यह सुनते ही शक्तिनाथ का माथा ठनक गया और वह तेजी से अपनी कुर्सी से उठते हुए बोला, कहां देखा था तूने उस औरत को, हीरा ठाकुर - यहीं पास ही एक कुंआ पड़ता है, बस वहीं पेड़ के नीचे। इससे पहले हीरा ठाकुर कुछ समझ पाता। शक्तिनाथ तुरन्त बाहर निकलकर हीरा ठाकुर को पीछे बैठने को बोलता है और गाड़ी दौड़ाता हुआ पास ही कुंए के पास जाने लगता है।
हीरा ठाकुर की यही बात पास ही खड़े चाय वाले ने सुन ली थी। वह बड़ी तेजी से दूसरी ओर गांव की तरफ यह बात गांववालो को बताने के लिए भागता है। उसे रास्ते में जो भी मिलता है, वह चिल्लाते हुए सबको बताता जाता है कि पागल आदमी, किसी औरत के भेष में गांव के कुंए के पास खड़ा है। जल्दी आओ, जल्दी आओ। जो भी यह बात सुनता है, अपने घरों में रखे लाठी, डण्डे, कुल्हाड़ी, दराती, फावड़े जिसके हाथ जो भी लगता है। उसे लेकर गांव के कुंए की ओर दौड़ने लगता है। रास्ते से गुजर रहे फौजी गंगाधर को यह बात सुनाई पड़ती है तो वह भी तुरन्त उस ओर भागने लगता है।
इधर शक्तिनाथ को रास्ते में जो भी पुलिस के सिपाही दिखाई पड़ते हैं, उन्हें वह चलते-चलते वहीं कुंए के पास पहुंचने को बोलता हुआ गाड़ी दौड़ाता हुआ, कुंए के पास गांववालों से पहले पहुंच जाता है। जहां वह खिलौने बेचने वाली औरत सुन्दरी खड़ी थी। इन्स्पेक्टर की गाड़ी के पीछे हीरा ठाकुर को बैठा देख वह तुरन्त बड़ी तेजी से दूसरी ओर भागने लगती है। जिसके पीछे इन्स्पेक्टर अपनी मोटर साईकिल भगाता हुआ उसे पीछे से गर्दन को दबोच लेता है और वहीं उसे पकड़कर अभी हथकड़ी लगाने ही वाला था तभी अचानक वह औरत दूसरे हाथ से एक दोधारी कटार से शक्तिनाथ की कलाई पर तेज वार करती है, जिससे हाथ की नस कटने के कारण शक्तिनाथ के हाथ से खून तेजी से बहने लगता तभी वह औरत अपना दुपट्टा और लहंगा वहीं उतारकर फैंक देती है, जिसके अंदर उसने टीशर्ट और पैन्ट पहनी हुई थी। वह कोई और नहीं बल्कि वही साइको था जो कितने दिनों से गांव वालों और पुलिस की नजरों से बचकर खूलेआम घूम रहा था। एक हाथ में छोटी से दो धारी कटार जो उसके हाथ में एकदम फिट आती थी। अपने हाथों को तेजी से घुमाता हुआ। वो दूसरी ओर भागने लगता है तभी उसे आगे से दोनों ओर गांव वालों की भीड़ हाथों में लाठी, डण्डे, तलवारें, भाले लिए उसकी ओर तेजी से भागती आ रही दिखाई पड़ती हैं। उन्हें देखते ही वह शक्तिनाथ की मोटरसाईकिल उठाकर तेजी से दौड़ाता हुआ, गांव से बाहर निकल जाता है।
गांववाले इन्स्पेक्टर के पास पहुंचते हैं और उस साइको को मोटरसाईकिल से भागता हुआ देख लेते है। तभी पीछे से आ रहा फौजी गंगाधर गांववालों को शान्त कराते हुए कहता है, तुम चिन्ता मत करो, उसका सामना आज इस गांव और इस गांव के लोगों से हुआ है, अब वो जहां भी भागकर चला जाये, मैं उसे पाताल से भी ढूंढकर उसे कुत्ते की मौत मारूंगा। अभी जल्दी से इन्स्पेक्टर को अस्पताल ले जाओ। इनका खून काफी बह चुका है। जल्दी से इनकी कलाई में कोई कपड़ा बांधों ताकि खून को बहने से रोका जा सके। यह सुनकर गांववाले तुरन्त इन्स्पेक्टर का हाथ कपड़े से बांधकर उसे अस्पताल की ओर ले जाते हैं और उसकी बहादुरी की प्रशंसा करते हैं कि कैसे वह अकेले ही उस पागल आदमी से लड़ने आ गया। गांववालों के द्वारा हो रही यह तारीफ एक और शक्तिनाथ को अच्छी लग रही थी वहीं दूसरी ओर इन तारीफों से वह खीझ भी रहा था कि इतने पास आकर भी वह साइको उसके हाथ से निकल गया।