अपनी जगह पर
छुपा है कोई हादसा
अर्थ जीवन का बताकर
घुलाते हैं जेहन में डर
जहां प्रत्येक सत्य है
एक अलग मृगमरिचिका
जीवन के तथ्य
अधकचरे शब्दों से पटी है
और युगों से इस तपती रेत पर
नहीं लिखी गई है कोई कविता
कि बदलते परिवेश के साथ
अस्तित्व बोध का अवशेष
न जाने कितनी बार मरी है
इस घर से
उस क्षितिज तक
मिथ्या भ्रम से
हंसता है जीवन
इसी जीवन के तपती रेत पर
उमगने की विलासिता
हम आखिर खोज ही लेगें
जहां मुन्ना पतंग उड़ा सके
और पत्नी रोटी सेंक सके
तभी तो हमे विश्वास है
कि आंगन में धूप उतरेगी ही.