माता को अवतरण होते ही वह महिला हवन कुण्ड के चारो ओर कूदते हुए बड़ी भयानक आवाजें निकालती है। तभी वह हवनकुण्ड की अग्नि के एकदम समीप आकर बैठ जाती है। जहां अग्नि का इतना तेज प्रभाव था कि अन्य लोग उससे बहुत दूर खड़े भी उसका ताप सह नहीं पा रहे थे। तभी कुछ श्रृद्धालु माता के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। आर्शीर्वाद स्वरूप वह उन्हें पास रखे चावल देती है। तभी वहां पर वह महिला अपने परिवाजनों के साथ माता का आशीर्वाद प्राप्त करने प्रवेश करती है। जिसे देख माता को एकाएक क्रोध आ जाता है और वह जलते हवन कुण्ड के गरम कोयले अपने हाथों से निकाल अपने मुंह में भर एक भयंकर चित्कार करती है। जिसके बाद वह अपनी लाल आंखों को बड़ा करके भयंकर आवाजों के साथ हवन कुण्ड के चारो और ताडंव करती है। जिसे देखकर सभी अचंभित और भयाक्रांत हो उठते है। तभी वह महिला घेरे को तोड़ते हुए आगे की ओर आ जाती है ताकि उनसे आर्शीवाद प्राप्त कर सके। किन्तु इस समय माता रौद्र रूप धारण किये हुई थी। तभी वह वहीं किनारे रखा हुआ एक चाबुक निकाल खुद को मारने लगती है जिसकी तेज आवाज के कारण पूरा माहौल खौफ से भर जाता है। चाबुक को वह जिस प्रकार तेजी से गोल-गोल घुमाकर स्वयं को मार रही थी। जिसके कारण कई बार चाबुक हवन कुण्ड की अग्नि को चीरता हुआ सुर्ख लाल अंगारों के साथ उस महिला के शरीर पर तेजी से लगता है जिस पर माता का प्रवेश था। थोड़ी देर चाबुक की मार के बाद वह तांडव करते हुए उस महिला के समीप आकर रूक जाती है और उसे घूरते हुए देखने लगती है, कुछ सेकेण्ड सन्नाटा छा जाता है लेकिन तभी अचानक वह जोर से चिल्लाती हुई कहती है।
अनर्थ - अनर्थ - अनर्थ,
मृत्यु - मृत्यु - मृत्यु,
प्रकोप - प्रकोप - प्रकोप,
ऐसा नहीं होना चाहिए,
ऐसा नहीं होना चाहिए,
ऐसा नहीं होना चाहिए।
तबाही - तबाही - तबाही।
ऐसा कहते हुए वह जोर से खुद को चाबुक मारते हुए जमीन पर शांत होकर बैठ जाती है। तभी पीछे से पुजारी जी का शिष्य जो ढोल बजा रहा था। धीरे से माता के पास आता है और उनसे तेज आवाज में पूछता है।
हे मां, जगदम्बे, क्या हुआ, आप इतना क्रोधित क्यों हैं? क्या कोई गांव में अनिष्ट होने वाला है?
इस पर माता भारी आवाज में कहती है। अनिष्ट नहीं होने वाला बल्कि अनिष्ट हो चुका है। इस औरत से पूछ यह जानती है कि इसने क्या किया है। वह महिला जो अभी कुछ दिन पहले अपनी बीमारी से ठीक हुई थी, अपने परिवारवालों और सारे गांव वालों के सामने डर के मारे कांपने लगती है कि अनिष्ट कहीं हो न हो, वह अवश्य ही इस समय किसी बड़ी मुसीबत में फंस चुकी है, जिससे बचकर निकल पाना अब उसके बस की बात नहीं।
तभी शिष्य उस महिला से पूछता है, बता ऐसा क्या किया है तुने जिससे माता तेरे कारण पूरे गांव से रूष्ट है। वह महिला कुछ नहीं बोलती। तभी शिष्य चिल्लाकर पूछता है - बोलती क्यों नहीं, चुप क्यों है जल्दी बता। हां, तू तो वही है न जिसे अपने पापों के कारण एक भयानक रोग हो गया था और तेरी मृत्यु निश्चित थी। तो तू इस समय कैसे ठीक हो गई, जल्दी बता। यह सुनकर वह महिला और अधिक डर जाती है और अपनी रटी रटाई बात उनसे कहती है कि मेरे पापों के ईश्वर ने क्षमा कर दिया इसी कारण वह पुनः स्वस्थ हो गई। तभी माता के रूप में वह महिला अचानक जोर से चिल्लाते हुए खड़ी हो जाती है और फिर से हवन कुण्ड के चारो ओर जोर-जोर से कूदते हुए भयानक तांडव करने लगती है और तेज आवाज में कहने लगती है,
झूठ है ये सब - झूठ है ये सब - झूठ है ये सब।
तबाही - तबाही - तबाही,
अनर्थ - अनर्थ - अनर्थ
और फिर से वहीं आकर शांतिपूर्वक बैठ जाती है।