सुन्दर को गाड़ी में डालकर सेन्टर ले जाया जा रहा था। कुछ घण्टै गाड़ी के चलने के बाद वह एक सुनसान रास्ते की ओर मुड़ जाती है। जो सूखा, पथरीला और कच्चा होने के कारण गाड़ी में झटके लग रहे थे। थोड़ी देर बाद एक सूखी जगह पर आकर गाड़ी रूकती है। जहां एक बड़ा सा मकान बना हुआ था जो देखने में पुराना था। सफेद रंग के इस मकान में बाहर दीवारों पर हरे-काले रंग की काई जमी हुई थी और दीवारों पर पड़ी दरारों से कुछ पेड़ उगे बाहर निकले हुए थे। मकान के बाहर कुछ बेतरतीब झाड़ियों, प्लास्टिक और कांच की बोतलों ने तो जैसे इस इमारत की खूबसूरती पर चार चांद लगा दिये थे। सुन्दर को धक्का देते हुए वो तीन आदमी उसे गाड़ी से बाहर निकालते हैं। जैसे ही सुन्दर बाहर निकलता है तो देखता है। वह स्थान एकदम सूखा और बंजर था। तेज धूप की गर्मी में गर्म हवा छोटे-छोटे चक्रवात बनाते हुए पीली चिकनी मिट्टी के साथ कुछ पत्तों और प्लास्टिक की पन्नियों को गोल-गोल घुमा रही थी। उमस भरी इस गर्मी में सुन्दर का गला सूखने लगा था और माथे से पसीने की बूंदें टपकने लगी थी। उस बिल्डिंग को देखकर सुन्दर उन आदमियों से पूछता है कि क्या यही अस्पताल है तो वह गुर्राते हुए उसे कहते हैं - हां यहीं तुम्हारे दिमाग का इलाज होगा। अब सीधी तरह बिना कोई सवाल किये चलता चल, नही ंतो.... इतना कहते ही दूसरा आदमी उसे चुप रहने का इशारा करता है।
जैसे ही सुन्दर उन व्यक्तियों के साथ इमारत के अंदर घुसता है तो एक अजीब से दुर्गन्ध से उसका दम घुटने लगता है। जिसके कारण वह नाक बंद करके वापिस दरवाजे से बाहर निकलने को ही होता है तभी वह व्यक्ति उसे धक्का देकर अंदर जाने को कहता है - अबे नाक बंद करके क्या नाटक कर रहा है। अब तुझे यहीं रहना होगा। यहीं तेरा इलाज होगा। ऐसा कहकर चारों युवक हसने लगते हैं। उनकी इस हंसी से सुन्दर मन ही मन डर जाता है क्योंकि यह अस्पताल कम और कोई भूत बंगला अधिक लग रहा है। न कोई साफ-सफाई और न ही कोई नर्सिंग स्टॉफ, कुछ भी तो ऐसा नहीं दिख रहा था जिससे इस इमारत को कोई अस्पताल कह सके।
सीढ़ियों से एक मंजिल ऊपर चढ़ने के बाद उसे कुछ कमरों से रोने और चिल्लाने की आवाजें सुनाई पड़ती हैं। जिसे सुनकर वह डर जाता है और धीरे-धीरे चलने लगता है। तभी उसे एक बड़े से हॉल में ले जाया जाता है जहां पहले से कुछ युवक नीले रंग के कपड़े पहने डरे हुए बैठे थे। तभी एक उसी तरह की ड्रेस सुन्दर के आगे रख दी जाती है और उसे एक और अंदर बने कमरे में चेकअप करने के लिए भेजा जाता है। जहां एक आदमी कुर्सी पर बैठा हुआ था जो दिखने में उन्हीं आदमियों की तरह लग रहा था जो उसे घर से उठा कर लाये थे। वही डील डौल और वैसी की चाल-ढाल और बोलने का लहजा। मतलब साफ था वो डॉक्टर कम और कोई गुण्डा अधिक जान पड़ रहा है। तभी वह सुन्दर को अपने सभी कपड़े उतारने को कहता है ताकि उसके शरीर का पूरा चेकअप किया जा सके। सुन्दर कपड़े उतार देता है तब वह डॉक्टर उसे पूरे कपड़े उतारने को कहता है जिसमें चड्डी भी शामिल थी। सुन्दर नहीं उतारता तभी बाहर से दो आदमी उसके हाथ पकड़ लेते हैं और डॉक्टर जबरदस्ती उसकी चड्डी उतारकर उसे स्ट्रेचर पर लिटा देते हैं और एक बड़ी लाईट जलाकर उसके शरीर का पूरा निरीक्षण करने लगते हैं। निरीक्षण करने के बाद वह उसे नीले कपड़े पहनने को देते हैं और एक बुकलेट देते हैं जिसमें अस्पताल के नियम कानून लिखे गये थे। जिसे हर मरीज को पूरा करना था। नियमों का उल्लंघर करने पर कड़ी सजा थी। जिसका विवरण बुकलेट में नहीं था। पूरी बुकलेट पढ़ने के बाद सुन्दर को ले जाकर एक कमरे में बंद कर दिया जाता है जहां पहले से एक व्यक्ति अपने बैड पर गुमसुम सा बैठा था। दूसरी ओर उसका बैड था। कमरे की दीवारें बाहर की ही तरह सफेद रंग की थी। जिस पर हरी-काली काई जमी थी। देखने से लगता था जैसे उसे आज ही साफ किया गया हो।