जैसा कि माया ने कोढ़ी महिला को बताया था। उसी के अनुसार उसका भाई कुछ खाने का सामान और अन्य आवश्यक वस्तुएं वहां छोड़ जाता है। जिसकी सहायता से माया उक्त महिला का उपचार करने लगती है। यह सब दूर-दूर से सोना भी देखती रहती है कि किस प्रकार उसकी मां अपने ज्ञान और अपनी कोमल स्वभाव के कारण अन्य व्यक्तियों की सहायता कर रही है। जबकि उसी गांव के लोगों ने उनका सबकुछ छीन लिया है लेकिन वह फिर भी उनके प्रति करूणामय है। समय कैसे बीतता है पता ही नहीं चलता। लगभग एक वर्ष पश्चात वह महिला बिल्कुल स्वस्थ हो चुकी थी। इतनी लम्बी बीमारी के कारण उसकी त्वचा में कुछ दाग धब्बे रह गये थे लेकिन वह अब पूरी तरह से स्वस्थ थी। महिला का भाई जो एक वर्ष तक औषधी का सारा सामान दूसरे गांव से प्रबन्ध करता है। उनके अपने ही गांव के कुछ लोग जो प्रधान के खास चमचे थे। उसकी शिकायत लगाते हैं कि उसका आना-जाना दूसरे गांव में कुछ अधिक हो गया है। जबकि वहां रहने वाले लोग उनसे बहुत नीची जाति के हैं, जिनके पास जाना तो दूर उनकी परछाई तक हम लोगों पर नहीं पड़नी चाहिए। लेकिन वह ब्राह्मण होकर भी एक ही माह में अनेकों बार वहां आता जाता है। ऐसा उसे क्या काम पड़ गया। जरूर दाल में कुछ काला है, हमें इसके बारे में पता लगाना चाहिए। प्रधान इस बारे में पुजारी से विचार विमर्श करता है। तब वह यह निष्कर्ष निकालते हैं कि उक्त महिला के भाई का पीछा किया जाये और यह पता लगाया जाये कि आखिर क्या माजरा है और उसकी बहन का क्या हुआ जो कोढ़ से ग्रसित थी, एक वर्ष होने को आया। अब तक तो उसकी हालत इतनी खराब हो चुकी होगी कि बस उसकी मृत्यु की खबर आती ही होगी। हम तो उसे भूल ही गये थे।
प्रधान का आदमी चंपक लाल अब चुपके-चुपके महिला के भाई का पीछा करने लगा। दूसरे गांव में पहुंचकर वह देखता है कि वह व्यक्ति पंसारी की दुकान जहां पर आर्युवेदिक दवायें मिलती थी, वहां से कुछ खरीद रहा है। उसके जाते ही चंपक लाल पंसारी की दुकान में पहुंचकर उस व्यक्ति के बारे में पूछने लगता है यहां पर कब से आ रहा है और क्या खरीद कर जाता है। पंसारी बताता है कि वह कुछ आर्युवेदिक दवाएं जैसे नीम का तेल और इस प्रकार की अनेकों सामग्रीयां खरीदकर अक्सर ले जाता रहता है। लगता है उसके परिवार में जरूर किसी को त्वचा संबंधी रोग है। जिसके लिए वह यहां अक्सर आता है। यह सुनकर चंपक लाल जंगल की जाने लगता है कि देखें तो सही माजरा क्या है। छिपते हुए चंपक लाल जंगल के दूसरे रास्ते से झोपड़ी के पीछे की ओर जाकर एक छोटे सूराख से अंदर झांकने लगता है। अंदर का नजारा देखकर उसकी आंखे फंटी की फंटी रह जाती है। वह महिला बिल्कुल सही हो चुकी थी और वह माया का धन्यवाद कर रही थी कि यदि वह सही समय पर उसकी सहायता न करती तो उसका बचना असंभव था। मेरे लिए तो तुम ही भगवान हो और रोते हुए उसके पैर पकड़ने लगती है। तब माया कहती है, रोओ मत, अब तो तुम ठीक हो चुकी हो, अब वापिस अपने गांव जाओ लेकिन तुम कैसे स्वस्थ हुई किसी को मत बताना कहना ईश्वर ने तुम्हारे पापों को क्षमा कर दिया है इसी कारण तुम स्वस्थ हो गई हो। क्योंकि अगर तुम सत्य बताओगी तो वह तुम्हारी बात नहीं मानेंगे और तुम्हें और अधिक प्रताड़ित करेंगे। महिला ऐसा ही करने को कहती है। पीछे कान लगाने चंपक लाल यह सभी बातों को सुनकर बड़ी तेजी से गांव की ओर भागने लगता है क्योंकि इतनी बड़ी खबर ने उसके पेट में भूचाल मचा दिया था जिसे पचाना उसके लिए बहुत मुश्किल था।
गांव पहुंचते ही चंपक लाल यह खबर प्रधान को बताता है। जिसे सुनकर प्रधान मन ही मन परेशान हो उठता है कि यदि यह बात सत्य है तो गांव में रहने वाले लोगों के मन में उनकी बातों के प्रति संदेह उठने लगेगा क्योंकि उनकी पुरानी कही सभी बातें झूठ साबित हो जायेंगी। ऐसा होने पर उनका दबदबा खत्म होते देर न लगेगी। वह सीधे पुजारी के पास जाकर इस सारी घटना को बताता है कि अब हमें कुछ ऐसा करना चाहिए। जिससे हम उस माया को सबक सिखा सकें और गांव के मन में अधिक जगह बना सकें ताकि वह हमारी कही हर बात को आंख मूंद कर माने और हमारा भगवानगिरी का धन्धा भी बिल्कुल बढ़िया तरीके से चल सके। पुजारी प्रधान को कहता है तुम चिन्ता मत करो, अब देखो मेरे दिमाग का कमाल। ऐसी चाल चलूंगा कि एक ही तीर से दो शिकार हो जायेंगे और हमारा भी काम हो जायेगा।