हो सकता है
नदी और आकाश के प्रसंग में
कहीं भी नहीं ठहरती हो
हमारी प्रार्थनाएं
और चीजों के भ्रष्ट होने में
भय की दीवारों के पीछे से
कोई परेशान आंखें झांक लेती हो
अब तुम ही बताओ
कैसे कोई चूहा
शेर में तब्दील हो
या कोई हाथी
बदल जाए चींटी के शक्ल में
भले ठंडे होने की प्रक्रिया
फाइलों में कसमसाती हो
साफ जाहिर है कि
सारी पंक्तियां
एक साथ नहीं पढ़ी जानी है
डिटेल्स में जाने की अपेक्षा
हम समरी देखना चाहते हैं
ठीक हमारे बोसांई की तरह
और बचा लेते हैं हम
काल के सागर से
अपना समय
पर कदम
क्लब की ओर मुड़ जाते हैं
काहे का रोना
सड़े फलों को देखकर
अगर हो सके
हम बना लें ऐसी कविताएं
जो दे पाए फलों का स्वाद
और लड़ लें
ठंड से
धूप से
पाले से
तब बची रह सकती है
हमारी नदियां
हमारी फसलें
और हमारा आकाश.