कुछ दिनों के बाद गंगाधर सोना और काया को लेकर वापिस गांव में अपने घर आ जाता है। सोना का मन अब गांव में नहीं लग रहा था और वो अपने पिता से कहती है - पिताजी मुझे अब यहां अच्छा नहीं लग रहा है, अब हमें कश्मीर में ही रहना चाहिए। इस पर गंगाधर कहता है, नहीं, हम इसी जगह रहेंगे और अपने डर का सामना करेंगे। अपने अतीत की डरावनी यादों से पीछा छुड़ाकर भागना किसी कायर का ही काम होता है, जिसे हमारी भाषा में भगौड़ा कहा जाता है और मैं यह बिल्कुल भी नहीं चाहता कि कोई मुझे या मेरी बेटी को भगौड़ा माने। वो बात अलग है कि यह फौज नहीं है लेकिन एक फौजी हमेशा फौजी रहता है, फिर चाहे वह फौज में काम कर रहा हो या फौज से रिटायर हो चुका हो। उसकी पूरी जिन्दगी किसी जंग से कम नहीं होती। कम से कम जब तक मैं जिन्दा हूं, मैं मैदान छोड़कर नहीं भागने वाला, मैं इसी गांव में रहूंगा, फिर चाहे जो भी कुछ हो। बेटी, इस जंग का आगज इन्होंने किया है और इसे अंजाम तक हम पहुंचायेंगे। क्यों, क्या तुम नही चाहती कि तुम्हारी मां के हत्यारों को सजा मिले। पिता की बातों से सोना में जोश आ जाता है और वो कहती है - पिताजी आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, उन्हें जरूर सजा मिलनी चाहिए और वो तभी हो सकेगा जब हम यहीं पर रहेंगे और अपने डर का सामना सीना तानकर करेंगे। तभी गंगाधर काया को बोलता है, तुम्हें भी इस बारे में हमारी मदद करनी होगी, मैं तुम्हारी जान खतरे में नहीं डालना चाहता लेकिन माया का जो मुख्य हत्यारा है, जिसने माया को तड़पा-तड़पा कर उसे जिन्दा जला दिया था उसे सबसे पहले सजा देनी होगी।
काया - मैं समझी नहीं, तुम किसकी बात कर रहे हो?
गंगाधर - और किसकी, उस रूद्रदेव तांत्रिक की।
काया - और मुझे क्या करना होगा?
गंगाधर - ज्यादा कुछ नहीं, तुम्हें माया के कपड़े पहनकर, रात को उस श्मशान में जाना होगा, जहां रूद्रदेव तांत्रिक क्रियायें करता है और वो तुम्हें वहीं मिलेगा। तुम्हें बस किसी तरह उसका ध्यान अपनी और करना है ताकि उसे लगे कि माया जिन्दा है। जैसे ही वो तुम्हें पकड़ने भागेगा तुम्हें उसे सीधा जंगल में उसी स्थान पर उसे ले आना है जहां माया को मारा गया था। उसके बाद का काम मैं संभाल लूंगा। वो सारी जगह आज ही मैं तुम्हें दिखा दूंगा कि तुम्हें रूद्रदेव से बचकर भागते हुए किस रास्ते से जंगल तक आना है, और मैं तुम्हारे आसपास ही रहूंगा। कुछ भी गड़बड़ हुई तो मैं संभाल लूंगा। लेकिन तब तक तुम्हें किसी के सामने नहीं आना और अपना चेहरा छुपाकर रखना है। तभी गंगाधर सोना को देखते हुए कहता है - और तुम्हें बस जंगल में उसी जगह रहना और करना है जो तुम्हें मैं बताउंगा।
कुछ दिनों बाद जैसा गंगाधर ने काया को बताया था, ठीक उसी तरह काया, माया की तरह के कपड़े पहनकर जैसे ही सूरज शाम को डूबा और अंधेरे की कालिका आकाश में छाने लगी। काया के कदम गांव के बाहर दूसरी ओर बने श्मशान की ओर बढ़ने लगे। जहां उसकी बहन का कातिल तांत्रिक रूद्रदेव अपनी तांत्रिक क्रियायें करता था। काया से पहले ही गंगाधर रूद्रदेव के आसपास ही छिप कर किसी बाघ की मानिंद अपनी नजर जमाये बैठा था। जैसे कोई बाघ जब घने जंगल में बिना आवाज किये किसी पत्थर की मानिंद हो जाता है जहां उसके सांस लेने की आवाज तक नहीं आती। उस समय बाघ की नजर बहुत सारे जानवरों के बीच मौजूद बस उसके एक निशाने की ओर होती है जिससे वह एक पल के लिए अपनी नजर नहीं हटाता। उसे बस इंतजार होता है, उस सही समय का, जब उसे एक ही वार में उसे अपना निवाला बना लेना होता है। उस एक पल की चूक की कोई गुंजाईश नहीं होती। चूक का अर्थ होता है, शिकार का हाथ से निकल जाना और यहां पर न तो गंगाधर कोई बाघ था और न ही रूद्रनाथ कोई हिरण जैसा शिकार जो अगर एक बार हाथ से निकल गया तो फिर अवसर मिलेगा! यहां तो वार खाली जाने का अर्थ था, स्वयं का अंत। मरो या मारो वाली स्थिति हो चुकी थी इस समय। इसलिए गंगाधर किसी भी प्रकार की गलती करने की स्थिति में नहीं था।
श्मशान में घात लगाये बैठा गंगाधर 😁😂😎