रात ढलते-ढलते गहरी हो गई थी और सोना झोपड़ी में सोने की कोशिश कर रही थी। जंगल में इस घनी रात को यह झोपड़ी बहुत डरावनी लग रही थी। लेकिन वह इस समय उसके लिए सबसे सुरक्षित स्थल था। जंगल से आती भयानक आवाजों के कारण उसे अपने दिल की धड़कनों की आवाज महसूस होने लगी थी। धीरे-धीरे रात बढ़ती जा रही थी और जंगल से आती जंगली जानवरों की भयानक आवाजें उसकी रूह कंपा देने के काफी थी। तभी उसने झोपड़ी के दरवाजे को बंद कर दिया था और अपने उन दोस्तों के बारे में सोचने लगी जिनका कहना था कि वो उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे लेकिन कैसे वह सब उसे इतने भयानक जंगल में रात को छोड़कर जा सकते हैं। यह सोचकर उसे गुस्सा आ रहा था।
इस समय उसे अकेलेपन की भयावहता महसूस हो रही थी जो उसे वैसा बनाती थी, जैसी वो इस समय थी। अपने डर पर काबू पाते हुए वह एक कोने में जोर से आंखों को बंद करके लेट गई। धीरे-धीरे उसे नींद आने लगी थी और उसने महसूस किया कि उसके बगल में कुछ हलचल हो रही है। अंधेरे में कुछ न दिखाई देने के कारण वह डर गई लेकिन उसने अपनी आंखें खोली और देखा कि उसके बगल में एक बहुत छोटा सा जानवर है। वह एक मुर्गा था जो उसके बगल में सो रहा था। सोना उसे देखती रह गई, मुर्गे का साथ पाने के कारण उसका डर थोड़ा सा कम हुआ था। अब उसे भूख भी लगने लगी। वह खाने के लिए खोजती रही लेकिन कुछ भी नहीं मिला। तब वह वापिस वहीं आकर लेट गई और उसे नींद आने लगी। तभी उसे सपने में एक आदमी नजर आया। वह उसके पास आया और उसे चिढ़ाने लगा जिसके बाद उस आदमी ने उसे उठाकर ले जाने का प्रयास किया।अचानक, सोना की उंगलियों से बाघ जैसे तेज और धारदार पंजे निकल गये और वो उस आदमी के चेहरे पर अपने पंजों से हमला करने लगी। दर्द से छटपटाता हुआ आदमी भाग खड़ा हुआ और सोना की एकाएक आंख खुली, तब वो बहुत डरी हुई थी। बाहर भी रोशनी हो चुकी थी।
तभी सोना झोपड़ी से बाहर निकलने लगी तभी उसे रात वाला मुर्गा दिखा। वह मुर्गा बहुत खूबसूरत और मोटा-तगड़ा था और उसकी ताजगी देखकर सोना के मुंह में पानी आ गया। सोना ने उस मुर्गे को पकड़ लिया और उसे लेकर गांव की ओर अपने घर की ओर चलने लगी। घर पहुंचते ही वह अपने माता-पिता को मुर्गा दिखाते हुए कहा, “मम्मी-पापा, देखो मैंने क्या पकड़ा है।“ घर पर उसके माता-पिता उसे देख रहे थे और वे उसे देखते ही चौंक गए और उससे पूछने लगे कि वो रात भर कहां थी। रात वाली बात उसने अपने माता-पिता को बताई कि कैसे गांव के बच्चों के साथ वह जंगल में खेलने गई थी और वहां किसी विरान झोपड़ी में वो सब उसे अकेला छोड़कर आ गये और उसने कितनी बहादुरी से पूरी रात अकेले जंगल में गुजारी। यह सुनकर उसके माता-पिता हैरान थे और आगे से कभी शाम के बाद जंगल न जाने को कहा।
वे उससे पूछने लगे, “तुमने इस मुर्गे को क्यों पकड़ा है?“ बच्ची ने उत्तर दिया, “मैंने उसे जंगल में वहीं झोपड़ी में देखा था और उसे पकड़ लाई। अब मैं उसे पकाकर खाना चाहती हूं। इस पर उसके माता-पिता ने उसे समझाया कि जंगल में जीव जंतुओं को पकड़ना और उन्हें मारना गलत है और उन्हें स्वतंत्र रूप से जीने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि उस मुर्गे में भी जान है और उसे भी हमारी तरह दर्द होता है। इसलिए तुम्हें इसे छोड़ देना चाहिए और उसे खाना उचित नहीं है। लेकिन सोना नहीं मानी, वह स्वभाव से जिद्दी भी थी और कुछ मूडी।
उसके माता-पिता उसका यह व्यवहार देखकर गहरी सोच में पड़ गये थे कि उसका अतीत में छुपी बातें जो उसके व्यवहार से सामने आ रही थी। इतना समझाने के बाद भी वह मांस खाना पसंद कर रही थी। जबकि उन दोनों ने बचपन से उसे शाकाहारी खाने की शिक्षा दी थी और स्वयं भी सदैव शाकाहारी ही रहे।
वहीं दूसरी ओर सोना को खाना बनाना और खाना बहुत पसंद था और वह खाने अलग-अलग प्रकार के व्यंजनों को बनाने और खाने में रुचि रखती थी। जिसमें अधिकतर व्यंजन मांसाहारी होते थे। वह अपनी कला को अधिक से अधिक समृद्ध करती रहती थी।