जब
तुमने तय कर दी है
हमारी सीमाएं
बांध दी है तुमने
हमारी दृष्टि
ठोक दी है तुमने
उनमें कीलें
तब
धरा से गगन तक
खेत से पहाड़ तक
कहां बच पाया है
कोई रास्ता
जो जा सके
तुम्हारे महलों में
और पा सके
दीपक की वो ज्योति
जिससे
शायद ही रोशन हो
हमारी झोपड़ियां
जब
तुमने तय कर दी है
हमारी सांसें
बारूद के मुहानों पर
दाग दी है तुमने
हमारे सपनों में
मिसाईलों के गोले
तब
मीनारों के पार ताकना
और भर लेना
अपने आंचल में
उन अनगिनत तारों को
जो शायद
तुम्हारे आकाश में
कभी चमके ही न हो
एक सपना ही तो है
अब कहां बची है
अपने अंतस में वो आग
कि जिससे
बुझाया जा सके
पेट के सवालों को
और टांगा जा सके
एक टेंट
छत की शक्ल में
उस भूमि में
जहां अपनों के बीच
अपनापन तो हो
जब अपनों के बीच
अपनी रेखाएं ढूंढते हैं हम
बिना छत के
दृष्टि देखती है
विनय से उगलते आग को
और पदचाप मिटते जाते हैं
सारे रास्तों से
तब तुम
भले अट्टहास करते फिरते हो
पर कहीं कोने में
तुम भी ताकते हो
उसी आकाश को
जहां तुम्हारे तारे गायब हैं
और तुम्हारे खाली हाथ
सीमा से परे
क्षितिज की ओर बढ़ते हैं.