खोई हुई प्रतिध्वनि
तैरने लगे हैं तालाब में
बाढ़ में बहते झाड़ झंकार
छाती की जेब में समा जाते हैं
और नीरव वेदना की वाणी
सारे समुद्र का पानी सोखकर
विस्मृत की परछाइयों में
बादल बन उड़ जाते हैं
कि है अभी भी
बहुत कुछ अनजाने
जिसे मेरे आकाश ने नहीं जाने हैं
अंधेरे में मैंने देखा
सफेद बादल का टुकड़ा
आकाश के सूने थाल पर
आसानी से चला जाता है
जैसे कोई नाव
शांत समुद्र में बही जा रही हो
आसमान सिल जाता है
जैसे दरजिन चिड़िया
सीती है अपने लिए घर
और टांको की जगह तारे मुस्काते हैं
बादलों से बने धागे
मुझे बैठा देता है
चांद से बनी टोपी पर
कि आंखों की पुतलियों के कोर में
कोई स्वर अंधेरे में फूट पड़े
जैसे फूटते हैं सारे गुलाब
सूर्य की किरणें पाकर
मैं नहीं होता
तब भी तारों भरा आकाश मौन रहता
स्मृति और आशंका से लिपटे सपने
तब भी टंगे होते आकाश में
और विशाल वेदना की पुतलियों में
मैं होता
उसी बादल के भीतर
खोजता हुआ अपने आंचल के पानी को.