दिव्य प्रताप भानु के बच्चों की पढाई हो चुकी थी इसलिए वे अपनी मां कनक के साथ हवेली ही रुक गए थे मगर दिव्य प्रताप भानु की सरकारी नौकरी थी अत: वो वापस चला गया था ,कनक ने दिव्य प्रताप भानु से कह दिया था कि वो हफ्ते दस दिन बाद आ जाएगी ।
कनक के आ जाने से अब दिव्या को हवेली में सूर्य प्रताप भानु के लिए भोजन न बनाना पड़ता ,कनक बहुत अच्छी तरह से पूरी हवेली को शीशे की भांति साफ भी रखती और पाकशाला भी बहुत अच्छी तरह से संभाले थी ।
सूर्य प्रताप भानु का स्वास्थ्य भी उत्तरोत्तर सही हो रहा था ।
शिवन्या, शिवल्या अब मानसी के गृह कार्यों में हाथ बंटाने लगी थीं। शिवन्या पाकशाला में मां मानसी का बराबर हाथ बंटाती और शिवल्या घर से लेकर मंदिर तक सब बहुत साफ-सुधरा रखती थी , गंदगी लेशमात्र भी न दिखाई देती थी , मंदिर के सामने ही उसने कुछ फूलों के पौधे लगाए थे जिसमें सुंदर फूल आते और शिवल्या उन्हें मंदिर के थाल में रख देती ,जो भी पूजा करने आता था वो फूल उस थाल से फूल लेकर चढ़ा देता था ।
शिवाली की मंद बुद्धि का फायदा कनक उठाने लगी थी ।शिवाली ,कनक को अपनी हवेली के आसपास दिख जाती तो वो अपनी हवेली का फाटक खोलकर उसे मुस्करा कर भीतर बुला लेती और फिर उससे मीठी- मीठी बातें कर छोटे-छोटे काम करवा लेती , जो भी व्यंजन कनक बनाती वो शिवाली के आगे भी रख देती और शिवाली खुश होकर मन ही मन सोचती कि कनक चाची तो बहुत अच्छी हैं ,पता नहीं क्यों मां और मेरे भाई -बहन उन्हें पसंद न करते हैं !!
कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा ।मानसी , शिवन्या और शिवल्या तीनों को समझ न आ रहा था कि शिवाली कहां चली जाती है !!
एक दिन मानसी ने शिवन्या और शिवल्या से पूछा -" तुम दोनों को पता है शिवाली दिन भर कहां घूमती रहती है ?? "
"नहीं मां मैं तो आपके साथ पाकशाला में लगी रहती हूं ।" शिवन्या ने कहा ।
"मां मैं तो घर और मंदिर की सफाई में लगी रहती हूं तो ध्यान ही न दिया कि वो कहां घूमती रहती है !!" शिवन्या ने कहा ।
" अरे !!तुम दोनों जानती हो कि शिवाली तुम दोनों और तुम्हारे दोनों भाइयों राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु जैसी बुद्धिमान नहीं है तो उसका ध्यान तो तुम लोगों को ही रखना चाहिए ना !!"मानसी बिफर कर बोली ।
" मां ,मुझे पता है ,शिवाली जब देखो तब हवेली चली जाती है , कनक चाची उसे बुला लेती हैं ।" राग प्रताप भानु ने आकर कहा।
" क्या , राग प्रताप भानु !! तुम जानते हो फिर शिवाली को हवेली जाने से रोका क्यों नहीं !! कनक चाची कितनी स्वार्थी और रुखे स्वभाव की हैं ,, वो शिवाली से अवश्य ही अपना काम निकालती होंगी !!" शिवल्या ने क्रोध में भरकर राग प्रताप भानु से कहा ।
"तू सही कह रही है शिवल्या, आज आने दो शिवाली को ,अच्छे से उसकी खबर लूंगी ।" शिवन्या ने कहा ।
कुछ देर ही हुई थी कि शिवाली अपने गीले हाथों को अपने दुपट्टे से पोछती हुई घर के भीतर आई ।
"शिवाली ,कहां से आ रही हो ? और तुम्हारे हाथ गीले क्यों हैं ?" शिवन्या ने शिवाली की तरफ देखकर कहा ।
मानसी पाकशाला में थी ,वो भी बाहर आ गई।
" मैं तो , वो कनक चाची मुझे बुला ले गई थीं ,कह रही थीं कि आओ शिवाली मैंने तुम्हारी पसंद के गोंद वाले लड्डू बनाए हैं ,खा लो आकर , उन्होंने मुझे गोंद के लड्डू खिलाए बहुत स्वादिष्ट थे।" शिवाली अपने होंठों पर अपनी जीभ फिराते हुए बोली ।
शिवन्या और शिवल्या ने एक दूसरे की तरफ देखा फिर शिवल्या बोली -" अच्छा,फिर तुम्हारे ये हाथ कैसे गीले हुए !!"
"ये ,ये तो कनक चाची ने कहा जरा कपड़े छत पर सुखाने के लिए डाल आओ तो मैं अपने हाथ पर ही गीले कपड़े लेकर चली गई थी तभी मेरे हाथ गीले हो गए।" शिवाली ने मासूमियत से कहा ।
" तुमसे किसने कहा था कि तुम हवेली जाओ , जी तो करता है कि तुम्हारे दो चार लगाऊं , तुम्हारी बुद्धि में न घुसता है कि कनक चाची तुमको अपनी चिकनी-चुपडी बातों में लगाकर तुमसे अपना काम निकलवा लेती हैं !! उन्होंने गोंद के लड्डू क्या दिखाए , तुम्हारी लार टपक गई !! इतना ही गोंद के लड्डू खाने के लिए मरी जा रही थीं तो यहां मां से ,मुझसे या शिवल्या से न कह सकती थीं !!
हम तुम्हारे लिए क्या गोंद के लड्डू न बना देते मगर ..." तुम भी क्या शिवन्या!! किसके आगे अपना माथा फोड़ रही हो ,जानती हो कि वो न समझेगी ;" मानसी ने शिवन्या की बात को काटकर अपनी साड़ी का पल्लू कमर में खोंसते हुए कहा -" इस कनक के दिमाग तो आज मैं सही करूंगी ,, मेरी भोली और मासूम बच्ची को अपनी नौकरानी समझ कर रखा है क्या??"
मानसी क्रोध में भरकर कहते हुए घर से बाहर निकलने को बढी़ ही थी कि दिव्या आ गई और बोली -"ये क्या कोहराम मचा कर रखा है तुम सबने !! अरे मानसी ,तेरा हाथ बंटाने के लिए तेरी दो बेटियां शिवन्या और शिवल्या हैं ,,कनक बेचारी तो अकेले ही सब करती है ,,,ऐसे में अगर उसने शिवाली से जरा कुछ काम कह भी दिया तो क्या हो गया !!
शिवाली घिस तो न गई !! "
" दादी आप तो रहने ही दो , मां बिलकुल सही कह रही हैं ,, वैसे तो कनक चाची न मां से न हम सबसे सीधे मुंह बात न करती हैं और शिवाली को देखते ही प्यार उमड़ आता है !!
'सास से बैर और बहू से रिश्ता '। वाली उक्ति उन पर बिलकुल ठीक बैठती है ,, मां अगर आज कनक चाची से इस संबंध में कुछ बात न करेंगी तो मैं करूंगा जाकर ,मेरी बहन उनकी खरीदी गुलाम नहीं है ,, " राज प्रताप भानु ने अपने कक्ष से उठकर बाहर आकर मां मानसी की बात का समर्थन करते हुए कहा ।
शिवाली , शिवन्या की फटकार सुनकर रोने लगी थी और रोते रोते कहे जा रही थी --"कनक चाची कितना तो प्यार करती हैं मुझे ,, आप दोनों दीदी को न करतीं इसीलिए आप दोनों दीदी को जलन होती है तभी आप दोनों दीदी मुझे फटकार देती हो ...........शेष अगले भाग में।