कुछ सेकेण्ड आंख बंद करने के बाद जब वह आंख खोलता है जहां उसी नजर खुली किचन की स्लैब में रखे कांच के मर्तबान पर पड़ती है जिस पर बकरे का अचार का स्टिकर चिपका हुआ था। जिसे देखकर सुन्दर का मन ललचा उठता है और अचार के मर्तबान की ओर उसके पैर खुद-ब-खुद बढ़ने लगते हैं। यह नजारा दूर छिपे गांव के लड़के जिसमें रोहन भी था, देख रहे थे। तभी एक लड़का रोहन से कहता है - कितनी लालची है यह औरत। अचार को देखकर देखो कैसे किसी चोर बिल्ली की तरह उसकी ओर बढ़ रही है, चटोरी कहीं की। यह सुनते ही उनकी हंसी निकल जाती है। किसी तरह बिना आवाज किये वह सब वहीं छिपकर सब देख रहे थे और वहां सुन्दर मर्तबान खोलकर जैसे ही अचार को खाता है तो उसके मुंह से एक ही बात निकलती है, वाह मजा आ गया, ऐसा अचार खाकर। तभी उसकी नजर एक और मर्तबान पर पड़ती है। जिस पर हर्बल रस का नाम लिखा था। सुन्दर बिना देर किये वहीं रखे एक कांच के गिलास में वह हर्बल रस भरता है जो दिखने में बिल्कुल पानी की तरह पारदर्शी था और उसमें से किसी खास तरह के हर्बस की सुगन्ध आ रही थी। जैसे सौंफ और लौंग। इस एक गिलास रस को पीते ही सुन्दर के दिमाग के ढक्कन खुल गये और वह मदहोश हो उठा। देखते ही देखते वह एक के बाद एक गिलास करके उस सारे रस को डकार गया और उस खाली मर्तबान में तालाब का पानी भर दिया ताकि सोना को पता न चल सके कि वो उसका सारा हर्बल रस पी चुका है।
यह सब देखकर रोहन की हंसी रूक ही नहीं रही थी कि यह औरत कितनी लालची और चोर है किसी के घर में घुसकर उनकी बिना इजाजत के उनका सारा खाने का सामान खाती जा रही है और जिसे वो हर्बल रस समझ रही है वो कोई हर्बल रस नहीं बल्कि घर की बनाई हुई देसी दारू है क्योंकि रोहन इस रस का स्वाद पहले चख चुका था और यह बात बखूबी जानता था कि अब इसको नशा हो गया है और थोड़ी ही देर में यह बेहोश हो जायेगी। यह सोचकर रोहन रोमांचित हो उठा कि अब आयेगा मजा। इसके बेहोश होते ही हम सारे दोस्त मिलकर इसके साथ वो सब करेंगे जिसकी चाहत में वो इसका पीछा करते हुए कड़ी धूप में इतना इंतजार कर रहे हैं।
तभी सुन्दर जिसे हर्बल रस का थोड़ा सा सुरूर चढ़ा था। वह फिर से कुर्सी में थोड़ा सा तिरछा होकर आंखें बंद करके बैठ गया। तभी उसका दिमाग फ्लैशबैक होते हुए अपने बचपन में पहुंच जाता है। जहां वह ऐसा महसूस करता है जैसे कोई सिनेमा उसके आंखों के आगे चल रहा हो। कुछ आवाजें सुन्दर के कानों में गूंजने लगती हैं। सुन्दर बेटा, कहां छिपे हो, तुम मुझे दिखाई ही नहीं दे रहे। कहते हुए सुन्दर की मां उसको ढूंढ रही थी। जहां छोटा सा तीन साल का सुन्दर दरवाजें के पर्दे के पीछे छिपा था। जिसके छोटे-छोटे पैर पर्दे के नीचे से साफ दिखाई दे रहे थे। सुन्दर की मां उसे ढूंढने का नाटक करती हुई, जैसे ही पर्दा खोलती है, सुन्दर जोर से हंसने लगता है और उसके साथ ही उसकी मां हंसते हुए सुन्दर को गोद में उठाकर हवा में झूलाने लगती है। सुन्दर का नाम भी इसकी मां ने ही रखा था क्योंकि सुन्दर अपने नाम की ही तरह बचपन से ही बेहद सुन्दर था। जिसे कोई भी देखता उसे गोद में उठाकर उसके गाल चूमने को आतुर रहता। इसलिए उसे लाड-प्यार की कमी नहीं रही। लाडों में पला सुन्दर के बचपन के कुछ साल इतने सुनहरे थे। जो उसके जहन में छपे हुए थे। अक्सर लोग अपने बचपन की इतने कम आयु की बातें भूल जाया करते हैं लेकिन सुन्दर जितना दिखने में आकर्षक था उतनी ही तीक्ष्ण उसकी बुद्धि भी थी। 8 वर्ष की आयु तक वह स्कूल में सबसे होशियार बच्चों में गिना जाने लगा। उसका रूप-रंग देखकर तो स्कूल की लड़कियां भी उससे ईर्ष्या करती। वह बचपन से ही अत्यन्त ही शर्मीला और कम बात करने वाला था। घर में प्यार-दुलार से पला बढ़ा सुन्दर अनजान लोगों से कम ही घुलता-मिलता, शायद वह उनसे डरता था। भारी आवाज वाले आदमी, बड़ी-बड़ी मूंछ और दाड़ी वाले लोग उसे किसी राक्षस की तरह जान पड़ते। उनकी बड़ी-बड़ी लाल-लाल आंखें उसे डरा देती थी। लेकिन घर में मां का कोमल स्वभाव, स्कूल में मैडम का प्यार से पढ़ाना उसके डर को समाप्त कर देता और उनमें ही खुद को देखने लगता। उसे नहीं पता था कि ये सब क्या है। वह तो बस अपनी भावनाओं को अपनी जिन्दगी के अनुभवों से निर्मित कर रहा था। आठ साल का एक बच्चा, अन्जान और सभी के प्रति निरवैर स्वभाव रखने वाला। जिसकी मासूमियत उसके चेहरे और बातों से साफ झलकती थी।