कश्मीर पहुंचते हुए गंगाधर अपनी बेटी सोना को लेकर बैग उठाकर चल पड़ता है। थोड़ी दूर चलते-चलते उन्हें एक घर दिखाई देता है। जो कश्मीर की खूबसूरत पहाड़ियों के बीच बना था। चारो ओर पहाड़ और हरियाली के बीच दूर-दूर कुछ घर बने दिख रहे थे जो मुख्य शहर से थोड़ा बाहर की ओर स्थित थे। पहाड़ी उबड़-खाबड़ पथरीले रास्तों का पार करते हुए गंगाधर अपनी बेटी को गोद में उठा लेता है ताकि कहीं वो थककर पथरीले रास्तों के कारण चोट न खा बैठे क्योंकि पहाड़ में जो जगह एकदम नजदीक दिखाई पड़ती है, असल में वह अंदाजे से कहीं अधिक दूर होती है। पहाड़ के घुमावदार ऊंचे-नीचे और पथरीले रास्ते उसे और कठिन बना देते हैं। जहां किसी गाड़ी का जाना भी संभव नहीं हो पाता। लेकिन गंगाधर के लिए यह सब आम बात थी। वह तेज कदमों से पहाड़ की ऊंची और खड़ी चढ़ाई यूं चढ़ रहा था मानो वह कोई चढ़ाई वाला मार्ग न होकर कोई ढलानदार मार्ग हो। आखिर इतने वर्ष फौज में रहना भी इसका बहुत बड़ा कारण था। जिससे उसकी शारीरिक क्षमता अन्य सामान्य लोगों से कहीं अधिक थी। रास्ते में उन्हें कुछ राहगीर मिलते हैं जिनमें से कुछ गंगाधर को पहचान उससे अभिवादन करते हैं लेकिन गंगाधर अभिवादन का जवाब मात्र सिर हिलाकर बिना रूके दे देता है और तेज कदमों से अपने लक्ष्य की ओर चलता जाता है जैसे इस समय मात्र उसे वह घर दिखाई दे रहा हो, और बीच में आने वाली समस्त बातें उसके लिए रूकावट मात्र थी।
घर पहुंचते ही वहां बाहर की ओर एक छोटा सा लकडी का दरवाजा लगा हुआ था। जहां एक कच्चा बरामदा था। जिसके चारों ओर एकदम करीने से क्यारियां लगाई हुई थी। क्यारियों में लगे रंग-बिरंगे फूल और उनसे आने वाली खूशबू, झोपड़ी के पीछे और चारो ओर दिखने वाला विशाल नीला पहाड़, बर्फ सी ठण्डी चलने वाली हवा और धूप की मध्यम तपिश इस नजारे को बहुत ही अधिक दिलकश बनाती थी। यह सब देखकर सोना अपने पिता की गोद से उतर यह सब नजारा देख हैरान थी। यह एक ही पल ऐसा था जब सोना सब कुछ भूलकर कुदरत के ऐसे अद्भुद नजारे का निहारने लगी। लेकिन कुछ यादें ऐसी होती हैं जो कभी पीछा नहीं छोड़ती। कुछ डर के साये ऐसे होते हैं जो अगर किसी का दामन थाम लें तो उनसे बच पाना निहायत ही मुश्किल होता है। सूरज की यह मीठी रोशनी का सुखद अहसास जैसे ही सोना ने एक पल में महसूस किया, मानों तुरन्त उसका दिल जंगल की उस काली ठण्डी रात में जलने वाली आग की उस रोशन तपिश से स्याह हो गया और वो एकाएक बहुत जोर से रोने लगी।
बेटी को रोता देख, गंगाधर ने उसे अपने सीने से लगा लिया और कहने लगा, बेटी चुप हो जाओ। देखों, कितना खूबसूरत नजारा है। यह सुनते ही वह ओर जोर से रोते हुए कहने लगी, यह नजारा, यह रोशनी, यह खूबसूरती, यह खुशियां, यह सब मुझे अपने बदनसीबी की याद दिलाती हैं जिन्हें मैं भूल जाना चाहती हूं लेकिन क्या करूं, ये मेरे बस की बात नहीं। तभी उन दोनों की आवाज सुनकर झोपड़ी से एक महिला निकलती है जिसने कश्मीरी तरीके की सलवार, कमीज और सिर को पूरी तरीके से कश्मीरी शॉल से ढंका हुआ था। जो देखने में सोना की मां, माया की शक्लो-सूरत से कुछ मिलती जुलती थी। गंगाधर और सोना को देखकर वो उनका अभिवादन करती है और उन्हें घर के अंदर आने को कहती है। गंगाधर सोना को लेकर घर के अंदर आता है, अंदर अधिक सामान तो न था लेकिन एक कोने के कुछ कुर्सियां और मेज लगा था। दूसरी ओर एक बैड था। अंदर ही एक छोटी सी रसोई और एक स्नानघर था। कमरे में एक तरफ एक तस्वीर लगी थी जो फौज की वर्दी पहने हुऐ एक जवान आदमी था और तस्वीर पर फूल माला चढ़ी हुई थी। जिसके आगे कुछ धूप बत्ती का सामान रखा हुआ था। वह स्त्री रसोईघर में चली जाती है और एक केतली में कश्मीरी चाय लेकर आती है। तीन प्यालियों में चाय देते हुए पूछती है। आज यहां कैसे आना हुआ। बहुत साल बीत गये, मिलना न हो पाया। माया को साथ नहीं लाये?
माया की बात सुनते ही गंगाधर बात घुमाते हुए और उससे कहने लगता है। देखो न, माधव और मैं एक ही रेजीमेंट में थे। बहुत अच्छा और दिलदार इंसान था माधव। तभी गंगाधर सोना को कहता है, सोना यह तुम्हारी मौसी हैं, तुम्हारी मां की छोटी बहन। अब तुम बाहर जाकर थोड़ा टहल आओ, जिससे तुम्हारा मन भी हल्का हो जायेगा। यह सुनकर सोना बाहर बगीचे में चली जाती है। सोना के जाते ही गंगाधर माया की बहन काया को गांव में हुई पूरी घटना के बारे में बताता है कि कैसे गांववालों ने उनके सामने माया की हत्या कर दी और छोटी बच्ची सोना के बारे में तो तुम जानती ही हो, उसका बचपन किन हालातों में गुजरा है। 15 साल की सोना जो अभी मात्र 5 साल की बच्ची की तरह दिखती है। उसकी मनोस्थिति इस समय क्या होगी। अपनी मां के जाने के बाद अब वो और भी अधिक टूट चुकी है। इसलिए बस मुझे तुम्हारी एक छोटी सी मदद की आवश्यकता है। काया - बोलो, मैं क्या कर सकती हूं। गंगाधर - ज्यादा कुछ नहीं, तुम हमारे साथ गांव चलो और सोना का ध्यान रखो क्योंकि उसे मानसिक सहायता और प्यार की जरूरत है और वैसे भी तुम यहां अकेली ही हो। तुम्हारा भी दिल लगा रहेगा। इस समय सोना को तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगेगा क्योंकि वह तुममे कहीं न कहीं अपनी मां चेहरा जरूर देखेगी। काया थोड़ा सोचते हुए कहती है, ठीक है। मैं तैयार हूं, बताओ कब चलना है। इस पर गंगाधर कहता है - अभी हम कुछ दिन यहीं रूकेंगे। उसके बाद ही गांव जायेंगे। कुछ समय हवा पानी बदलने से शायद सोना का मन शांत हो जाये। लेकिन तुम इस बारे में सोना से ज्यादा कुछ मत पूछना। उसके जख्म जितने कम कुरेदे जायें, उतना ही अच्छा होगा। तभी वो दोनों बाहर निकल कर आते हैं तो सोना चुपचाप बगीचे में फूलो को निहार रही थी। लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव न था।