बाबा सूर्य प्रताप भानु का उत्तर सुनकर राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु उठकर जाने लगे ।घर के अंदर से अपने ट्रांसपोर्ट के लिए जाते दिनकर प्रताप भानु ने बाबा और राज दादा व राग दादा की बात सुनी और वो व्यंग्य में राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु को सुनाता हुआ चला गया - जिसे देखो जब देखो किसी न किसी चीज़ के बंटवारे के लिए मुंह उठाए चला जाता है ,पहले हवेली बंटवा ली और अब जेवरों में बंटवारा चाहिए ,हुंह !
दिनकर प्रताप अपने काम से काम रखने वाला , अपने में ही रहने वाला था मगर जो कहा जाता है कि 'खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है ' अपने बड़े भाई दिवाकर प्रताप भानु को देख देखकर दिनकर प्रताप भी उसी के समान स्वभाव वाला हो गया था।
दिव्यांश प्रताप भानु इन दोनों से अलग था तो ये दोनों मिलकर उसका उपहास उड़ाते कि दिव्यांश दादा तो विशेष हैं ,भाई इनका क्या कहना !! अपनों को छोड़कर परायों के पीछे भागते उनका समर्थन करते हैं , अब इन दोनों स्वार्थी भाइयों को अपने स्वार्थ की अंधता में ये कहां समझ आता था कि जिनको ये पराया समझते हैं वो इन्हीं के तो भाई हैं , अपनी-अपनी समझ का फेर था , इधर ये दोनों और उधर राग प्रताप ,,, एक समान स्वभाव वाले !!
राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु क्रोध में भरे हुए अपने घर आए और इन दोनों के चेहरे देखकर ही शिव प्रताप भानु और मानसी समझ गए कि पिताजी ने इन दोनों को ठेंगा ही दिखाया है ।
दोनों आंगन में पड़ी कुर्सियों पर क्रोध में मुठ्ठी भींजे हुए बैठ गए।
" क्या हुआ ! पिताजी ने स्पष्ट मना कर दिया ना !! मैं और तुम्हारे पिताजी जानते थे मगर हमने सोचा कि तुम दोनों एक प्रयास करना चाहते हो तो कर लो ।" मानसी पास बैठती हुई बोली ।
शिवन्या ने पानी लाकर दोनों को दिया और भरे कण्ठ से राज प्रताप भानु से बोली -" दादा आप और राग प्रताप मेरे लिए परेशान मत हो , मुझे जेवर नहीं चाहिए ।"
" अरे तुम्हें देने के लिए जेवर तो हम बनवा ही देंगे ,बात तो बाबा की नीयत की है , जिन्होंने हमारे पिता का हिस्सा उन्हें देने से साफ साफ मना कर दिया !! और उनका हमारे पिता को उनके हिस्से के जेवर न देने के पीछे का तर्क तो जरा देखो - मैं इतना पागल नहीं हूं कि तिजोरी के जेवर तुम्हारे पिता को दूं और वो लुटा दें ...... राज प्रताप भानु ने बाबा सूर्य प्रताप भानु के कहे शब्द दोहराए ।
" ननद जी को चार डिब्बे जेवर दे दिए गए थे उनके विवाह पर उपहार में,वो पिताजी को अभी तक पचा नहीं ना !!"मानसी के मुंह से निकला ।
" हाय तो नंदिनी बुआ की वजह से हम बहुओं को हमारे खानदानी जेवर पाना तो दूर देखने तक को न मिले !!" दामिनी ने रोआसा मुंह बनाकर कहा ।
रुचिरा भीतर दादी दिव्या के चरण चापड़ कर रही थी ।
" तुम जब भी मुंह खोलती हो तो अपना रोना रोने के लिए ही क्यों खोलती हो !! भीतर जो मां के चरण दाब रही है वो कुछ न कहती ,मैं जब यहां ब्याह कर आई थी तो मुझे भी जेवरों के नाम पर इस घर से नाक का बुंदा तक न मिला मगर जब से तुम ब्याह कर आईं ,कभी सुना कि मैं इसका रोना लेकर बैठी होऊं !! " मानसी ने अपना हाथ दिखाकर दामिनी से कहा ।
" दादी , आप हमारी भी दादी हो और उसके पहले पिताजी की मां हो उस नाते आपको नहीं लगता कि आपको हमारे साथ हो रहे पक्षपात पर बाबा से बात करनी चाहिए , बाबा के समक्ष दलील रखनी चाहिए कि आप जो कर रहे हैं ये सही न कर रहे हैं , आखिर पिताजी ने उन जेवरों के डिब्बे आपकी ही बेटी को दिए थे न कि किसी ऐरे गेरे पर लुटा दिए थे जो बाबा अभी तक उस बात से नाराज हैं !!" राग प्रताप ने आंगन में बैठे ही बैठे तेज स्वर में दिव्या से कहा ।
" मैं कुछ नहीं जानती , ये तुम लोग आपस में जानो और समझो ,मैं पहले भी कह चुकी हूं कि मैं 'इनसे' इस संबंध में कुछ कहकर 'इनके' द्वारा इंकार सुनकर अपना मन खराब न करना चाहती हूं ।" अपने कक्ष से उठकर दिव्या ने आंगन में आकर कहा ।
"बस बहुत हो गया,अब इस संबंध में कोई बात न होगी ।" कहते हुए शिव प्रताप भानु अपने कक्ष में चले गए और मानसी भी पीछे चली गई ।
" बस श्रीधन काका , अब आइए और भोजन कर लीजिए ।" अगले दिवस शिव प्रताप भानु ने अपने खेतों में बने मचान पर बैठे हुए श्रीधन से कहा और श्रीधन खेतों में काम करना छोड़कर हाथ मुंह धोकर मचान पर भोजन करने आ गया ।
शिव प्रताप भानु जब दोपहर को भोजन करने के बाद अपने खेतों पर जाता तो श्रीधन के लिए भोजन लिए जाता था और मचान पर अपने पास बैठाकर उसको भोजन कराते हुए उसे हर एक बात बताकर मन हल्का कर लेता था ।
" क्या हुआ शिव बाबू , आप शिवन्या बिटिया को दिए जाने वाले जेवरों के विषय में चिंतित थे , मालिक ने तो तिजोरी में से एक भी जेवर देने को न स्वीकार किया होगा !!" श्रीधन ने निवाला मुंह में रखते हुए पूछा ।
शिव प्रताप भानु ने सारी बात उनके सामने रख दी ......
उस दिवस के बाद से राग प्रताप भानु ने उस घर के किसी भी सदस्य से बात करना बंद कर दिया और दामिनी भी जो कनक से छत से बात कर लेती थी ,उसने भी वो बंद कर दिया ।
शिव प्रताप भानु ने शिवन्या के विवाह के जेवर बनवा लिए और देखते ही देखते शिवन्या का विवाह उसने बड़ी धूमधाम से संपन्न किया ।
लोक-लाज के भय से सूर्य प्रताप भानु पोती शिवन्या के ब्याह में सम्मिलित तो हुए मगर शिवन्या के ससुर या पति के हाथों पर शगुन के नाम पर ग्यारह रुपए भी न रखे .........शेष अगले भाग में।