जब से सूर्य प्रताप ने अपनी वसीयत कर अपनी हजारों एकड़ की भूमि में से शिव प्रताप को महज ढा़ई सौ एकड़ भूमि दी थी और दिव्या ने भी इस पक्षपात पर कुछ न कहा था तब से शिव प्रताप के मन से माँ दिव्या भी दूर हो गई थीं ,उसे अब न भीतर से माँ के लिए कुछ लगता न पिता के लिए मगर उसने अपनी नववधू मानसी से इस संबंध में अभी कुछ न बताया था और उससे यही कहा था कि तुम थोडे़ समय भोजन बना लो ,बाद की बाद में देखी जाएगी मगर सुरतिया के द्वारा सुझाया उपाय दिव्या व मानसी दोनों को जँच गया था और रात्रि को सूर्य प्रताप के भोजन करने आने से पूर्व मानसी पाकशाला में उपस्थित हो गई और उसने सूर्य प्रताप को अपने हाथों से भोजन परोसा ।
सूर्य प्रताप भानु ने संतुष्ट मन से भोजन गृहण किया और हवेली के बाहर चले गए ।मानसी भोजन के पश्चात दिव्या के चरण चापण करती थी अतः वे भोजन करके कुछ देर बाहर चले जाते उसके बाद अपने कक्ष में जाते तब तक मानसी जा चुकी होती थी ।
अब दिव्या भी सुकून में थी और मानसी भी, दिन आराम से कटते जा रहे थे मगर ये सब कुटिल बुद्धि दिव्य को कहाँ पचने वाला था भला !!
उसे तो भली -भाँति पता था कि भोजन सुरतिया काकी ही बनाती हैं ,, भाभी तो बस पिताजी के आने से पूर्व पाकशाला में आकर पिताजी को भोजन परोस देती हैं ।
दिव्य ने अगले दिवस अवसर देखकर पिता सूर्य प्रताप भानु के कान भरे -"पिताजी ,आपको न लगता कि जो स्वाद सुरतिया काकी के बनाए भोजन में था वही स्वाद अभी भी भोजन में है ,,उससे कुछ इतर नहीं !!"
"तुम कहना क्या चाहते हो दिव्य ?"सूर्य प्रताप ने अचरज से पूछा ।
"यही कि भोजन अब भी सुरतिया काकी ही बनाती हैं ,भाभी तो बस आपके आने से पूर्व पाकशाला में आकर आपको भोजन परोस देती हैं बस !"
"तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो !!"सूर्य प्रताप भानु ने पूछा ।
"क्योंकि मैंने अपनी आँखों से देखा है पिताजी ,,, आपको मेरी बात का विश्वास न हो तो आप अकस्मात हवेली के भीतर जाकर अपनी आँखों से स्वयं देख लें ,आपको भोजन बनाती सुरतिया काकी ही मिलेगीं, भाभी नहीं।"दिव्य ने कहा ।
सूर्य प्रताप ने कहा कुछ नहीं और दनदनाते हुए हवेली के भीतर पहुँचे जहाँ सुरतिया एक तरफ दाल चढा़ए,दूसरी तरफ तरकारी भून रही थी ।
सूर्य प्रताप के क्रोध का पारावार न रहा ,,, वो चीखे -"दिव्याआआआआ ।"
सूर्य प्रताप को यूँ चीखते सुनकर दिव्या अपने कक्ष से बाहर आई और मानसी अपने कक्ष के बाहर आकर बोली -"क्या बात है पिताजी! जो बात है आप मुझसे कहें ,,, माँ को इस तरह चीख कर मत पुकारें ।"
सूर्य प्रताप ने मानसी की तरफ देखते हुए दिव्या से कहा -"ऐसा है मुझे इस हवेली में मुफ्त की रोटियाँ तोड़ने वाले न चाहिए ,, ।"
दिव्या ने मानसी की तरफ देखा तब तक शिव प्रताप भानु भी कक्ष से बाहर आ गया और मानसी से बोला -"मानसी तुम भोजन बनाया करो ,मैंने उस दिन भी तुमसे कहा था ना !!"
मानसी बोली -" अब से मैं पाकशाला भी सँभालूँगी ,इसलिए नहीं कि मेरे पति ने मुझसे कहा बल्कि इसलिए कि मैं न चाहती कि मेरी वजह से मेरी माँ को डाँट सुननी पडे़ व उनका मन दुखे ,,मैं अपनी वजह से घर में कोई तनाव न चाहती हूँ ,, मैं तो इसलिए भोजन न बना रही थी क्योंकि मेरी आदत नहीं पाकशाला में नित्य का भोजन बनाने की मगर अब मैं दोनों समय का भोजन बनाऊँगी " इतना कहकर मानसी ने अपनी साडी़ का पल्लू अपनी कमर में खोंसा और पाकशाला में जाकर सुरतिया से बोली -"काकी ,आप मुझे बता दें कि कौन सामान कहाँ रखा है बस ,फिर आप जाएं बाकी का भोजन मैं बनाऊँगी।"
सुरतिया ने सारे सामान उसे बता दिए और पाकशाला से बाहर आ गई।
दिव्य प्रताप भानु के कलेजे को ठंड़क पडी़ और वो अपने विद्यालय, जो कि पैंतालिस किलोमीटर दूर तहसील स्तर पर था ,चला गया ।
अब मानसी दोनों समय के भोजन के साथ साथ पूरी हवेली के कार्य सँभालती और दिव्या व सूर्य प्रताप की सेवा भी करती थी ।
शिव प्रताप को ये सब बहुत अखर रहा था मगर वो सही समय आने पर ही मानसी के समक्ष मन की बात प्रकट करना चाहता था ।
"इस सब के बीच में आपने नंदिनी के बारे में तो बताया ही नहीं !! नंदिनी और मनिका ,उनका हाल-चाल कोई लेता भी था या उन दोनों को सब भुला ही बैठे थे !!" मादा गौरैया ने नर गौरैया से पूछा ।
"श्रीधन व सुरतिया को बेटी मनिका के पत्र आते थे जिससे उन्हें अपनी मनिका के साथ नंदिनी के भी हाल-चाल मिल जाते थे ,मनिका के पत्रों द्वारा ही श्रीधन व सुरतिया को पता चला था कि नंदिनी अपनी छोटी सी दुनिया में खुश है, नंदिनी शिव प्रताप को भी पत्र लिखती थी और शिव प्रताप भी नंदिनी को पत्र लिखकर हाल ले लेता था ।"नर गौरैया ने मादा गौरैया को बताते हुए आगे की कथा सुनानी प्रारंभ की --
यूँ ही समय बीतता जा रहा था ,, कुछ समय पश्चात दिव्य के लिए एक रिश्ता आया , लड़की छह भाइयों की अकेली बहन थी , आर्थिक स्थिति निम्न थी पर सूर्य प्रताप को दिव्य प्रताप के लिए वो लड़की जिसका नाम कनक था पसंद आ गई थी ।कनक दिखने में आकर्षक व गौर वर्ण की स्वामिनी थी।
सूर्य प्रताप ने कनक की फोटो हवेली में भिजवाई और दिव्या व मानसी को भी कनक पसंद आ गई ।
धूमधाम से दिव्य प्रताप और कनक का विवाह संपन्न हो गया और कनक दिव्य की पत्नी बनकर हवेली में आ गई।
दो दो बहुए पाकर हवेली की रौनक और बढ़ गई थी ।
अब कनक के चूल्हा पूजन की बारी आई तो सह्रदय दिल की मानसी ने सोचा कि एक बार चूल्हा पूजन हो गया तो फिर अगले दिन से कनक को भी पाकशाला में पसीना बहाना पडे़गा ,, उसने दिव्या के सामने ये बात रखी ।दिव्या का दिव्य तो वैसे ही लाड़ला था ,तो उसकी पत्नी को दिव्या पीछे कैसे रख सकती थी भला !!
उसने मानसी से कहा -" हाँ तुम सही कह रही हो ,, ...............शेष अगले भाग में ।