"मेरी पीठ पीछे क्या होता रहता है !! स्पष्ट बताओ,पहेलियाँ न बुझाओ !!"सूर्य प्रताप भानु ने कहा।
शिव प्रताप भानु हैरानी से छोटे भाई दिव्य को देखने लगा कि ये क्या कहने आया है यहाँ !!
दिव्य प्रताप भानु ने कुटिल मुस्कान से बडे़ भाई शिव प्रताप भानु की ओर देखकर फिर पिता सूर्य प्रताप भानु की तरफ देखते हुए कहा -"पिताजी , आपकी इच्छा के विरुद्ध नंदिनी को शिक्षित किया जा रहा है !"
"ये क्या बक रहे हो !!"सूर्य प्रताप भानु क्रोधित होकर बोले ।
"मैं सत्य कह रहा हूँ पिताजी , वो जो सुभाषी नित्य हवेली में नंदिनी की सखी बनकर आती है ,दरअसल वो नंदिनी की सखी नहीं ,शिव दादा के मित्र की बहन है और वो नंदिनी के कक्ष में जाकर भीतर से द्वार बंद कर नंदिनी को शिक्षित कर रही है !" दिव्य प्रताप ने फिर दादा शिव प्रताप की तरफ देखकर कहा और शिव प्रताप के चेहरे का रंग उड़ गया ,,, गोपी ,दिव्य के पीछे खडे़ होकर मजे लेता रहा और श्रीधन विस्मय से आँखें फैलाकर शिव प्रताप को देखने लगा ।
"तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो कि वो सुभाषी ,नंदिनी को शिक्षित करने ही आती है !!" सूर्य प्रताप बोले ।
"वो मुझे कुछ शक हुआ तो मैंने नंदिनी के कक्ष के द्वार की झीरी से भीतर झांककर देखा तब रहस्य पता चला पिताजी !" दिव्य मासूम सा मुँह बनाकर बोला ।
"शिव प्रताप !! " सूर्य प्रताप भानु खडे़ होकर क्रोध में तेज स्वर में शिव प्रताप भानु की तरफ देखकर बोले ।
"देखिए ना पिताजी ,आपकी आज्ञा का उल्लघंन !! आपकी इच्छा के विपरीत कार्य करने की दादा की हिम्मत तो देखिए जरा !!" दिव्य प्रताप ने आग में घी डाला ।
"शिव प्रताप ,तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है ! नंदिनी को शिक्षित करने के लिए तुमने अपनी दोस्त की बहन को हवेली में बुलाया ,,, किसकी अनुमति ली ???" सूर्य प्रताप चीखे ।
"पिताजी ,नंदिनी की बहुत इच्छा थी पढ़ने की तो मैंने अपने मित्र से कहकर उसकी बहन सुभाषी को बुला लिया ,, नंदिनी की इच्छा पूर्ण हो तो उसे कितना हर्ष मिलेगा बस यही सोचकर मैंने ये कदम उठाया !" शिव प्रताप भानु ने सिर झुकाकर कहा ।
"ओहोओओ ,, बडी़ चिंता है भाई को बहन की !!मगर जरा भाई बताने का कष्ट करेंगे कि नंदिनी पढ़ लिखकर जाएगी तो क्या अफसरी करेगी !! सँभालनी तो उसे गृहस्थी ही है ना !! " सूर्य प्रताप हाथ नचाकर बोले।
" ऐसे क्यों कहते हैं पिताजी ! दिव्य भी तो पढ़ रहा है ना !फिर नंदिनी क्यों नहीं !!" शिव प्रताप भानु ने धीमे स्वर में कहा ।
" क्योंकि दिव्य बेटा है मेरा ! वो पढ़कर भी यहीं रहेगा और नंदिनी वो गाय है जिसे दूसरे स्थाई खूंटे से बांधना है तो उसे इतना ही चारा देना है जितना आवश्यक है ,,,
माना मुझे जमीन ,जायदाद अपने पूर्वजों से मिली है मगर मैंने दिनरात परिश्रम करके इसे इसलिए न बढा़या ताकि नंदिनी को चरा दूँ !! कुछ वर्ष और फिर उसका विवाह कर दूँगा और मेरा उसके प्रति उत्तरदायित्व खत्म ।"
सूर्य प्रताप क्रोध से झन्नाकर बोले और शिव प्रताप उन्हें अवाक हो देखता रह गया कि पिताजी की कैसी सोच है !!
सूर्य प्रताप भानु के क्रोध का पारावार न था ,वे दिव्य प्रताप से बोले -"दिव्य अभी इसी क्षण हवेली के भीतर जा और सुरतिया से कह जाकर कि पिताजी ने बाहर बुलाया है ,जो भी कार्य कर रही हो उसे छोड़कर तुरंत उपस्थित हो ।"
"जी पिताजी ।"कहकर दिव्य जाने लगा और गोपी दिव्य का अनुगमन करते हुए जाने लगा तो सूर्य प्रताप गरज कर बोले -"ऐऐऐ तू क्या दिव्य के पीछे -पीछे हवेली के भीतर मँड़राता रहता है !! आज से तुझे हवेली के भीतर जाते देख लिया तो तेरी खैर नहीं !!
छोटे-मोटे जो कार्य करना हो कर और न करना हो तो हवेली के पीछे जो श्रीधन के लिए घर बनवाया है उसमें जाकर पडा़ रह ।"
"जी मालिक काका ।"कहकर गोपी मन मसोस कर वहाँ से हट लिया ।
श्रीधन सोचने लगा कि मालिक ने सुरतिया को क्यों बुलाया !!क्या करने वाले हैं मालिक !!
दिव्य हवेली के भीतर चला गया और थोडी़ देर बाद दिव्य के पीछे ही पीछे सुरतिया अपनी साडी़ का छोर अपने हाथ से मुँह में दबाए हुए बाहर आकर सूर्य प्रताप भानु के समक्ष सिर झुकाकर खडी़ हो गई।
"श्रीधन ,कह दे अपनी घरवाली से कि वो आज से जैसे अपनी बेटी को घर कार्य में लगाए रहती है वैसे ही नंदिनी को अपने साथ लगाकर उसे गृहस्थी का हर कार्य सिखाए।"
" जी मालिक !" श्रीधन ने सूर्य प्रताप से कहते हुए सुरतिया की तरफ देखा और सुरतिया ने धीमे से -"जी मालिक "कहा और भीतर चली गई।
"और आप बडे़ साहबजादे , अभी के अभी भीतर जाइए और सुभाषी से स्पष्ट शब्दों में कहिए कि उसे मेरी हवेली में आने की कोई आवश्यक्ता नहीं है ,वो यहाँ दिख गई तो तुम्हारी खैर नहीं ।"
शिव प्रताप भानु पिता के इन कडे़ व रूखे आदेश से मन ही मन खिन्न हो उठा मगर पिता के आदेश की अवहेलना करना उसने सीखा न था अतः मन मारकर तेज कदमों से हवेली के भीतर जाने को मुडा़ तो देखा कि नंदिनी किवाड़ की ओट लिए हुए अश्रु पूरित नयनों से सब देखसुन रही थी ।
शिव प्रताप ने नंदिनी के आगे आँखों में आँसू भरकर बेबसी से हाथ जोड़ लिए और नंदिनी ने कहा -"नहीं दादा ,आप हाथ मत जोडि़ए ,मैं सुभाषी को जाकर मना कर दे रही हूँ ।"
नंदिनी भीतर चली गई और उसके साथ ही शिव प्रताप भी भीतर चला गया।
"श्रीधन , ये तुम्हारी जिम्मेदारी है कि मेरी अनुमति के बिना कोई परिंदा भी हवेली के भीतर प्रविष्ट न हो ,समझे !" सूर्य प्रताप भानु ने कडे़ शब्दों में श्रीधन को कहा और श्रीधन सिर झुकाकर बोला -"जो आज्ञा मालिक ,मैं ध्यान रखूँगा ।"
"बाप रे ! कैसा पिता था ये सूर्य प्रताप !!ऐसा भी बाप होता है भला !!" मादा गौरैया ने नर गौरैया से हैरानी से कहा।
" इंसानों के स्वभाव का क्या ही कहा जाए !!" नर गौरैया ने मादा गौरैया से कहा। ..............शेष अगले भाग में।