वहीं गांव में इंस्पेक्टर शक्तिनाथ फारेस्ट गार्ड के मर्डर केस की छानबीन कर रहा था। उसकी छानबीन का केन्द्रबिन्दु पास ही का दूसरा गांव था। शक्तिनाथ अपने सिपाहियों से कहता है - जल्दी से जल्दी वहां के सभी ऐसे लोगों को उठाकर थाने ले आओ, जिनका कोई भी पुराना अपराधिक इतिहास रहा हो। हो न हो, हमें जरूर कोई सुराग मिल जायेगा और खासकर उन लोगों को ढूंढना है जिनके पास बंदूक हो या जंगल में शिकार करने का पुराना इतिहास हो। इस पर कुछ सिपाही गांव की ओर चल देते हैं। उनमें से एक सिपाही भानू प्रताप जो ब्राह्मणों वाले गांव से था। जैसा कि उस गांव के प्रधान ने कहा था कि गांव के बाहर रहने वाले फौजी के परिवार का इसमें हाथ हो सकता है। इस बात पर भानू प्रताप को पूरा भरोसा था कि हो न हो, जरूर इसमें फौजी का ही हाथ होगा क्योंकि वह जानता था कि फौजी भी अपने पास एक बंदूक रखता है और उसका घर भी जंगल में वारदात वाले स्थान से बहुत ही निकट था। तो वह अपने दूसरे सिपाही मित्र हीरा ठाकुर को यह बात बताता है और इस केस को सुलझाने के लिए अकेला ही गांव के बाहर बने फौजी गंगाधर के घर की ओर जाने लगता है। उसे अकेला जाते देख कांस्टेबिल हीरा ठाकुर भी भानू प्रताप के साथ चलने लगता है।
थाने से कुछ ही दूर निकलते हुए उन्हें रास्ते में एक सुन्दर महिला मिलती है। जिसने लाल रंग का घाघरा पहना हुआ था उस पर नीले रंग की चुनरी ओढ़ी हुई थी। वो तेज आवाज लगाते हुए बच्चों के खिलौने बेच रही थी। जिसे देखकर हीरा ठाकुर के शरारती मन में गाना बजने लगा।
दिल मेरे तू दिवाना है, पागल है मैंने माना है।
पल-पल आहें भरता है, कहने से क्यों डरता है।
दिल मेरे तू दिवाना है.....
और वो वहीं रूककर खिलौने वाली से पूछता है - अरी ओ खिलौने वाली, कहां से आई है? इस गांव की तो नहीं लगती। इस पर खिलौने वाली बोलती है, साहब पास के ही एक शहर से आई हूं। वहां से खिलौने सस्ते मिल जाते हैं, उन्हें खरीदकर गांव में बेच कर थोड़ा बहुत गुजारा कर लेती हूं। इस पर हीरा ठाकुर बोला - क्या नाम है तेरा? इस पर खिलौने वाली आंखें मटकाते हुए बोली- “सुन्दरी”।
हीरा ठाकुर - सुन्दरी, बहुत ही सुन्दर नाम है, बिल्कुल तुम्हारी तरह। और कितने में दे रही हो?
सुन्दरी - क्या......
हीरा ठाकुर - अरे, मैं खिलौनों की बात कर रहा हूं। यह लकड़ी का घोड़ा कितने का है?
सुन्दरी - साहब औरों के लिए पन्द्रह रूपये का है, आपके लिए दस ही लगा दूंगी। बोलो कितने दूं।
हीरा ठाकुर - अभी एक दे दो और यह लो बीस रूपये।
सुन्दरी - खूले पैसे दीजिए, मेरे पास छुट्टे नहीं है।
हीरा ठाकुर - हंसता हुआ, बाकी के रख ले। अब तो मैं तेरा पक्के वाला कस्टमर बन गया हूं। तुझसे ही खिलौने खरीदता रहूंगा। कल फिर आउंगा, खिलौने खरीदने।
तभी हीरा ठाकुर सुन्दरी से खिलौना लेकर पीछे मुड़ता है तो वहां से भानू प्रताप जा चुका था। हीरा ठाकुर अपनी बात वहीं खत्म करते हुए जल्दी-जल्दी तेज कदमों से गंगाधर के घर से चलने लगता है।
भानू प्रताप गांव को पार करके गंगाधर की झोपड़ी की तरफ बढ़ रहा था। तभी उनका कुत्ता टॉमी जोर-जोर से भौंकने लगता है। जिसकी आवाज सुनकर सोना बाहर की ओर देखने लगती है कि कौन है। तभी उसकी नजर भानू प्रताप पर पड़ती है, पुलिस की वर्दी देखकर वह समझ जाती है कि वह केस की छानबीन करने इधर ही आ रहा है।
भानू प्रताप मुख्य द्वार तक पहुंचता है तो सोना मासूम चेहरा बनाते हुए पूछती है, अंकल आपको किससे मिलना है।
भानू प्रताप बोलता है, तुम्हारे पिताजी से। सोना कहती है, वह तो अभी घर पर नहीं है, काम पर गये हुए हैं, शाम को आयेगे।
भानू प्रताप सोना के बनाये बगीचे तो देखकर कहता है - बगीचा तो बड़ा ही सुन्दर बनाया हुआ है। क्या, मुझे बगीचा दिखाओगी नहीं?
यह सुनकर पहले तो सोना थोड़ा घबरा जाती है लेकिन अपने भावों को छिपाते हुए मुस्कुराकर बोलती है - क्यों नहीं, आईये और देखिये कितना सुन्दर बगीचा है हमारा। मैंने बड़ी ही मेहनत से यहां सुन्दर-सुन्दर फूल उगाये हैं और इससे मिलो, यह है, टॉमी। मेरा प्यारा कुत्ता।
भानू प्रताप अपनी पुलिसिया पैनी निगाहों को चारो ओर घुमा रहा था। तभी उसे एक कोने में सोना की किचन दिखाई देती है। वह सोना से पूछता है - लगता है तुम्हें कुकिंग का बहुत शौंक है?
सोना - जी, थोड़ा-बहुत बना लेती हूं।
भानू प्रताप - एक कप चाय पिलाओगी क्या?
सोना - क्यों नहीं। इतना कहते ही सोना झोपड़ी में चली जाती है।
भानू प्रताप सोना के जाने का ही इंतजार कर रहा था। इसलिए चाय के बहाने से उसे अंदर भेज दिया। भानू प्रताप की नजर किचन में रखे मर्तबान पर पड़ गई थी। जिस पर बड़े अक्षरों में बकरे का अचार लिखा हुआ था। भानू प्रताप मर्तबान को खोलकर देखता है तो हैरान रह जाता है क्योंकि उसमें बकरे का नहीं बल्कि सुअर का अचार था। भानू प्रताप ने थाने में कई बार बकरे का मीट खाया था और वह अच्छे से जानता था कि मटन किस प्रकार का दिखता है और सुअर किस प्रकार का और फॉरेस्ट गार्ड की हत्या के समय भी किसी जानवर का खून और उसे घसीटने के निशान मिले थे। जिससे उसका शक और गहरा हो गया कि हो न हो, इस कत्ल में फौजी का ही हाथ है। तभी भानू प्रताप बगीचे के कोने-कोने छानने लगता है कि कुछ सुराग मिल जाये। तभी वह बगीचे के एक कोने में जाता है जहां बहुत सारा कचरा इकट्ठा किया हुआ था। उस कचरे में उसे सुअर का सिर और उसकी हड्डियां दिखाई पड़ती हैं।
तभी पीछे से सोना उसे आवाज लगाती है। अंकल, चाय तैयार हो गई है, आप वहां क्या कर रहे हैं।
भानू प्रताप पीछे मुड़कर उसे पैनी नजरों से देखता है और सोना को घूरते हुए चाय पीने लगता है।
इस बात का सोना का पता लग चुका था कि भानू प्रताप को जंगली सुअर वाली बात पता लग चुकी है क्योंकि जब उसने चाय की मांग की थी, वह तभी समझ गई थी कि वह उसके शक के घेरे में आ चुकी है। झोपड़ी के अंदर से वह सबकुछ छिपकर देख रही थी कि भानू प्रताप बाहर क्या-क्या कर रहा है।