आज वर्षों बाद
जब मैं इस गली से गुजर रहा हूं
तमाम सुख दुख के सपने
मेरी आंखों में सामने लगे हैं
और उन सपनों में
तैरने लगे हैं आत्मीयता के वे क्षण
जहां कोयल आंगन में कुकती है
और वसंत खिड़की से मचलती है
आज वर्षों बाद
जब मैं निहार रहा हूं
अपने घर को
तमाम कोने रोशन होने लगे हैं
और तुलसी के बिरूवा में
मुस्कुराने लगे हैं वे आभाएं
जहां गुजारे थे हमने
जीवन के बहुमूल्य क्षण
अपने सुख दुख को भोगते हुए
आज वर्षों बाद
जब मैं खाली खाली बैठा हूं
अपने पीपल की छांव में
जहां न बच्चों की किलकारी है
न ही उनका उपद्रव
तब जीवन के झंझावत में
उन पलों को जीना
न हो सकेगा इस जीवन में
आज वर्षों बाद
जब लौटा हूं अपने गांव
मुझे न अपना गांव दिखा
न ही वैसी आत्मीयता
जहां जिया जा सके
जीवन के अंतिम पल
जीवन से लड़ते हुए
पर अब क्या किया जा सकता है
जहां मेरा गांव ही नहीं मिल रहा है
शायद उत्तराधुनिकता ने उसे डस लिया है
मेरे गांव को.