सबके पेट दुख रहे थे दिव्य प्रताप भानु और उसके बेटों को हवेली में रहते देखकर ,खाना न हजम हो रहा था ,हवेली बंटवा ली तभी सबके कलेजे को ठंड़क पड़ी ।"
दिव्या यूं भुनभुनाते हुए ये भी न सोच रही थी कि उसका इस तरह भुनभुनाना राज प्रताप भानु,राग प्रताप भानु , शिवन्या और शिवल्या को भी सुनाई पड़ रहा था और इन बच्चों के मन से उसको दूर ही कर रहा था ।
शिवाली तो इस सबसे परे थी ,वो तो अब भी जब राज प्रताप भानु और राग प्रताप खेतों को गए होते और शिवन्या और शिवल्या इधर उधर होतीं तो सूर्य प्रताप भानु के घर के दरवाजे पर जाकर दरवाजे की सांक से भीतर झांककर धीरे धीरे आवाज लगाती -"कनक चाची , कोई काम हो तो दरवाजा खोल दो मैं जल्दी से आकर कर दूं ।"
धीरे धीरे कर दिव्या का भुनभुनाना बंद हो गया , मगर दिव्या अब भी पहले की भांति रात्रि में घण्टे दो घण्टे के लिए सूर्य प्रताप भानु के पास जाकर कुछ अपनी कहकर कुछ उनकी सुनकर वापस आ जाती थी ।
अब चूंकि हवेली के मध्य से दीवार उठाई गई थी तो उस आधार पर ऊपर माले में जितना बना भाग था वो सारा दिव्य प्रताप भानु और उसके बेटों के हिस्से में चला गया था और जितनी सामने खाली छत पड़ी थी वो शिवप्रताप भानु और उसके बेटों के हिस्से में आई थी अतः शिवप्रताप भानु ने उस खाली छत पर दो बड़े हाॅल , एक पाकशाला , एक शौचालय व स्नानागार बनवा दिया था और उसके आगे की मंदिर के सामने छत खुली छोड़ दी थी ।
अब एक दिवस शिव प्रताप भानु ने राज प्रताप भानु को अपने पास बैठाकर उससे कहा -" राज प्रताप ,अब तो हवेली का बंटवारा भी हो गया है और मैंने ऊपर माले पर दो हाॅल बनवा दिए हैं , अब तो शिवन्या के ब्याह की बात की जाए , उसका ब्याह हो तब शिवल्या भी तो है ब्याहने को ! फिर तुम दोनों भाइयों के ब्याह का सोचा जाए ।"
राज प्रताप भानु कुछ कहता उसके पूर्व ही शिवन्या और शिवल्या आईं और शिवन्या ने कहा-" ऐसा है पिताजी पहले राज दादा और राग का ब्याह हो जाए फिर ही हम दोनों ब्याह करेंगे ,मां की देखभाल के लिए कोई तो होना चाहिए !!हम दोनों पहले ही ब्याह कर चले गए तो पीछे मां की चिंता सताती रहेगी ,दोनों भाभी आ जाएं तो फिर निश्चिंतता हो जाएगी ।"
" तुम भाई बहन क्या फुटबाल खेल रहे हो ? बेटे कहते पहले बहनों का ब्याह हो जाए बेटियां कहतीं पहले भाइयों का हो जाए ,, ये क्या लगा रखा है ,एक निर्णय कर लो आज और फिर हमें बताओ ।" मानसी ने आकर कहा ।
दिव्या बैठी बैठी सब सुनती रही मगर कुछ बोली नहीं।
" नहीं , पहले तो भाईयों का ही ब्याह होगा बस !!"शिवन्या और शिवल्या एक साथ बोलीं और हार कर राज प्रताप भानु को भी इन दोनों के निर्णय पर अपनी मुहर लगानी पड़ी।
समय आगे बीता और राज प्रताप भानु का फिर छह महीने बाद ही राग प्रताप भानु का ब्याह हो गया और घर में दो बहू आ गईं।
राज प्रताप भानु का सुंदर ,सुशील, व्यवहार कुशल और सह्रदया रुचिरा से विवाह हुआ था वहीं राग प्रताप भानु को उसी के स्वभावनुसार बहुत स्वार्थी, चालांक और रूखे स्वभाव वाली देखने में ठीक-ठाक दामिनी से विवाह हुआ ।
रुचिरा ने अपनी ससुराल में कदम रखते ही अपने स्वभाव से सबका ह्रदय जीत लिया था वहीं दामिनी उतना ही बोलती जितना बहुत आवश्यक होता और उतना ही कार्य करती जितना उसके मन को करना होता था ।
राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु दोनों को ऊपर के हाॅल दिए गए थे ।
रुचिरा तो थोड़े समय में ही पति राज प्रताप भानु के द्वारा जान गई थी कि चाचा ससुर के यहां से उनके यहां की न बनती है ,केवल सास ही ,ससुर जी से बातचीत करने को उस घर जाती हैं ,अत: वह जब ऊपर अपने हाॅल से निकलती भी तो आंखें नीचे किए चुपचाप नीचे उतर आती थी मगर राग प्रताप भानु ने दामिनी को जो घुट्टी पिलाई थी कि चाचा के घर से भी मुंह से अच्छा व्यवहार बनाए रखो क्या पता कब कहां काम ही लेना पड़ जाए तो वो जब छत पर होती तो छत ही छत से कनक को देखकर मुस्कुरा भी लेती ,दो चार बात भी कर लेती थी ।
रुचिरा को इसका भान था मगर उसने किसी से इस संबंध में कुछ कहना सही न समझा ।
अब शिव प्रताप भानु,राज प्रताप भानु शिवन्या के लिए वर खोजने जाने लगे थे और उन्हें एक जगह बात करके शिवन्या का वहां विवाह करना सही लगा था , लड़का बैंक में कार्यरत था और लड़के के पिता एक पत्रकार थे ,लड़का देखने में जितना खूबसूरत था उतना ही वो बात करने पर व्यवहार कुशल लगा था।
लड़के की फोटो शिव प्रताप भानु और राज प्रताप भानु घर ले आए और दिव्या को दिखाई । दिव्या ने भी फोटो देखकर कहा -"हां फोटो से तो लड़का अच्छा लग रहा है और नौकरी में भी है तो बात आगे बढ़ाई जा सकती है।"
मानसी, रुचिरा व दामिनी को भी लड़का पसंद आया और शिव प्रताप भानु ने दिव्या से कहा -"मां आज जब आप पिताजी से मिलने जाएं तो उन्हें भी ये सब बता दें और कह दें कि उनकी पोती के विवाह की बातचीत तो उन्हें भी साथ चलकर करनी चाहिए।"
दिव्या ने कहा -"क्यों ? तुम जाकर पिताजी को कहोगे तो तुम्हारा मान घट जाएगा क्या ?"
शिव प्रताप भानु कुछ न बोला और रात्रि को सूर्य प्रताप भानु के घर जाकर दरवाजा खटखटाया ।
" बताइए ताऊ जी ,क्या काम है ?" दिवाकर भानु ने दरवाजा खोलकर सामने ताऊ शिव प्रताप भानु को देखकर बेरुखी से कहा ।
" पिताजी से कुछ बात करनी है ।" शिव प्रताप भानु ने कहा ।
दिवाकर प्रताप भानु शिव प्रताप भानु को बरामदे में बैठाकर सूर्य प्रताप भानु को बुला लाया और जानने को कि ताऊ जी क्या बात करने आए हैं,वहीं बैठ गया।
" कहो ,क्या बात करनी है शिव प्रताप??" सूर्य प्रताप भानु बोले ......... शेष अगले भाग में।