रूद्रनाथ के चेले जंगल में आवाज लगाते हुए उसकी ओर बढ़ रहे थे। रूद्रनाथ जो उल्टा पेड़ पर लटका हुआ था उसे होश आ जाता है और खुद को उल्टा लटका देख वो समझ जाता है कि उसे इस जाल में फंसाया गया है जो किसी भूत का नहीं बल्कि किसी इंसान का काम है। तभी उसके कानों में उसके चेलों की आवाज पड़ती है तो वह उन्हें तेज आवाज में अपने पास बुलाता है। रूद्रनाथ की आवाज सुनकर उसके चेले उसे दूर से पेड़ पर उल्टा लटका हुआ देख लेते हैं। उनमें से एक चेला दौड़कर रूद्रनाथ की ओर उसे खोलने की लिए जाता है लेकिन जैसे ही वह रूद्रनाथ के नजदीक पहुंचता है। अचानक से जमीन धंस जाती है और गंगाधर द्वारा बनाये गये गड्ढे में वो बांस के भालों पर गिर पड़ता है। उसकी एक तेज चीख पूरे जंगल में गूंजकर एकाएक सन्नाटे में तब्दील हो जाती है। बाकी बचे तीन चेले अब यह बात समझ गये थे कि वो किसी जाल में फंस चुके हैं। लेकिन अब किसी भी तरह उन्हें अपने गुरू रूद्रनाथ को बचाकर बाहर ले जाना होगा। तभी एक चेला रूद्रनाथ की रस्सी को देखता है जो पेड़ से होते हुए नीचे एक दूसरे पेड़ के साथ बंधी हुई थी। वह बड़ी ही सावधानी से धीरे-धीरे पैर जमाते हुए पेड़ की ओर रस्सी खोलने के लिए बढ़ने लगता है। वह मन ही मन सोच रहा था कि वह रस्सी को खोलकर रूद्रनाथ को ऊपर की ओर खीच लेगा। पेड़ के पास पहुंचते ही वह जैसे ही रस्सी खोलता है, तभी उसके एकदम सिर के ऊपर पेड़ में छिपा हुआ बहुत ही बड़ा और भारी पत्थर आ गिरता है। पत्थर के गिरने के कारण दूसरी ओर रूद्रनाथ की रस्सी भी खुल जाती है जिससे रूद्रनाथ गहरे गड्ढे में गिर पड़ता है।
यह नजारा दूर छिपा गंगाधर देख रहा था। बाकी के दो चेले तुरन्त बिना कुछ सोचे जंगल से बाहर की ओर गांव की दिशा में तेजी से दौड़ने लगते हैं। लेकिन गंगाधर पेड़ पर चढ़ा दूर से अपनी 12 बोर की दोनाली बंदूक से निशाना लगाता है और एक चेले का भेजा उड़ा देता है। गोली चलती देख आखिरी बचा चेला, और तेजी से अपनी जान बचाकर भागने लगता है। तभी गंगाधर उस पर गोली चलाता है जो सीधे उसके पांव पर लगती है और वह गिर पड़ता है और रेंगते हुए भागने की कोशिश करने लगता है। तभी गंगाधर पेड़ से उतरकर उसके सामने आ जाता है जिसे देखकर चेला उसे पहचानते हुए कहता है - "गंगाधर, तू नहीं बचेगा। तुझे गांव वाले नहीं छोड़ेंगे, अभी तो सिर्फ तेरी डायन पत्नी को ही मारा था, वो हमसे गलती हो गई जो उस समय तुझे और तेरी बेटी को छोड़ दिया।" यह बात सुनते ही गंगाधर गुस्से में उसे एक लात मारता है और कहता है - "गांव वाले हमारा तभी कुछ करेंगे, जब वह यह सब जान पायेंगे। क्योंकि उन्हें यह सब बताने के लिए तू जिन्दा नहीं बचेगा।" गुस्से में गंगाधर उस पर लातें बरसाने लगता है और उसकी ओर बंदूक तानकर उसकी खोपड़ी उड़ा देता है। इन सबको मारकर अपने विजेता होने पर वह जोर से चिल्लाता है, तभी पीछे से एक जोरदार प्रहार उसकी पीठ पर होता है और गंगाधर उड़ता हुआ कंटीली झाड़ियों में गिरता है, उसकी बंदूक उसके हाथ से छूटकर दूसरी ओर गिर जाती है। गंगाधर के पीछे कोई ओर नहीं, तांत्रिक रूद्रनाथ था। रूद्रनाथ से पहले उसका चेला भालों पर गिरा था। जिसके ऊपर रूद्रनाथ गिरा। जिस कारण वह मरने से बच गया गया और किसी तरह खुद को रस्सी से आजाद करवा कर, वह इस समय गंगाधर के सामने गुस्से से लाल होता हुआ उसका खात्मा करने के लिए तैयार था। हाथ में एक बहुत भारी लकड़ी लिए वह इस समय किसी शैतान से कम न जान पड़ रहा था।
गंगाधर को बिना कोई मौका दिये, रूद्रनाथ दौड़ता हुआ उसकी ओर आगे आता है और उस पर ताबड़तोड़ लकड़ी के भारी डण्डे से वार करने लगता है। कंटीली झाड़ियों में फंसा गंगाधर इस समय कुछ भी नहीं कर पा रहा था। वह जितना झाड़ियों से निकलने की कोशिश करता, रूद्रनाथ उस पर डण्डों से वार करके उसे वापिस झाड़ियों में धकेल देता। गंगाधर की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। रूद्रनाथ जैसे ही डण्डा गंगाधर के सिर पर मारने ही वाला था तभी अचानक गंगाधर के पास उसकी बंदूक आकर गिरती है, जिसे उठाकर बिना कोई देर किये गंगाधर एक के बाद एक दो फायर रूद्रनाथ की दोनों जांघों पर दाग देता है। इतने पास से फायर होने के कारण बंदूक की गोली रूद्रनाथ की जांघ की हड्डी को चीरते हुए दूसरी ओर से बाहर निकल जाती है। ऐसे अप्रत्याशित और घातक हमले के कारण रूद्रनाथ फिर से धरती पर गिर पड़ता है और दर्द से कराहने लगता है। तभी वह पीछे की ओर देखता है, जहां सोना खड़ी थी। अपने पिता की ओर बंदूक सोना ने ही फेंकी थी ताकि वो अपनी जान बचाकर अपने दुश्मन का खात्मा कर सकें।
खून से लथपथ गंगाधर खुद को कांटो से छुड़ाकर बंदूक को अपने कंधों पर रखकर खड़ा होता है और रूद्रनाथ को दहाड़ते हुए कहता है। हरामजादे, अगर मैं चाहता, तो अपनी गोलियों से तेरी खोपड़ी उड़ा देता लेकिन मैं तुझे इतनी आसान मौत नहीं दूंगा। जैसी भयानक मौत तूने मेरी बीवी को दी थी, तुझे आज मैं उससे भी भयानक मौत दूंगा। यह सुनकर रूद्रनाथ कांप उठता है और उसे उकसाते हुए कहता है, तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तू कायर है, जिसने मुझ पर छिपकर और धोखे से वार किया अगर तू असली मर्द है तो मुझ पर गोली चलाकर दिखा। लेकिन गंगाधर इस पर कोई जवाब नहीं देता और उसकी दोनों टांगों को पकड़कर उसे घसीटते हुए उसी गड्ढे की ओर ले जाता है जो उसने बांस के भालों से तैयार किया था। उस गड्ढे में रूद्रनाथ को फैंककर गंगाधर उसमें और बहुत सारी लकड़ियों को डालकर उसमें आग लगा देता है। रूद्रनाथ की चीखों से जंगल गूंज उठता है। उसी आग में गंगाधर उसके सभी चेलों के शरीर भी डाल देता है। इस जलती आग को देखकर सोना का मन कुछ शांत हुआ। आज उसे यह आग अपनी दुश्मन नही जान पड़ रही थी। जिस आग ने उसकी मां उससे छीनी थी आज उसी आग ने उस छीनने वाले को भी न बख्शा। आखिर आग तो आग है, उसका काम है जलाना। वह किसी को भी नहीं बख्शती......!