8 वर्ष की छोटी सी आयु में सुन्दर की मां दिल का दौरा पड़ने के लिए चल बसी। जो सुन्दर के लिए बड़ा झटका था। सुन्दर के पिताजी जो आर्मी में सिपाही थे और अक्सर घर से बाहर ही रहते थे। परिवार में नजदीक का कोई ने होने के कारण उसके पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया जो कि एक विधवा स्त्री थी और उसका पहले से ही एक बेटा भी था जो आयु में सुन्दर से काफी छोटा था। कुछ दिन पिताजी साथ रहे लेकिन फौज की नौकरी एक फौजी को अधिक समय तक परिवार से जोड़े नहीं रखती। वह अपनी डयूटी में चले गये। अब यही से शुरू हुई सुन्दर की दूसरी जिन्दगी की शुरूआत। जहां पहले सुन्दर की असली मां जिन्होंने अपने बेटे को बड़े ही प्यार और दुलार से पाला था, वहीं अब सौतेली मां ने धीरे-धीरे सुन्दर को डांटना-फटकारना शुरू कर दिया क्योंकि उसे सुन्दर से अधिक अपने बेटे से अधिक प्रेम था। उसे सुन्दर एक फूटी आंख न सुहाता। ऊपर से सुन्दर की सुन्दरता और उसे प्यार करने वाले इतने सारे लोग, वहीं दूसरी ओर उसका काला-कलूटा बेटा जिसे कोई देखना भी पसंद नहीं करता। उसकी हमेशा नाक बहती रहती और उसे जितना मर्जी नहला-धुला लो, तब भी उसका चेहरा किसी लंगूर के बच्चे की तरह ही दिखता। यह बात भी उसके मन में आग लगाने के लिए काफी थी। सारा दिन सुन्दर स्कूल में रहता लेकिन छुट्टी होने के समय और बच्चे घर जाने को आतुर रहते लेकिन सुन्दर किसी न किसी बहाने अधिक से अधिक समय स्कूल ही रहना चाहता था। इसका उपाय उसने यह निकाला कि वह अब कभी भी अपना स्कूल का होमवर्क पूरा करके न आता। जिसके कारण अध्यापक उसे छुट्टी के बाद वहीं होमवर्क पूरा करने की सजा देते लेकिन सुन्दर की तो यह उस घर से दूर रहने की चाल थी, जहां उसे गालियों और डांट के सिवा कुछ नहीं मिलता था। लेकिन अध्यापक यह बात नहीं समझते थे। उन्हें तो लग रहा था कि सुन्दर का पढ़ाई की ओर ध्यान नहीं इसलिए वह उसकी मां को स्कूल में बुलाकर उसकी शिकायत लगाते कि तुम्हें सुन्दर का ध्यान रखना चाहिए, वह पढ़ाई में कमजोर होता जा रहा है। पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ। यह सुनकर उसकी मां बौखला गई और अध्यापक से कहने लगी - इसका क्या मतलब है? मैं उसका ध्यान नहीं रखती और मेरे ही कारण वह पढ़ाई में कमजोर हो गया है। यह सुनते ही वह सुन्दर के घर ले जाकर उसे पीटती है और उसे सख्ती से कहती है, कान खोलकर सुन लो, अगली बार कोई शिकायत आई तो तेरी खाल उधेड़ दूंगी।
ऐसी मार सुन्दर ने अपने जीवन में पहली बार खाई थी। लेकिन धीरे-धीरे यह रोजाना का काम हो गया। हमेशा मुस्कुराने और खुश रहने वाला बच्चा जो पहले से ही बहुत शर्मीला और कोमल स्वभाव का था। जिस कारण वह कभी भी अपना यह दुख किसी को न समझा पाया और न ही किसी और को कुछ भी पड़ी थी। 14 साल की आयु तक पहुंचते ही वह 9वीं से 10 कक्षा में प्रवेश करता है। जहां सुन्दर के साथ के अन्य युवा लड़के उसकी चाल-ढाल देखकर उसका मजाक उड़ाते क्योंकि उसकी चाल-ढाल, बात करने का तरीका मर्दाना कम और जनाना अधिक था। जिस कारण उसे लोग तरह-तरह के ताने मारते। इस बात की खबर सुन्दर की मां को भी थी और वह तो शुरूआत से ही सुन्दर की मात्र कमियों को ही ढूंढा करती थी। वो कई बार सुन्दर के पिता से इस बारे में फोन पर बात कर भड़का चुकी थी कि सुन्दर किस प्रकार की हरकते कर रहा है। शायद उस पर किसी चुड़ैल का साया है या फिर उसे दिमागी इलाज की आवश्यकता है। अब वह सुन्दर पर अधिक हाथ भी नहीं उठा सकती थी क्योंकि सुन्दर अब बड़ा होने लगा था और किसी अनहोनी के डर से उसकी मां बस उसे जबानी रूप से परेशान करने में कोई कसर न छोड़ती।