एक बार पुजारी ने प्रधान और अपने ब्राह्मण समाज के लोगों को इकट्ठा करके बुलाया और उनसे कहा कि आज रात को उनके स्वप्न में स्वयं मां भगवती ने दर्शन दिये हैं और उन्होंने कहा है कि उनकी प्रतिमा इसी गांव के किसी स्थान में स्वयंमेव प्रकट होगी और वह स्थान जिसका होगा वह उसे मन्दिर की स्थापना के लिए दान कर देगा। यह बात सुनकर सभी अचंभित हो गये कि किस प्रकार माता की मूर्ति स्वयंमेव प्रकट हो सकती है। सभी गांव वाले पूरे गांव में हर जगह झुण्ड बनाकर फैल गये और देखने लगे कि कहां से मूर्ति प्रकट होती है।
तभी मंदिर के ही बगल वाले खेत में हलचल होनी शुरू हो गई जिसे एक गांव वाले ने देखा जो कोई और नहीं ग्राम प्रधान का ही एक खास आदमी था। सभी गांव वाले ध्यान से उस ओर देखने लगे। तभी जमीन के अंदर से एक मूर्ति धीरे-धीरे बाहर आने लगी और जमीन से करीब एक फुट ऊपर तक बाहर निकल आई। इस चमत्कार को देखकर सभी गांव वाले माता के जयकारे लगाने लगे। यह जमीन सोना के पिताजी की ही थी। पुजारी और प्रधान ने ऐलान कर दिया कि यह जमीन अब मन्दिर परिसर की है जिसमें उनका घर भी आता है। इसलिए अब उन्हें यह गांव छोड़कर यहां से जाना होगा। पूरा गांव एकमत हो गया। उसके पिताजी का विरोध करने पर उन्हें विधर्मी कहना प्रारम्भ कर दिया और उन्हें गांव से बाहर निकाल दिया। वो तो उन्हें फौज की नौकरी की रिटायरमेंट से कुछ पैसा मिला था जिसकी सहायता से उन्होनें गांव के बाहर जमीन खरीद ली और वहीं छोटा सा आशियाना बनाकर रहने लगे।
प्रधान और पण्डित की साजिश का उन्हें तब पता चला। जब अगली ही रात को उसके पिताजी खोज करने के लिए अपनी जमीन के उसी स्थान पर पहुंचे जहां से माता की मूर्ति निकली थी। वहां उन्होंने थोड़ा सा खोदा तो वहां पर कुछ संख्या में भीगे हुए चने दिखाई दिये। थोड़ा और तलाश करने पर खेत के किनारे जहां कूड़ा कचरा फैंका जाता है वहां देखने पर एक फूटी हुई मिट्टी की हांडी दिखाई दी, जिसमें भी भीगे हुए चनों के कुछ टूकड़े थे। बात स्पष्ट थी, पुजारी ने रात को एक हांडी को आधा कच्चे चनों से भरकर उस पर मां भगवती की मूर्ति रख हांडी को पानी से पूरा भर दिया था और सुबह लोगों के निश्चित स्थान पर ले जाकर दिखाया की मूर्ति स्वयंमेव जमीन से बाहर आ रही है। जबकि यह सब पानी से निश्चित समय में चने फूलकर हांडी में ऊपर उठ रहे थे। जिसके ऊपर रखी मूर्ति जमीन से बाहर आ गई। यह चमत्कार दिखाकर किस प्रकार पुजारी ने उनकी सम्पत्ति को लूट लिया था और उनका अपमान करके गांव से भी बाहर निकाल दिया था लेकिन यह सब बात साबित करने का उनके पास कोई उपाय नहीं था और न ही उनकी बात को कोई मानने वाला था। इसलिए उसके पिताजी अपनी पत्नी और बच्ची की खुशी को देखते हुए अपना मन मसोज कर चुप रह गये।