काया श्मशान के मुख्य द्वार पर खड़ी होकर तांत्रिक रूद्रदेव को देखकर जोर से हंसती है और चीखते हुए कहती है, आज मैं तुझे नहीं छोड़ूंगी तांत्रिक। तूने मुझे जिन्दा जलाया था न, अब देख मैं तेरे साथ क्या करती हूं। ऐसी आवाज सुनकर रूद्रनाथ उस ओर देखता है, जहां काया, माया के भेष में खड़ी थी। दूर से देखने पर वह बिल्कुल माया की तरह ही जान पड़ रही थी। वही रंग-रूप, वही कद-काठी, वही बोलने का अंदाज। उसे देखकर पहले रूद्रनाथ कुछ समझ नहीं पाता कि ऐसा कैसे हो सकता है, तभी उसे लगता है, हो न हो, यह जरूर माया की आत्मा है, जो इस समय चुड़ैल बन चुकी है और उससे बदला लेने आई है। तभी रूद्रनाथ श्मशान की राख उठाकर उस पर कुछ मंत्र पढ़ता है और काया की ओर फैंक देता है, लेकिन काया को कुछ नहीं होता क्योंकि वह चुड़ैल नहीं बल्कि एक जीती जागती इंसान थी। इसलिए उसकी अभिमंत्रित भभूत का उस पर कोई असर नहीं होता। काया जोर से हंसते हुए कहती है, ढोंगी तांत्रिक, तू मुझे नहीं मार सकता। अब देख मैं तुझे कैसे सबक सिखाती हूं। यह सुनते ही रूद्रनाथ का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है और वह अपना त्रिशूल उठाकर काया की ओर दौड़ने लगता है। काया को बस इसी मौके का इंतजार था। वह बिना देर किये वहां से जंगल की ओर दौड़ लगा देती है। उसे दौड़ता हुआ देख, रूद्रनाथ चिल्लाते हुए कहता है। अब भागती कहां है, हिम्मत है तो मुझसे मुकाबला करके दिखा। इस पर काया रूद्रनाथ को देखकर जोर से हंसते हुए उसे चिढ़ाती हुई तेजी से भागती जाती है।
भागते-भागते काया जंगल में प्रवेश कर जाती है और सीधे उसी स्थान पर आ जाती है जहां माया को गांववालों ने जिन्दा जलाया था। रूद्रनाथ काया का पीछा करता हुआ उसी स्थान पर पहुंच जाता है और बड़ी तेजी से काया को बालों से पकड़कर पीछे की ओर खींचते हुए उसके चेहरे पर दूसरे हाथ से तमाचा जड़ने ही वाला था कि अचानक पीछे से उसके सिर पर किसी भारी वस्तु से जोरदार चोट लगती है जिससे उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है और रूद्रनाथ अपने भारीभरकम शरीर के साथ धड़ाम करके जमीन पर गिर जाता है। यह वार गंगाधर ने अपनी बंदूक के पिछले लकड़ी वाले हिस्से से किया था। जो काया और तांत्रिक का पीछा करते हुए वहां तक आ पहुंचा था। यह सारा नजारा एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ी सोना देख रही थी जिसे गंगाधर ने उसे ऐसा करने को कहा था ताकि वो सुरक्षित रूप से यह सब देख और समझ सके। जंगल में तांत्रिक का पीछा करते हुए कुछ और लोगों के आने की आवाजें आने लगती हैं जिसे समझ कर गंगाधर काया को भी दूसरी दिशा में एक बहुत ऊंचे और घने पेड़ के ऊपर चढ़कर छिप जाने को कहता है और काया फटाफट पेड़ पर चढ़कर छिप जाती है। गंगाधर ने उसी स्थान पर जहां तांत्रिक ने माया को जिन्दा जलाया था, एक पेड़ के पास बहुत गहरा गढ्ढा खोदकर उसके अंदर बांस को खड़ा करके गाड़ा हुआ था जिसके ऊपर के कोनों को काटकर किसी भाले की भांति उसे नोकदार बनाया हुआ था। जिसे उसने ऊपर से कपड़े से ढंककर बड़ी सावधानी से मिट्टी और घास से छिपा दिया था। उसके ऊपर एक रस्सी से तांत्रिक के दोनों पैर बांधकर उसे ठीक गढ्ढे के ऊपर उल्टा लटका दिया था और रस्सी को पेड़ की ऊंची डाली से घुमाकर उसे पेड़ के ऊपर छिपे हुए एक भारी पत्थर के साथ कुछ इस तरह से बांधा जिसके हल्का सा खींचने पर वह गांठ खुल जाती और उल्टा लटका तांत्रिक सीधे गढ्ढे में सिर के बल भालेनुमा बांस पर गिर पड़ता। पेड़ पर लटकाये पत्थर को भी रस्सी से बांधकर उसे नीचे एक अन्य पेड़ से बांध दिया था जिसे देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसके दूसरे सिरे पर तांत्रिक लटका हुआ हो।
तभी जंगल में बाहर से कुछ और लोगों के आने की आवाजें आने लगी जो उसी तांत्रिक के कुछ चेले थे। तांत्रिक को जंगल की ओर जाते देख, वो भी उसके पीछे-पीछे जंगल आ पहुंचे थे। जिनकी आमद को गंगाधर भांप चुका था। लेकिन अब वो इन सबका शिकार करने के लिए पूरी तरह से तैयार था। गंगाधर ने कुछ और जाल जंगल में बिछाने शुरू कर दिये और एक पेड़ के ऊपर चढ गया। इसी उम्मीद के साथ कि सही अवसर पाते ही आज इन सबका सफाया करके अपने बदले का प्रारम्भ करना है, इनमें से एक भी व्यक्ति बचकर नहीं जाना चाहिए। नहीं, तो यह खबर गांव में फैल जायेगी, जिससे उनके लिए परेशानियां और अधिक बढ़ जायेंगी। तभी तांत्रिक के चेले जंगल में दिखाई पड़ते हैं जो गिनती में मात्र चार ही थे और रूद्रनाथ को आवाज लगाते हुए ढूंढ रहे थे। लेकिन उन्हें क्या पता था, रूद्रनाथ के साथ-साथ आज उनकी मृत्यु भी बिना किसी आहट के उनका इंतजार कर रही है।