफल लेकर आए हैं साहबजादे !! अरे अपने दादा शिव प्रताप भानु के जैसे खेतीबाडी़ में मन न लगाना है ,पढ़ना लिखना है तो वही दिल लगाकर करते पर उसमें भी इतिहास रच कर आए हैं ।कल से पढा़ई -लिखाई बंद और अपने दादा के साथ खेत-खलिहानों,बागों के कार्यों में रुचि लेना प्रारंभ करो ।"
"पिताजी ,एक अवसर और दे दें ,उसके बाद अगर अनुत्रीर्ण हुआ हुआ तो जो आप कहोगे वही करूँगा।"सिर झुकाए हुए दिव्य भानु ने कहा और पीछे खडे़ गोपी ने मुस्कुरा दिया जो सूर्य प्रताप भानु न देख पाए ।
"चलो एक अवसर और दे देता हूँ ,इसलिए कह रहा हूँ कि आगे चलकर ये सब तुम दोनों भाइयों का ही तो होगा ,तो सँभालना भी तुमलोगों को पडे़गा ,मेरे बल आगे चलकर थकेंगे ही ना !!"सूर्य प्रताप ने कड़क स्वर में कहा ।
"और नंदिनी ! उसका कुछ न होगा !! "शिव प्रताप भानु ने हैरानी में भरकर पिता सूर्य प्रताप भानु के समक्ष प्रश्न उछाल दिया जिसे सुनकर सूर्य प्रताप भानु आवेश में खडे़ होकर बोले -"तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है !! उसका क्यों कुछ होगा !! उसका विवाह ही तो करना है ,औने पौने दामों में किसी वर को देकर कर दूँगा बस ,और कुछ नहीं।"
पिता सूर्य प्रताप भानु का उत्तर सुनकर शिव प्रताप भानु का मन खिन्न हो गया ।वो सोचने लगा कि कोई पिता ऐसा भी हो सकता है !!
वो मन ही मन तय करने लगा कि पिता भले मेरी इकलौती बहन को कुछ न दें पर उसका बडा़ भाई तो है , अपने हिस्से में से उसे भरपूर देगा ।.........शेष अगले भाग में ।