अपना कोई भी कदम
नये रूपों के सामने
कर्म और विचार के अंतराल में
अनुभव से उपजी हुई
कोई मौलिक विवेचना नहीं बन पाता है
और विचार करने की फुर्सत में
ज्यादा बुनियादी इलाज
उपभोक्ताओं सक्रियता के बीच
पुरानी चिंता बनकर रह जाती है
शून्य जैसी हालत में
स्वीकृति के विस्तार को
हवा देने की सहमति
किसी भी संदर्भ के लिए
जीने की ताकत नहीं से सकती है
और निरंतर नई रूप लेती इच्छाएं
कर्मक्षेत्र को खोलने को तैयार आंखें
सोचने की फुर्सत कहां दे पाती है
भाग्य भेद की दिशाएं
तय कर देती है सबकी सीमाएं
गलियारों से दूर
जो धूप के टुकड़े
सार्वजनिक होने से बचते रहे हैं
वे हमारे अंतरिक्ष के किसी अंश में
निजी चिंता का विषय बनकर
सिकंदर सा सामने खड़े हो जाते हैं
तब परिवर्तनों की जरूरतें
कौंध से पैदा न होकर
सुबह से देर रात तक
निर्णयों के जाल में ही कहीं
एक अलग अर्थ ग्रहण कर लेते हैं.