उसे पता था
अपने भीतर की आग
कि घर के अंधेरे कोने में
काई जैसी हरी आंखों से
समुद्र की आवाज
आंच सी गर्मा जाती है
उस पता था
वंचित विवश विस्थापित दशा
कि संयमित लौ से देहयश्टि
शरीर की गुफाओं के भीतर
लयात्माक क्रिया को
मरुस्थल सा सूखा देता है
उसे पता था
भ्रमित होश शिथिल हाथ
कि क्षितिज के उस पार
हवन की समिधा से उठती ज्वाला
अपने खिलाफ
और अपने लिए ही
अपूर्ण कामनाओं का लेखा जोखा है
उसे पता होता है
इस बीच नावें चल चुकी है
और पत्ते झड़ चुके हैं
जीवन के रसमय पगडंडियों से
फिर भी
उसे पता है
अपने सपनों के बारे में
जहां सूरजमुखी
और किरणों के बीच
प्रत्येक दशा में बच ही जाता है
कुछ न कुछ.