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लघु कथा

hindi articles, stories and books related to Laghu katha


जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी वो एकांत जगह की तलाश में घूम रही थी कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी।उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये वहां पहुँचते ही उसे प्र

*सुबह सुबह मिया बीवी के झगड़ा हो गया,*बीवी गुस्से मे बोली - बस, बहुत कर लिया बरदाश्त, अब एक मिनट भी तुम्हारे साथ नही रह सकती।*पति भी गुस्से मे था, बोला "मैं भी तुम्हे झेलते झेलते तंग आ चुका हुं।*पति ग

किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती कोई बीस वर्ष की रही होगी और बिहार के एक गांव, अपने ससुराल में अपने पति राम अमोल पाठक, नवजात शिशु चन्दन और जेठानी क

प्राचीन काल में ‘करवा’ नाम की एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी किनारे एक गाँव में रहती थी । कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी (चौथ) के दिन उसका पति नदी में स्नान करने के लिए गया । स्नान करते स

बेटियाँ...बाबुल के घर से चली जाती है...ये बेटियाँ बहुत सताती हैं...फिर कहाँ लौट करके आती है...ये बेटियाँ बहुत सताती है...लोरियां गा के मां सुलाती थी...रोने लगती तो वो हंसाती थीं...उंगलियां थाम कर चली

पिछले अध्यायों में हमने जाना कि दिशा ने अपने रेस्टॉरेंट - कैफे की शुरुआत कैसे की और साथ ही हमने दिशा की ज़िन्दगी के पिछले पन्नों के बारे में जाना। फिर हमने दिशा के ही रेस्टॉरेंट में ही काम करने वाली अन

आपने पीछले भाग में देखासुलोचना - हु .. ह .. मैं तुम लड़को को जानती हूँ ।  जब तुम्हें कोई काम होता है । तो तुम सब बटरिंग करना शुरु कर देते हो । चल अपना काम बोल । क्या चाहिए मेरे से ।   र

 आपने पीछले भाग मे देखा    आरव की बात सुनकर सुलोचना भी गुस्से में बोली - मुझे भी कोई शौक नहीं है । इतनी बेजती के होने के बाद जॉब करने की । सोच लो बाद में पछताना ना पड़े तुम्हें । आरव -

अब तक हमने पढ़ा कि किस तरह दिशा जर्नलिस्ट से रेस्टॉरेंट की ओनर होने का सफर तय करती है | दिशा का रेस्टॉरेंट द कैफे ही दिशा की ज़िन्दगी बन जाता है | आपको अनोखी याद है ? वो प्यारी सी लड़की जो कहानी की शुरुआ

कैफे जो दिशा की ज़िन्दगी बन चूका है उसकी शुरुआत भी इतनी आसान नहीं थी | दिशा किसी ज़माने में पत्रकार यानि जर्नलिस्ट हुआ करती थी पर उसे अपना जॉब बहुत बोरिंग लगता था | एक दिन हिम्मत जुटा  कर दिशा ने अ

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसे क्षण अवष्य आते हैं जब उसे लगता कि उसे उस समय वह कार्य नहीं करना चाहिए था और व्यक्ति का मन एक दुःख और निराषा से भर उठता है। इसी प्रकार की एक घटना याद आती है जब एक व्यक्

मुकेश लकड़ी का कार्य करने में अत्यन्त ही कुशल कारीगर था। काशी में दूर-दूर से लोग उसके पास लकड़ी के फर्नीचर और डिजाईनर सामान बनवाने के लिए आते थे जिससे उसके कार्य की ख्याति अत्यधिक फैल चुकी थी। मुकेश सदा

राम अमोल पाठक जी बिहार के एक गांव के भरे-पुरे परिवार से थे |  गांव में आँगन वाला सबसे ऊँचा मकान राम अमोल पाठक जी का था, घर पर पिताजी,भैया-भाभी, एक प्यारी सी भतीजी और बीवी अमरावती थी, अभी-अभी राम अमोल

आंचल आज बहुत उदास सी आकर घर के पास के गॉर्डन में बैठती है ,उसके आंखो में आंसु छलकने ही वाले थे ,वह उसे पोंछ लेती है , वह करीब पैतालीस ,पचास के बीच की थी !! वह सोचती हुई बड़बड़ाई ,*" क्या रखा इस जिंदगी

एक तुम्हारा होना~तुमसे कही बातों का कोई अंत क्यो नही मिलता । हर बार कहकर सोचता हूँ अब आखिरी बात तो कह डाली मैंने , पर देखो न अंतिम दफा की कहन अपनी मेढ़ को तोड़कर बह चुकी है किसी ओर , और अब मैं इसे शब्द

राहुल निम्न मध्यवर्गीय परिवार से तीन भाई-बहनों में मझला बेटा था। उसके पिता जूते बनाने वाली एक फैक्ट्री में सेल्समैन का काम करते थे। जिससे बड़ी मुष्किल से उनके परिवार का गुजारा चल पाता था। दसवीं की परीक

सदा बेईमानी करने वाला मनोहर स्कूटी चलाते हुए कुछ सोचते हुए कहीं जा रहा था। थोड़ी दूर बाद लाल बत्ती आने के कारण अनेकों गाड़ियां कतारबद्ध खड़ी हो गई। तभी पीछे से एक मोटरसाईकिल सवार मनोहर के आगे आकर रूका

इंसान का मन कभी अपने आप विचलित नहीं होता है, इंसान को विचलित करने वाला खुद इंसान ही होता है, कोई अच्छे संस्कारों में जीता है,कोई गलत संगति में जो गलत संगत में होते है, अच्छे के साथ बात

आज मनु को लड़के वाले देखने आये थे।मनु के पिताजी के  ही उसकी सगाई की बात चल रही थी पर अचानक से मनुके पिता का हार्ट अटैक से निधन हो गया।इस लिए बात वहीं की वहीं रह गयी। लेकिन जवान बेटी को कब तक रखते

प्रेम तब ही गहरा होता है जब विरह होता है।सभी प्रेम की ही बातें लिखते है जरा सोचे विरह के बाद जो मिलन होता है उसमे प्रेम रिश्तों की जड़ों तक समा जाता है ।एक कहानी के रूप मे आओ समझे।नंदिनी मां बाप की इक

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