मैंने तो नहीं कहा
संगीत बजाती कोई नदी
संपूर्ण अर्थ नही रखती
ठीक है रागाकुल तालों से
जीवन के अस्तित्व में
भले तट प्रकाशित न हो
पर भाव के समुद्र में
कई कई आयाम
आलोकित तो करता ही है मन को
औजार और बम
कभी भी जंग लगने के कगार तक
उत्तेजना की आंधी में
नहीं लटका रहेगा
उस अन्तिम प्रहर तक
जहां आखेट का रक्त
किसी रहस्य की गुफा में भटके
मुस्कुराहटों के खोखलों में
जबतक खुशबुएं नहीं तैरेगी
और उग नहीं जाएगा
पहला सितारा आकाश में
तबतक बाट जोहने का सिलसिला
कागज पत्तर में कसमसाएगा
और जोखिम के हथियार
बंद पड़े रहेगें संदूकों में
ठीक है
मैंने मंदिर की घंटी नहीं बजाई
ना ही मस्जिद में अज़ान दिया
फिर भी बात की तह में
सांस थामकर तलों तक
जो बात घुल चुकी है
तुम्हारे अंतर्मन में
कहीं से भी फुहार की रश्मियों में
टंगे नहीं रहेंगे अनंत काल तक
और आना ही होगा उसे
माटी की तल में
कि ठोका जाए
तबियत से एक कील
आकाश की दीवारों में.