वापस कर दो
अगर बमुश्किल था
बगैर पशुओं के
बगैर झंडों के
मिट्टी गारे में जिंदा रहना
तब वसंत का प्रवेश
नदी में पत्थर की तरह
आदमी के रूप में
जीवन के इतने झंझावत
कैसे सहे जा सकते हैं
निस्संदेह आदमी
मछली पकड़ने की नाव बनने से रहा
और निचली सतह की मिट्टी सा
जो भी चीजें
बाजार में ठेल दिया जाए
सही आकार का चोर
सभी दुकानों के बीच से
उड़ाने की ताक लिए बैठा है
वापस आकर उतनी ही गहराई से
बीजों को परिभाषित करना
अब उतना सहज नहीं रह गया
जब खालिस पत्थरों ने
नदियों को ढांक दिया हो
जीवंत हवा के कुछ चीथड़े
अपना अस्तित्व खो दिया हो
और चारागाह की निर्जन शांति
कोल्हू के बैल बन गए हों
लगता है कि
संभावनाओं के ऊंचे शिखर पर
इस तरह हम कहीं नहीं जा सकते
चाहे तमाम प्राकृतिक चीजों के बीच
बची रहे खामोशी की मीनारें.