ग्राम प्रधान और इंस्पेक्टर शक्तिनाथ की बात सुनकर रोहन तेजी से दौड़ता हुआ सोना की घर की ओर जाने लगता है। वह मन ही मन सोना के लिए परेशान था कि कहीं वो किसी मुसीबत में न फंस जाये। सोना इस समय अपने बागवानी में फूलों को पानी दे रही थी, उसके पीछे टॉमी अपनी उछलकूद मचा रहा था। तभी रोहन भागता हुआ सोना के पास पहुंचता है और उसे कहता है, मेरी बात सुनो, बहुत जरूरी बात है। अभी सब काम छोड़ दो।रोहन को हड़बड़ाया हुआ देखकर सोना उसे आराम से सांस लेने को कहती है। फिर उससे पूछती है, क्या हुआ, इतने घबराऐ हुए क्यों हो?
रोहन सोना को सुबह हुई सारी घटना के बारे में बताता है कि पिछले कुछ दिन पहले रात को जंगल में एक फारेस्ट गार्ड मरा हुआ पाया गया। जहां गोलियां चलने की जानकारी है और किसी जंगली जानवर को घसीटकर लाये जाने की बात है और किस प्रकार प्रधान ने पता नहीं क्यों तुम्हारे परिवार के बारे में उल्टा सीधा पुलिस को बोला है। हो सकता है, पुलिस यहां पर पूछताछ करने आये इसलिए अपने पिताजी को इस बारे में बता देना कि सावधानी से रहें। वो पुलिस वाला मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था।
रोहन की बात सुनकर जो गांव के प्रधान ने उनके बारे में कही थी। सोना अन्दर ही अन्दर बदले की आग मे झुलसने लगती है। उसे मस्तिष्क में पुरानी घटनाओं का वो दृश्य चलने लगता है जिसे वो भूल जाना चाहती थी कि दस साल पहले किस प्रकार प्रधान और पुजारी ने मिलकर उसके परिवार के साथ क्या किया था। बात उस समय की थी जब वह मात्र पांच साल की थी। गांव में एक मंदिर था जहां उसके साथ ही सटा ही उनका घर और एक छोटा सा खेत था जो उसके पिताजी की पुश्तैनी जमीन थी। न जाने कितनी पीढ़ियों से वो घर और जमीन उनके पास ही थी। मन्दिर की जमीन को दानस्वरूप सोना के दादा जी ने गांव के पुजारी को दिया था। ताकि गांव में एक सुन्दर मन्दिर बने और वहां भगवान की प्रतिमा स्थापित कर सबकी सुख स्मृद्धि में बढ़ावा मिल सके। शुरूआत में सब सबकुछ ठीक चलता रहा। लेकिन उसके दादाजी के गुजर जाने के बाद गांव में एक नया प्रधान गोवर्धन बना जो जाति से ब्राह्मण था और बचपन से ही मन्दिर में पूजा पाठ के कार्यो में शामिल रहता था। प्रधान बनने के बाद उसका दखल मन्दिर परिसर में भी रहने लगा और वहां आने वाले धन पर उसकी नजर पड़ने लगी।
प्रधान के साथ का असर पाकर धीरे-धीरे पुजारी का व्यवहार बदलने लगा। जहां किसी समय मन्दिर के द्वार प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुले रहते थे। जहां ऊंच-नीच और किसी भी प्रकार की जाति का भेदभाव नहीं किया जाता था। प्रधान और पुजारी ने मिलकर गांव और मन्दिर के लिए नये-नये नियम बनाने प्रारम्भ कर दिये। जैसे कोई भी नीची जाति वाला व्यक्ति मन्दिर के विशेष स्थलों मे प्रवेश नही कर सकता। उनके लिए एक अलग मन्दिर बना दिया गया था जहां की व्यवस्था उनके मन्दिर की तुलना में निम्न स्तर की थी। भगवान की प्रतिमा से लेकर प्रसाद और भोजन तक सभी निम्नतम कोटी का रखा गया ताकि निम्न जाति के लोगों को उनकी निम्नता का अहसास कराया जा सके।
वहीं उसके विपरित उनके मन्दिर की भव्यता, साफ-सफाई, व्यवस्था, पूजा, प्रसाद और भोजन की व्यवस्था देखते बनती थी। लोगों द्वारा विरोध किये जाने पर उनका वह अलग स्थान भी उनके लिए बंद कर दिया गया।यह सब बातें जब सोना के पिताजी ने देखी जो एक फौजी थे, तब उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया। उनका विरोध करना था कि वह पुजारी और प्रधान की नजरों की किरकिरी बन गये। तभी से प्रधान उनके विरूद्व यह सोचने लगा कि किस प्रकार उन्हें इस गांव से बाहर किया जाये।