जब कभी भी
तुम हो मेरे पास
और मैं तुम्हारे पास
क्या ऐसे में
हमारे बीच एक चुप्पी
तैरती रहेगी जीवन भर
जब कभी भी
छाए हुए हो आकाश में
एक टुकड़ा बादल खामोश सा
और किरणों के जमघट पर
गहरी खुशी के बीज
उगने को हो तैयार
क्या इसे में
छेद भी जाएगा मौसम में
और पक पाएगा
आनंद का संगीत उम्र भर
जब कभी भी
सड़क के ठीक किनारे हो
झुंझलाहट का बाजार
और चीख चीत्कारों के बीच
झुलसा हो हृदय के तार
क्या ऐसे में
कोई बेनाम चिट्ठी
उड़ जाएगा हवा के झोंको से
और दमक उठेगा
चिंताओं की चिता क्षण भर
जब कभी भी
होने की सारी संभावनाएं
तैरते हों हमारे बीच
और खाई के पार
क्षितिज मुस्कुरा कर
फैलाती हों बाहें
उछल पड़ता हो आकाश
और बोल उठती हो चिट्ठी
क्या ऐसे में
हम आश्वस्त हो सकते हैं
उभर आए बातों के बीच
अमृत रूपी आम
और हो मधुर
हमारे वसंत के सारे आयाम.