तभी सोना अपनी उन यादों को याद करने लगती है। जब दस साल पहले वो अपने पैतृक गांव आये थे। उस समय सोना के पिताजी कश्मीर से सोना की मां और उसे लेकर गांव आये थे। सोना दिखने में बिल्कुल अपनी मां पर ही गई थी। गांव आने से पहले सोना ने अपने जीवन के शुरूआती 15 वर्ष कश्मीर में ही गुजारे थे। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है। एक पंद्रह वर्षीय लड़की दस वर्ष पूर्व अपने जीवन के पंद्रह वर्ष उससे पहले बिता चुकी है। इसके लिए हमें सोना की एक बहुत खास बात जानना आवश्यक है। सोना जन्म के प्रारम्भिक पांच वर्षों तक किसी सामान्य बच्चे की तरह बढ़ती रही लेकिन एक अत्यन्त ही दुर्लभ जेनेटिक बीमारी के कारण जन्म के पांच वर्ष बात उसकी शारीरिक वृद्धि रूक गई। लेकिन वहीं दूसरी ओर उसका मानसिक विकास अन्य बच्चों की तुलना में दुगनी गति के साथ होने लगा।
कश्मीर में ही सोना पांच वर्ष की आयु से लेकर 15 वर्ष तक उसने बड़ी तेजी से अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। विज्ञान में ग्रेजुएट होने के बावजूद वह उस आयु में देखने में मात्र 5 वर्षीय जान पड़ती थी और यह बीमारी उसे अपनी मां से ही प्राप्त हुई थी क्योंकि सोना की मां भी उसी की तरह इस बीमारी से जूझ रही थी। जिसके कारण वह शारीरिक रूप से अपनी आयु से बहुत कम जान पड़ती थी। लेकिन बौद्धिक रूप से वह भी बहुत उन्नत थी। अब इसे वरदान कहें या शाप। उस समय उसके पिताजी सोना और उसकी मां को गांव लेकर आ गये। जहां पर वो रहने लगे। जहां सभी गांव वालों को लगा कि सोना उस समय मात्र पांच वर्षीय बालिका है।
पिछले अंक 11 में आपने पढ़ा कि किस प्रकार गांव के प्रधान और पुजारी ने मिलकर सोना के पिता की जमीन हड़पने के लिए ऐसा षडयन्त्र रचा जिसके कारण उन्हें गांव के अपने घर और जमीन से हाथ धोना पड़ा। जिसके बाद सोना के पिताजी गांव के बाहर जंगल से सटी एक जमीन को खरीदकर वहीं अपने परिवार के साथ रहने लगे। कश्मीर की बर्फीली वादियों को छोड़कर अब वह ग्रामीण और जंगल की हरियाली के बीच पहुंच चुकी थी। जंगल का अद्भुद और प्राकृतिक वातावरण कहें या किसी अनजान जंगली पौधे के संपर्क में आने के कारण सोना का शारीरिक विकास स्वयंमेव किसी चमत्कारिक तरीके से होने लगा। जिसे देखकर सोना के पिता और माता को बहुत खुशी थी कि आखिरकार उनकी बेटी कुछ समय बाद सामान्य लड़कियों की तरह जीवन जीने लगेगी।
एक सुबह गांव के कुछ लोग गांव की एक महिला को लेकर बाहर जंगल में कहीं ले जा रहे थे। महिला कुछ बीमार जान पड़ रही थी और दर्द के मारे कराह रही थी। गांव वालों के पीछे-पीछे प्रधान और मंदिर का पुजारी भी उससे दूर हटकर चले जा रहे थे। सारा क्या माजरा है देखने की लिए सोना चुपके से उनके पीछे-पीछे जाने लगी। जंगल में थोड़ा अंदर जाने के बाद एक झोपड़ी थी। जहां पर कुछ आवश्यक सामान और एक चारपाई रखी हुई थी। उसे वहीं अकेला छोड़ सभी गांव वाले गांव की ओर जाने लगे। प्रधान और पुजारी ने गांव के लोगों को सख्त आदेश दिये कि इस पापिन को मिलने गांव का कोई भी व्यक्ति नहीं आयेगा। बस उसके परिवार के कुछ सदस्य उसके खाने-पीने का सामान देकर वापिस गांव आ सकते हैं। यदि किसी ने इस आदेश की अवमानना की तो उसे भी गांव से बाहर निकाल दिया जायेगा।
गांव वालों के चले जाने के बाद सोना वापिस अपने घर आकर अपनी मां को सारी बात बताती है। तो उसकी मां सोना के साथ उस झोपड़ी में पहुंचते हैं तो पाते हैं कि उक्त महिला कुष्ठ रोग से ग्रसित थी। जिसे कोढ़ के नाम से भी जाना जाता है। पुजारी और प्रधान ने पुरानी रूढ़ीवादी धारणाओं को आधार बनाकर कि जिसे कुष्ठ होता है वह पिछले जन्म में कोई महापापी व्यक्ति रहा होता है जिसके परिणाम स्वरूप इस जन्म में उसे इस बीमारी के कारण तड़प-तड़प कर मरना ईश्वर द्वारा लिखित विधान है। गांव की शुद्धि करने के नाम पर उक्त महिला के परिवार से पुजारी तरह-तरह के कर्मकाण्ड, दान-पुण्य बताते हैं। जिससे उनका धर्म का व्यापार सुचारू रूप से चलता रहता है।