सुन्दर धीमे कदमों से गांव के बाहर बने सोना के घर की ओर चल रहा था। जिसके पीछे थोड़ी दूरी बनाकर रोहन और गांव के कुछ और लड़के आ रहे थे। सुन्दर जो इस समय महिला के रूप में था, उसकी चाल-ढाल और बात करने के तरीके से कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता था कि वह एक औरत न होकर एक मर्द है। उसे देखकर ऐसा जान पड़ रहा था जैसे एक मर्दाना शरीर में किसी औरत का वास हो। सोना के घर पहुंचते ही सुन्दर बाहर बने छोटे से दरवाजे को खटखटाता है। जिसकी आवाज सुनकर सोना झोपड़ी से बाहर निकलती है तो सुन्दर उसे कहता है - मैं शहर से शिक्षा विभाग से आई हूं, मुझे यहां आंकड़ें इकट्ठे करने है कि यहां कितने लोग शिक्षित हैं। यह सुनकर सोना घर के बाहर बने बगीचे में सुन्दर को आने को कहती है। जहां खुली किचन के सामने ही पानी के तालाब के पास बैठने के लिए चार कुर्सियां और एक गोल मेज लगाया हुआ था जिसके बीचो-बीच एक बड़ी और रंगीन छतरी इस छोटे से बगीचे को किसी होटल जैसा लुक दे रही थी। किचन की शैल्फ के ऊपर मसालों से लिपटा चिकन रखा हुआ था। जिसके बगल में मिट्टी की हांडी रखी हुई थी। आज शायद सोना हांडी चिकन बनाने जा रही थी। वहीं एक ओर आग जलाई हुई थी ताकि उसमें चिकन को पकाया जा सके। तभी सुन्दर सोना से पूछता है - लगता है, आपको कुकिंग का शौंक है।
सोना - जी, मुझे कुकिंग करना बहुत पसंद है और खासकर चिकन।
सुन्दर - कुकिंग तो मुझे भी बहुत पसंद है। क्या आप अपना बनाया हुआ चिकन हमें नही टेस्ट करवायेंगी।
सोना - क्यों नहीं, बिल्कुल करवाउंगी। लेकिन उसके लिए आपको थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।
सुन्दर - हंसते हुए, क्यों नहीं। वैसे भी मैं चलचलकर बहुत थक गई हूं। तुम्हारे बगीचे में बैठकर बहुत सुकून मिल रहा है। कितने सुन्दर फूल हैं, मछलियां हैं, तालाब और बाहर हरे-भरे पेड़ों से भरा जंगल। वाह क्या बात है। तुम्हें डर नहीं लगता। ऐसी विरान जगह में रहने में। कोई जंगली जानवर आ जाये तो?
सोना - जंगली जानवरों से डर नहीं लगता, आजकल जंगली जानवरों से अधिक खतरनाक इंसान हो गये हैं। जानवर तो बेचारे अपना पेट भरने के लिए शिकार करते हैं। मगर इंसान के लिए किसी को मारना लालच और मनोरंजन बनकर रह गया है। कितनी गलत बात है न ये।
सुन्दर - हां, बिल्कुल सही कहा। जमाना बहुत ही खराब हो चुका है। एक इंसान दूसरे इंसान को समझता ही नहीं। जब घर के अपने ही नहीं समझ पाते तो बाहर के लिए समझेंगे।
तभी सोना चिकन को हांडी में डालकर उसे अच्छी तरह से बंद कर देती है और पकने के लिए उसे आग में रख देती है। तभी बाहर जाते हुए सुन्दर से कहती है। आप यहीं रूकिये, मैं गांव में दुकान से कुछ सामान लेकर आती हू। तभी सुन्दर सोना से पूछता है, तुम्हारे पिताजी कहां है और कब तक आयेंगे क्योंकि सुन्दर यह बात भांप गया था कि इस समय सोना घर में अकेली है। इस पर जवाब देते हुए सोना कहती है। वो पिताजी मां को देखने अस्पताल गये हैं, शाम तक ही आयेंगे। आप यहां आराम कीजिए। मैं जल्दी ही आती हू और आपको जो भी जानकारी चाहिए वो मैं ही दे दूंगी। सुन्दर हामी में सिर हिलाकर थोड़ा तिरछा होकर आराम से कुर्सी पर बैठा अपने आंखें बंद कर लेता है।
सोना घर से बाहर निकल गांव की ओर चली जाती है, वहीं सुन्दर जो सुन्दरी बना बगीचे में आंखें बद किये ठण्डी हवा खा रहा था। इस समय उसे सोना को मारने की कोई जल्दी न थी क्योंकि उसे अपनी चालाकी और काबिलियत पर पूरा विश्वास था कि जब उसे कोई पहचान ही न सका तो उसे थोड़ा शान्ति से काम लेना चाहिए। जैसे कभी-कभी जंगल में भी अक्सर शेर अपने शिकार को पकड़ तो लेता है लेकिन उसे मारने से पहले उसे थका देने वाला खेल खेलता है। जो शेर के लिए तो शायद मजा हो लेकिन शिकार के लिए वो किसी सजा से कम नहीं। सुन्दर का भी शायद इसी तरह का कोई खेल खेलने का इरादा था या कुछ और.....!