जब खेतों की हरियाली
सावन को साथ लाने की
जिद लिए जी रहे हो
जब उम्मीदों की घास
बच्चों के खाली हाथों में
खिलौनों की जगह
ताकत लिए उग रहे हों
हम आश्वस्त हैं
कि दरख़्त अभी नहीं सूखेगा
साहस और विश्वास के
अंतिम छोर तक
वह मौजूद रहता है सदा
हमारे समय में
घड़ी की सुई बनकर
हमारी आंखों में
ज्योति की चमक बनकर
जो प्रत्येक खौफ के विरूद्ध
शपथ उठाने का हौसला रखता है
तब बची रहती है
हमारे चूल्हे में आंच
बहुत संभव है कि वे
बदतर समय में भी
शब्दों के साथ हों
और आसमान में टंगी दुनिया
कल को बदल जाए केंचुओं में
इन सभी स्तिथियों को
हम जितने कम समय में जान लें
मोहरे बनाने के उनके सारे उपाय
उनके टेबल पर ही धरे रह जाएंगे
मैं तय नहीं कर पा रहा हूं
कि मंगल की भाषा
कैसे पृथ्वी का किरण बनेगी
और हमारे पुरुषत्व का दंभ
कैसे व्यवस्था के खिलाफ
कुदाल उठा पाएगा
हम महज देह नहीं हैं
ना ही धूलकण
हमारे हाथों में है
शब्दों की आवाजें
और सीने में है सूरज
तब कैसे
कोई समय बदतर होगा.