जब सूरज उगा
काली परछाईं
दुबक गई किसी कोने में
और जीवन
साकार हो उठा
जब सूरज उगा
चिड़ियों ने
छेड़ दी संगीत
और हलो ने
बो दिए सपने
जब सूरज उगा
फूल मुस्कुरा उठे
महकने लगे आंगन
और मैंने
दिया एक आलाप
जब सूरज उगा
इधर नुकीली रोशनी में
कोमल भावनाओं का आगत
चुपचाप
मेड़ों पर मचल उठे
और उधर
संदेहास्पद हो चला लोकतंत्र
जब उगा सूरज
इधर आंखों में आए आक्रोश
अपना अर्थ तलाशते
पक्की सड़कों में
विरोध का स्वर बन गए
उधर खाद, पानी, हवा में
एक अनिश्चितता का ऊहापोह
उनके लॉन में बिछते चले गए
सूरज जब उगा
खेत और संसद
चूल्हा और जंजीर
पूछने लगे एक दूसरे से सवाल
कि मिसाईल और फूलों के बीच
क्या बैठ पाएगा कोई संगम
कि कभी हमारे आंगन में
उग पाए एक सूरज.