वहीं दूसरी ओर इंस्पेक्टर शक्तिनाथ जंगल में हुई गार्ड की हत्या की जांच-पड़ताल अपने ही तरीके से कर रहा था। शक्तिनाथ के साथ जो हवलदार तैनात था जो उस गांव का ही निवासी था, इंस्पेक्टर से कहता है। साहब हमें गांव के बाहर जंगल से सटे उस परिवार से मिलना चाहिए, जैसा गांव के प्रधान ने बताया था। इस पर शक्तिनाथ गुर्राता हुआ कहता है - तभी तो तू अभी तक हवलदार का हवलदार ही रह गया। प्रधान ने कहा और तूने मान लिया। शक्तिनाथ की आंखें बाज की हैं और दिमाग लोमड़ी का। जो चीज, और लोग नहीं देख पाते वो शक्तिनाथ देख लेता है। उड़ती चिड़िया के पंख गिन लेता है शक्तिनाथ। अब जैसा कहता हूं वैसा कर। तभी पुलिसिया गाड़ी को स्टार्ट करके वह दूसरे गांव की ओर रवाना हो जाते हैं। जहां उसे पता लगा था कि उस गांव में अन्य निम्न जाति के लोग रहते हैं और गार्ड के शव के पास से कोई जंगली जानवर भी घसीट कर लाया गया था। हो न हो, इसी गांव का ही कोई आदमी होगा जिसने जंगली जानवर का शिकार किया होगा और फारेस्ट गार्ड के आ जाने पर उसकी हत्या कर दी होगी। बस अब उस आदमी को ढूंढना है और किसी भी तरह उससे जुर्म कूबूल करवाना है। एक बार शक्तिनाथ के चंगुल में मुजरिम अगर फंस जाये तो वो ऐसे ऐसे जुर्म भी कूबूल कर लेता है जो उसने किये भी नहीं। केस को कैसे खत्म किया जाता है यह शक्तिनाथ अच्छी तरह से जानता था। बस केस को बड़ा दिखाकर नाम, पैसा और प्रमोशन सभी कुछ पाना भी तो था।
गांव में प्रवेश करते ही उसे सबसे पहले एक मीट की दुकान दिखाई देती है जहां बाहर एक-दो कटे हुए बकरे सीख के साथ लटकाये हुए थे। बाहर एक बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ था। गुलफाम मटन एण्ड चिकन सेन्टर, हमारे यहां हलाल मीट उचित दामों पर मिलता है। उसी की बगल में दो-तीन और दुकानें भी थी। जिन पर झटका चिकन शॉप के बोर्ड लगे थे। इन्हें देखते ही शक्तिनाथ समझ गया कि इस गांव में हिन्दू और मुस्लिम आबादी के लोग साथ-साथ में ही रहते हैं। मिलीजुली आबादी होने के कारण इस गांव में अनेकों विचारधाराओं के लोग होंगे। पक्का ही कोई इसी गांव का आदमी होगा, जो अभी तक उसकी नजरों से बचा हुआ है। बस किसी तरह उसे ही ढूंढना होगा। सुरागों को जुटाने के लिए शक्तिनाथ पहली दुकान जो गुलफाम की थी, पहुंच जाता है और अपने ही अंदाज मे उसे पूरी घटना बताते हुए उससे पूछताछ करने लगता है। पुलिस को देखकर पास के दुकानदारों के कान भी उनकी बातों की ओर लग जाते हैं। अन्य दुकानदारों से पूछताछ करने के बाद शक्तिनाथ उनसे कुछ किलो सामान मुफ्त में लेकर चलता बनता है और दुबारा आने को कहता है।
वहीं अगले दिन रोहन को अपने पेट में कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। पिछले दिन सोना के साथ जो मीट उसने खाया था उसके कारण उसे पेट की समस्या हो गई थी। वैध से दवा लेने के पश्चात उसे थोड़ी राहत मिली। तो अपनी पागल दिल की आवाजों के कारण वह खुद को सोना के घर की ओर जाने से रोक नहीं पाता। इस बार वह धीरे-धीरे ही उसके घर की ओर पैदल जाने लगा क्योंकि उसकी इस समय ऐसी स्थिति न थी कि वो दौड़ सके। आखिर पेट का मामला है। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी 😂😳😆
सोना के घर ऐसी मरी हालत में रोहन पहुंचता है तो सोना उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर पूछती है। क्या हुआ, मुंह क्यों लटकाया हुआ है। तबीयत तो ठीक है, तुम्हारी?
रोहन - नहीं, कल से मेरा पेट खराब हो रहा है। पेट में भारी दर्द और गैस की परेशानी। सही से चला भी नहीं जा रहा। रोहन की इस हालत को देखकर सोना हंसते हुए कहती है, मैं कहती थी न कि तुम प्यारे हो, केयरिंग हो और मान लिया बहादुर भी हो। लेकिन अभी शरीर के आंतरिक अंगों में अत्यन्त ही कमजोर हो। तुम्हारा पाचन तंत्र इतना विकसित नहीं कि तुम इतनी ऊर्जावान भोजन को पचा सको क्योंकि पीढ़ियों से तुम्हारे पूर्वजों ने इस प्रकार का भोजन नहीं किया इसलिए ऐसी आंतरिक दुर्बलता को होना तो निश्चित ही है।
रोहन - तो फिर क्या किया जा सकता है, कि मेरा पाचन तंत्र इसको हजम करने में सक्षम हो सके, या मजबूत हो सके।
सोना - ठीक है, अगर तुम मात्र तीन महीने मेरे कहने के अनुसार चलोगे, तो तुम्हारे अंदर की सभी कमजोरियां खत्म हो जायेंगी। जो बचपन में की गई गलतियों के कारण होती हैं और तुम सिर्फ तीन महीने में 16 साल के एक नवयुवक से सीधे 25 साल के युवक की तरह ऊर्जावान बन जाओगे या यूं कहें, एकदम असली जवां मर्द।
रोहन - बचपन में की गई गलतियों से तुम्हारा क्या मतलब है?
सोना - अरे तुम भी न एकदम बुद्धु हो, तुम्हें इतना भी नहीं पता। मेरा मतलब था, जैसे बचपन में तुमने स्कूल में दूसरे बच्चों के टिफिन से खाना चुराकर खाया होगा। होमवर्क पूरा न होने पर मैडम की मार से बचने के लिए घर में बीमारी का झूठा बहाना बनाया होगा। वगैरा-वगैरा। ऐसा कहकर हंसने लगती है। रोहन भी इस पर हंसने लगता है। 😎😁