लोहे की छड़ी गर्म होकर लाल होने लगती है। जिससे उड़ने वाले लोहे के जलने की गन्ध जंगल में महकने लगती है। इस समय पेड़ से बंधी सोना बेहोश हो चुकी थी। तभी साइको सोना के चेहरे को अपने हाथों से हिलाते हुए उसे जगाने की कोशिश करता है लेकिन सोना उठ नहीं पाती। तभी वह व्यक्ति अपने पास रखा एक बोतल से पानी निकाल सोना के चेहरे पर छींटे मारता है। पानी चेहरे और आंखों पर पड़ने के लिए कारण सोना की आंख जैसे ही खुलती है, वैसे ही साइको हंसने लगता है और सोना से कहता है। जाग गई तू। अब देख तेरे लिए मैंने अपने प्यार की निशानी तैयार कर ली है। बस अब इस निशान का लगना बाकी है। मैं तो तेरे जागने का कब से इंतजार कर रहा था और एक तू है कि बेहोश होकर मेरा कितना समय बर्बाद कर दिया। तभी वह अपने लोहे का गर्म और लाल डण्डा उठाकर सोना की ओर बढ़ने लगता है। जिसे देखकर सोना इस बार डरती नहीं बल्कि मुस्कुराती है। सोना को मुस्कुराता देख पहले तो वह व्यक्ति हैरान होता है कि ऐसे समय में वह कैसे मुस्कुरा सकती है लेकिन इस बात की चिन्ता किये बगैर वह जैसे ही सोना के सीने पर ठप्पा लगाने की लगता है तभी उसकी पीठ पर एक जबरदस्त लकड़ी का भारी डण्डा पड़ता है। ऐसी अकस्मात चोट के कारण उसके हाथ से लोहे का डण्डा वहीं गिर जाता है। जैसे ही साइको वह पीछे मुड़कर देखता है, तो उसके पीछे सोना का पिता फौजी गंगाधर अपनी 12 बोर की दोनाली बंदूक लिए खड़ा था। जिसके बट से उसने साइको पर हमला किया था। इससे पहले साइको कुछ कर पाता, गंगाधर ताबड़तोड़ उसके चेहरे पर बंदूक के पिछले लकड़ी वाले हिस्से यानि बट से वार करने लगता है। जिसकी जबरदस्त चोट से साइको के चेहरे से बुरी तरह से खून निकलने लगता है और उसका एक दांत टूटकर वहीं गिर जाता है।
तभी जैसे ही फौजी बंदूक का निशाना साइको की ओर लगाकर गोली चलाता है, साइको बड़ी फुर्ती से छलांग लगाकर अपना लोहे का डण्डा उठाकर दूसरी ओर खड़ा हो जाता है। जिसके बाद वह चिल्लाते हुए गर्म और लाल तपता हुआ कोना फौजी की ओर करके दौड़ता हुआ आता है ताकि वह पहले फौजी का ही खात्मा कर सके। लेकिन तभी गंगाधर दूसरी गोली साइको पर चलाता है। लेकिन आश्चर्य...! साइको न जाने कैसे खुद की ओर आने वाली गोली के आगे अपने लोहे के डण्डे को करके बच जाता है और गोली लोहे के डण्डे से टकराकर दूसरी ओर मुड़ जाती है। दोनाली बंदूक में 2 ही गोलियां थी जिसे गंगाधर चला चुका था। लेकिन अब उसके पास इतना समय नहीं था कि वह बंदूक में फिर से और गोलियों को डाल सके क्योंकि साइको गर्म लोहे की रॉड उसकी ओर किये भागता हुआ आ रहा था। जैसे ही वह रॉड गंगाधर के पास पहुंचती है, वह बड़ी ही तेजी से दांयी ओर नीचे की ओर घूमकर साइको की दोनों टांगों पर जोरदार किक मारता है। जिसके कारण एक बार फिर साइको गिर पड़ता है। मौका देखते ही फौजी साइको का डण्डा छीन लेता है और गुस्से से गरजते हुए कहता है - हरामजादे, तूझे बहुत शौंक है न, कमजोर और मासूम लड़कियों और औरतों पर यह ठप्पा लगाने का, तो आज मैं बताउंगा कैसे लगाया जाता है ठप्पा। तभी गंगाधर फौजी साइको पर लातों की बरसात कर देता है। तभी साइको खड़े होने के लिए किसी कूंगफू मास्टर की तरह उल्टी छलांग मारता है। तभी फौजी गंगाधर उसके पिछवाड़े पर उसी के द्वारा गर्म और लाल किया लोहे का ठप्पा चिपका देता है। गरम-गरम लोहे का ठप्पा पिछवाड़े पर लगते ही वो धड़ाम से सिर के बल गिर पड़ता है और बेहोश हो जाता है। तभी गंगाधर को अपनी बेटी सोना की याद आती है जो वहीं पीछे पेड़ में बंधी हुई ये सारा नजारा देख रही थी। साइको और उसके डण्डे को वहीं छोड़कर गंगाधर अपनी बेटी को पेड़ से खोलने जाता है और उसे खोलकर अपने गले से लगा लेता है। फिर वह पीछे मुड़कर देखता है तो वह साइको और उसका डण्डा दोनो गायब थे। मतलब साफ था, वो इस समय हारकर और चोट खाकर भाग चुका था। लेकिन ऐसा लगता तो नहीं, कि वो हार मानेगा। आगे क्या होता है, जानने के लिए अगले अंकों में भी बने रहें।